Navratri 2021: नवरात्रि में अखंड ज्योति का होता है बेहद महत्व, जानें इसके नियम
- नवरात्रि के दिनों में मां दुर्गा का आर्शीवाद पाने के लिए अखंड दीप प्रज्वलित करने का अपना एक खास महत्व है. पहले दिन ही कलश स्थापित होने के बाद इसे जलाई जाती है

चैत्र मास में पड़ने वाले नवरात्रि को चैत्र नवरात्रि कहते हैं और अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पड़ने वाली नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि कहा जाता है. दोनों ही नवरात्र के अपने अपने खास महत्व है. शारदीय नवरात्र की शुरुआत 7 अक्टूबर से हो चुकी है और 15 अक्टूबर 2021 को इसका समापन होगा. 9 दिनों तक चलने वाले नवरात्र में माता के अलग अलग नौ रूपों की पूजा का विधान होता है.
नवरात्रि के दिनों में मां दुर्गा का आर्शीवाद पाने के लिए अखंड दीप प्रज्वलित करने का अपना एक खास महत्व है. पहले दिन ही कलश स्थापित होने के बाद इसे जलाई जाती है और अपने मन में देवी के प्रति समर्पण और भक्ति को दर्शाया जाता है. यह तन और मन में अंधकार को दूर करने का प्रतीक होता है. अखंड ज्योति को नवरात्रि में प्रज्वलित करने के अपने नियम होते हैं. यह माना जाता है कि अगर यह पूरे 9 दिन प्रज्वलित रही तो पुण्य मिलता है और घर में सुख शांति और सम्पन्नता आती है. मां का आर्शीवाद पूरे परिवार को मिलता है. लेकिन अगर यह बुझ गया तो इसे अपशगुण माना जाता है.
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कहा जाता है कि भक्त संकल्प लेकर नवरात्रि में अखंड ज्योति प्रज्वलित करने से माता रानी खुश हो जाती है और मनोकामना पूरी होगी. इस दीपक के सामने जप करने से हजार गुणा फल मिलता है.
अखंड ज्योति जलाने के नियम
सबसे पहले अखंड ज्योति को किसी लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़े बिछाकर रखकर जलाएं. इस बात का ध्यान रखें कि ज्योति को रखने से पहले इसके नीचे अष्टदल बना हो. अखंड ज्योति को गंदे हाथों से बिल्कुल भी छूना न छुए. अखंड ज्योति को कभी अकेले या पीठ दिखाकर नहीं जाना चाहिए. दीप जलाने के लिए शुद्ध देसी घी का इस्तेमाल करना चाहिए. आप तिल का तेल या सरसों का तेल भी प्रयोग कर सकते हैं. अगर आप घर में अखंड ज्योति की देखभाल नहीं कर सकते हैं तो आप किसी मंदिर में देसी घी अखंड ज्योति के लिए दान करें.
अखंड ज्योति के लिए रूई की जगह कलावे का इस्तेमाल करना चाहिए. कलावे की लंबाई इतनी हो कि ज्योति नौ दिनों तक बिना बुझे जलती रहे. अखंड ज्योति जलाते समय मां दुर्गा, शिव और गणेश को ध्यान में रखें और ‘ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।‘ जप करें.
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