सुहागिनें इसलिए रखती हैं वट सावित्री का व्रत, ये है धार्मिक महत्व
- भारतीय संस्कृति में सावित्री को पतिव्रता और आदर्श नारी के रुप में देखा जाता है. सावित्री अपने पति के प्राण वापस लाने के लिए यमराज के पीछे पड़ गईं थी और उनके प्राण वापस लेकर ही लौटीं. इसी कीरण से हर साल ज्येष्ठ की अमावस्या को वट सावित्री का व्रत रखा जाता है.

वट सावित्री व्रत उत्तर भारत के इलाके जैसे दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, उड़ीसा और मध्य प्रेदश में ज्येष्ठ की अमावस्या को सेलिब्रेट किया जाता है. तो वहीं उत्तर भारतीयों की तुलना में दक्षिणी भारतीय राज्यों, महाराष्ट्र और गुजरात में सुहागिनें इस व्रत को 15 दिन बाद यानी ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को वट सावित्री का व्रत रखती हैं. बता दें सुहागिनें अपने पति की लंबी उम्र के लिए वट सावित्री का व्रत रखती हैं.
ये है वट सावित्री व्रत का महत्व
सावित्री व्रत कथा पर गौर करें तो वट वृक्ष के नीचे ही सावित्री के मृत पति सत्यवान के प्राण वापस आए थे. साथ ही उनके सास-ससुर को भी वट वृक्ष के नीचे ही दिव्य ज्योति प्राप्त हुई थी. पुराणों में ऐसा कहा गया है कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ही देवता वट वृक्ष में वास करते हैं. ऐसे में अगर आप इसके नीचे बैठकर पूछा करते हैं, और कथा सुनते हैं तो आपकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है. बता दें वट वृक्ष के नीचे ही भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी.
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इसलिए ज्ञान, निर्वाण और दीर्जायु तीनों का पूरक वट वृक्ष को माना जाता है. सुहागिनें इस दिन व्रत और पूजा करके वट वृक्ष की परिक्रमा करती हैं, साथ ही सूत के धागे को लपेटती हैं. ऐसा करने के बाद स्त्री अपने पति को रोली और अक्षत लगाती हैं, उसके बाद चर्णस्पर्श कर उन्हें प्रसाद देती हैं. इसके अलावा इस दिन पतिव्रता सावित्री की तरह दी अपने सास-ससुर की भी उचित तरीके से पूजा और सम्मान करना चाहिए.
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