Yogini Ekadashi:इस दिन है योगिनी एकादशी का व्रत, जानें शुभ मुहूर्त, डेट और महत्व

Smart News Team, Last updated: Sat, 3rd Jul 2021, 11:27 AM IST
  • हिंदू धर्म में एकादशी का बहुत ही ज्यादा महत्व होता है. ऐसा कहा जाता है कि एक एकादशी 88 हजार ब्रह्माणो को भोजन कराने के बराबर होता है. जो व्यक्ति इस व्रत को विधि-विधान से करता है उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है.
योगिनी एकादशी कब है

एकादशी को हिंदू धर्म में बहुत ही ज्यादा विशेष महत्व दिया जाता है. एकादशा हर महीने में दो बार पड़ती है. आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष को जो एकादशी पड़ती है उसे शयनी एकादशी और योगिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. धार्मिक मान्यताओं पर गौर करें तो जो मुनष्य इस व्रत को करता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं. सभी सुख को भोगते हुए उसे अंत में परलोक की प्राप्ति होती है. तानों लोको में एकादशी बेहद ही प्रसिद्ध है. इस साल योगिनी एकादशी की बात करें तो वो 5 जुलाई 2021 को पड़ने वाली है.

ये है योगिनी एकादशी के लिए शुभ मुहूर्त

5 जुलाई 2021 यानी सोमवार को योगिनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा. 4 जुलाई को रात 7 बजकर 55 मिनट से एकादशी तिथि की शुरुआत हो जाएगी, जो 5 जुलाई को रात 10 बजकर 30  मिनट तक रहने वाली है. तो वहीं व्रत के बाद पारण की बात करें तो मुहूर्त 6 जुलाई को सुबह के 5 बजकर 29 मिनट से इसकी शुरुआत होगी जो सुबह 8 बजकर 16 मिनट तक रहेगा. 

ये है योगिनी व्रत का महत्व

ऐसा कहा जाता है कि यो भी योगिनी एकादशी का व्रत रखता है उसके सारे कष्ट खत्म हो जाते है. साथ ही इस व्रत के प्रभाव से ऐसा माना जाता है कि घर में शांति और सुख- समृद्धि की बढ़ोतरी होती है. एकादशी का व्रत रखने वाले लोग मृत्यु के उपरांत स्वर्ग लोक जाते हैं. ये भी कहा जाता है एक एकादशी का व्रत 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने जितना होता है.

योगिनी एकादशी व्रत के नियम

दशमी तिथि की रात्रि से ही योगिनी एकादशी के उपवास की शुरुआत हो जाती है.  इस व्रत के दौरान तामसिग भोजन का त्याग कर देना चाहिए, और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए. इस दिन जमीन पर ही सोना चाहिए. सुबह सवेरे स्नान इत्यादि कर भगवान विष्णु की पूजा आराशना करनी चाहिए. योगिनी एकादशी की कथा इस दिन जरुर ही सुननी चाहिए. जो वोग दान करते हैं उसका बहुत ही कल्याण होता है. इस दिन पीपल के पेड़ की भी पूजा करनी चाहिए. रात में सोना नहीं चाहिए बल्कि भजन किर्तन करते हुए जागरण करना चाहिए. मन में किसी प्रकार का क्रोध और द्वेष की भावना नहीं लाना चाहिए. द्वादशी तिथि को सबसे पहले ब्रह्माण को भोजन कराए भी खुद भोजन ग्रहण करें.

 

 

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