टेक्नोलोजी का जमाना, आसान हुआ फटाफट ब्रिज बनाना
- समय के साथ बदलते भारत को टेक्नॉलॉजी का भारत कहे तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. आधुनिक मशीनों और उम्दा तकनीक से युक्त रेलवे ने फटाफट ओवरब्रिज बनाने की महारत हासिल कर ली है. मौजूदा समय में रेलवे अपनी यह प्रतिभा डेडीकेटेड फ्रेट कॉरीडोर परियोजना में बखूबी इस्तेमाल कर रहा है.
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मेरठ. बताते चलें कि रेलवे डेडीकेटेड फ्रेट कॉरीडोर परियोजना के तहत 1800 किलोमीटर लंबा रेल मार्ग का निर्माण कर रहा है. पहले जहां नदी और नालों पर ओवरब्रिज बनाने के लिए कंक्रीट के खंबे और गर्डर कटनी का इस्तेमाल मैं ओवरब्रिज निर्माण में महीनों का समय लगता था. इससे ना केवल समय की बल्कि धन की भी अधिक खपत होती थी. यही नहीं ओवर ब्रिज तैयार करने के दौरान यातायात भी बुरी तरह प्रभावित रहता था.
डेडीकेटेड फ्रेट कारी डोर परियोजना कि कार्यदाई संस्था एल एंड टी के हेड प्रोजेक्ट एडमिन डॉक्टर रमन चौधरी ने बताया कि पुरानी तकनीक में पहले पिलर बनाया जाता था उसके बाद गर्डर स्थापित किए जाते थे बाद इसके उस पर छत डाली जाती थी. लेकिन अब डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर परियोजना के निर्माण में रेलवे की ओर से नई तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है. इस तकनीक में ओवरब्रिज बनाने में चंद घंटों का ही समय लग रहा है.
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अब ओवर ब्रिज बनाने के लिए चिन्हित स्थानों पर रेलवे के इंजीनियर आधुनिक मशीनों का इस्तेमाल करते हुए सड़कों, पुलियों के दोनों तरफ पिलर तैयार कर रहे हैं. उन खंभों पर गर्डर रखे जाने के लिए रेलवे के इंजीनियरों द्वारा जो मशीनें इस्तेमाल की जा रही है वैसी मशीनें देश में अब तक कभी नहीं प्रयोग में लाई गई है. यह मशीन है चंद घंटों में ही दोनों खंभों के बीच में गर्डर रख देती हैं. इस नई तकनीक के साथ काम कर रहे श्रमिक कुछ ही घंटों में नट बोल्ट लगा कर गर्डर को फिक्स कर देते हैं.
डेडीकेटेड फ्रेट कारी डोर परियोजना के हेड प्रोजेक्ट एडमिन डॉ चौधरी की माने तो महानगर के मोहिद्दीन पुर में दिल्ली रोड पर इसी तकनीक के तहत ओवरब्रिज बनाया जाएगा. दीपावली के बाद से इस ओवर ब्रिज के बनाए जाने का कार्य शुरू करा दिया जाएगा.
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