Muharram 2021: जानें कब है मोहर्रम और क्या छुपा है इसके इतिहास के पीछे

Smart News Team, Last updated: Mon, 16th Aug 2021, 7:34 AM IST
  • इस्मलाम धर्म में मोहर्रम का त्योहार बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण होता है. वैसे तो इस त्योहार को वो लोग मातम के रूप में मनाते हैं. शिया मुस्लिम 10 दिन तक इमाम हुसैन की याद में शोक मनाते हैं. 
मोहर्रम 2021

इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना मोहर्रम के महीने को माना जाता है. इसी महीने में आशुरा 10 वें दिन सेलिब्रेट किया जाता है. इस्लाम धर्म का ये सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है. उस बार 19 अगस्त 2021 को ये त्योहार मनाया जाने वाला है.इस्लाम धर्म में ऐसी मान्यता है कि इमाम हुसैन का अशुरा के दिन सिर कलम कर दिया गया था असुरा की लड़ाई के दौरान. यही कारण है कि इस दिन सुलूस और तजिया निकालने की परंपरा भी शुरू अशुरा के दिन जो मुसलमान तैमूरी रिवायत को मनाते हैं, वो लोग रोजा और नमाज के साथ तजियों- अखाड़ों को दफन करते हैं या ठंडा कर शोक मनाते हैं. मालूम हो फजीलत और हजरत इमाम हुसैन की शहादद पर इस दिन मस्जिदों में विशेष प्रकार की तकरीरें की जाती हैं. 

ऐसी इस्लामिक मान्यता है कि मोहम्मद हुसैन के नाती की शहादत को अशुरा के रूप में मनाया जाता है. शिया और सुन्नी दोनों ही मुस्लिम समुदाय इस पर्व को अपने- अपने तरीके से मनाते हुए दिखाई देते हैं. तो वहीं मोहर्रम को इमाम हुसैन की शहादत के रूप में मनाया जाता है. ये कोई त्योहार नहीं होता है, बल्कि इस मातम के रूप में मनाया जाता है. इमाम हुसैन की याद में 10 दिन तक शिया मुस्लिम शोक मनाते हैं. बता दें इमाम हुसैन को अल्लाह के रसूल यानी मैसेंजर पैगंबर मोहम्मद का नवासा कहा जाता है.

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 मक्का से दूर कर्बला के गवर्नर यजीद ने मोहम्मद साहब के मरने के लगभग 50 साल बाद खुद को खलीफा घोषित किया था. अब सीरिया का नाम से लोग कर्बला को जानते हैं. यजीद चाहता था कि वो वहां इस्लाम का शहंशाह बने. इसी कारण से उसने लोगों में अपना खौफ फैलाना, और उन पर अत्याचार करना शुरू कर दिया.यजीद चाहता था कि वो पूरे अरब पर कब्जा कर ले. हालांकि हजरत मुहम्मद के वारिस और कुछ साथियों ने मना कर दिया कि वो यजीद के सामने घुटने नहीं टेकेंगे, और उसका मुकाबला करेंगे. 

इमाम हुसैन ने अपनी बीवी और बच्चों की सलामती के लिए इराक की तरफ जाने का फैसला दिया. उसी दौरान यजीद ने कर्बला के पास उनपर हमला बोल दिया. यजीद की फौज का इमाम हुसैन और उनके साथियों ने खूब मुकाबला किया. यजीद के पास 8 हजार से अधिक सैनिक थे तो वहीं हुसैन के काफिले में महज 72 लोग थे. इसके बावजूद यजीद के फौज के सामने उन लोगों ने घुटने टेकना स्वीकार नहीं किया. इस युद्ध में हालांकि वो लोग जीते नहीं और शहीद हो घए. इस लडाई में हुसैन किसी तरह से बचे. 2 से 6 तक ये लड़ाई मुहर्रम चली.

 

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