आज मनाई गई गृहस्थों की कृष्ण जन्माष्टमी, कल वैष्णवजन मनाएंगे श्रीकृष्ण जन्म
- प्रातःकाल उठकर स्नानादि कर्मों से निवृत होकर व्रत का निम्न संकल्प करें- "अहं मम चतुवर्ग सिद्धि द्वारा श्रीकृष्ण देव प्रीतये जन्माष्टमी व्रतांगत्वेन श्रीकृष्ण देवस्य यथामिलितोपचारैः पूजनं करिष्ये"
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मेरठ । पंचांग के अनुसार गृहस्थों की श्री कृष्ण जन्माष्टमी मंगलवार को मनाई गयी. वही वैष्णव जन बुधवार को कृष्ण जन्माष्टमी मनाएंगे.
भगवान श्रीकृष्ण का आज के ही दिन प्रार्दुभाव होने के कारण यह उत्सव मुख्यतया ऊपवास, जागरण व विशिष्ट रूप मे भगवान श्रीकृष्ण की सेवा श्रृंगार का है. दिन में उपवास और रात्रि में जागरण व यथा उपलब्ध मन्त्रों से भगवान का पूजन, भगवत् कीर्तन इस उत्सव का प्रधान अंग है. इस दिन भारतवर्ष के समस्त मन्दिरों एवं अपने घर पर स्थित भगवान श्रीकृष्ण का श्रृंगार किया जाता है. भगवान श्रीकृष्णावतार पर गृहस्थों के घरों में भगवान श्रीकृष्ण की लीला की झांकियां सजाई जाती हैं. सभी जन रात्रि के बारह बजे तक उपवास करते हैं. भक्तगण घरों मे सजाई गयी मूर्तियों के समक्ष या मन्दिरों में समवेत स्वर मे आरती करते हैं व भगवान का गुणगान करते हैं.
इस कारण वैष्णव जन गृहस्थों के अगले दिन मनाते हैं कृष्ण जन्माष्टमी
श्रीमदभागवत सहित अन्य धर्मग्रन्थों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का अवतार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि, बुधवार को रोहिणी नक्षत्र एवं वृष राशिस्थ चन्द्रकालीन अर्धरात्रि को हुआ था. परन्तु इन सभी निर्णायक तथ्यों की विद्यमानता प्रतिवर्ष भाद्रपद कृष्ण जन्माष्टमी के दिन नहीं हो पाती है, अर्थात यदि अष्टमी अर्धरात्रि में आ जाय तो कभी रोहिणी नक्षत्र का अभाव रहता है. यदि अर्धकालीन रोहिणी हो तो अष्टमी तिथि नही होती है. इसी कारण हमारे पुराणों और व्रत निर्णायक धर्मग्रन्थों में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के लिए गृहस्थ और वैष्णव सम्प्रदायों के लिए भिन्न-भिन्न निर्णायक सिद्धान्तों से किया गया है. सभी पंचांगकारों ने सिद्धांत रूप में स्मार्तों (गृहस्थों)के लिए अर्धरात्रि एवं चन्द्रोदय व्यापिनी अष्टमी में व्रतादि करने की मान्यता दी है.
ॠषि व्यास, नारद आदि ॠषियों के अनुसार सप्तमी युक्ता अष्टमी ही व्रत पूजन हेतु ग्रहण करनी चाहिए. इस प्रकार स्मार्त (गृहस्थी) जन अर्धरात्रि अष्टमी का चयन करते हैं. वे भगवान कृष्ण से सम्बन्धित समस्त धार्मिक कार्य इसी दिन करते हैं. परन्तु वैष्णव अगले दिन व्रत करते है. अतः वैष्णवजनों के लिए 12 अगस्त ही ग्राह्य रहेगा.
व्रतधारी करें इस तरह पूजन
ज्योतिषाचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र ने बताया कि जन्माष्टमी को सम्पूर्ण दिन व्रत रखने का विधान हैं. यदि निर्जला व्रत न रह सकें तो दुग्धादि पेय पदार्थों को ग्रहण कर सकते है.
प्रातःकाल उठकर स्नानादि कर्मों से निवृत होकर व्रत का निम्न संकल्प करें- "अहं मम चतुवर्ग सिद्धि द्वारा श्रीकृष्ण देव प्रीतये जन्माष्टमी व्रतांगत्वेन श्रीकृष्ण देवस्य यथामिलितोपचारैः पूजनं करिष्ये"
इसके बाद केले के खम्भे, आम अथवा अशोक के पल्लव आदि से घर या मन्दिर का द्वार सजाएं. दरवाजे पर मंगल कलश आदि स्थापित करें. रात्रि में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या शालिग्राम जी की विधिपूर्वक पंचामृत से स्नान कराकर षोडशोपचार विधि से पूजन करें. इसमें वैदिक मन्त्र या केवल "ऊॅ नमो भगवते वासुदेवाय" मन्त्र का ही प्रयोग करें.
पूजन कर वस्त्रालंकार से सुसज्जित कर सुन्दर सजे हुए हिंडोले में मूर्ति को प्रतिष्ठित करें और धूप, दीप तथा अन्न रहित नैवेद्य व प्रसूति के समय सेवन होने वाले सुस्वादु मिष्ठान व मौसमी फल, पुष्प व नारियल, छुहारे, अनार, बिजौरे, पंजीरी, नारियल के मिष्ठान व नाना प्रकार के मेवों का प्रसाद सजाकर श्री भगवान को अर्पण करें.
दिन में भगवान की मूर्ति के सामने बैठकर कीर्तन करें व भगवान का गुणगान करें और रात्रि को 12 बजे गर्भ के जन्म लेने के प्रतीक स्वरूप खीरा फोड़कर भगवान का जन्म कराएं व जन्मोत्सव मनाएं.
जन्मोत्सव के पश्चात कर्पूरादि प्रज्जवलित कर समवेत स्वर से भगवान की आरती और स्तुति करें, इसके पश्चात प्रसाद वितरण करें. विष्णुपुराण के अनुसार जो जन्माष्टमी का व्रत करता है, वह भगवान विष्णु को प्राप्त हो जाता है.
वाराणसी से प्रकाशित हृषिकेश पंचांग के अनुसार 11 अगस्त दिन मंगलवार को सूर्योदय 5 बजकर 30 मिनट और सप्तमी तिथि प्रातः 6 बजकर 14 मिनट तक पश्चात सम्पूर्ण दिन और पूरे रात्रि पर्यन्त अष्टमी तिथि है.
इस दिन भरी नक्षत्र प्रातःकाल से लेकर रात को 11बजकर 18 मिनट तक,पश्चात कृतिका नक्षत्र है. चन्द्रोदय रात को 11 बजकर 21 मिनट पर है. अर्धरात्रि में अष्टमी तिथि होने से यह कृष्ण जन्माष्टमी (गृहस्थ जनों के लिए )पूर्ण मान्य तिथि रहेगी। वहीं 12 अगस्त दिन बुधवार को प्रातःकाल 8 बजकर 1 मिनट तक अष्टमी होने से (उदय व्यापिनी)वैष्णवों के लिए यही ग्राह्य रहेगा.
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