मकर संक्रांति के दिन भीष्म पितामह ने त्यागी थी अपनी देह, जानें पौराणिक महत्व

Pallawi Kumari, Last updated: Mon, 10th Jan 2022, 3:51 PM IST
  • हिंदू धर्म में मकर संक्रांति का खास महत्व होता है. इस दिन सूर्य देव उत्तरायण होते हैं. मकर संक्रांति के दिन स्नान-दान और सूर्य देव की पूजा की जाती है. मकर संक्रांति का महाभारत से गहरा संबंध हैं. भीष्म पितामाह 58 दिनों तक बाणों की शैया पर रहे लेकिन उन्होंने मकर संक्रांति के दिन अपने प्राण त्यागे.
भीष्म पितामह ने इस दिन तागे थे अपने प्राण

मकर संक्रांति हिंदू धर्म में साल का पहला त्योहार होता है. इस दिन स्नान, दान और सूर्य देव की उपासना की जाती है. मकर संक्रांति के दिन सूर्य बुध राशि से निकलकर मकर राशि में गोचर करते हैं इसलिए इस दिन को मकर संक्रांति कहा जाता है. सूर्य को सभी ग्रहों का राजा कहा जाता है. मकर संक्रांति के दिन से ही खरमास खत्म हो जाता है और वंसत ऋतु के आगमन के संकेत मिलने लगते है. वैसे तो मकर संक्रांति से जुड़ी कई कथाएं और मान्यताएं हैं.

लेकिन क्या आप जानते हैं कि मकर संक्रांति का महाभारत काल से खास संबंध है. अगर नहीं तो ये खबर आपके लिए हैं. आइये जानते हैं मकर संक्रांति और महाभारत काल से जुड़ी ये पौराणिक कथा.

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ये है कथा-

महाभारत का युद्धा पूरे 18 दिनों तक चलाथा. इस युद्ध में भीष्म पितामह ने 10 दिन तक कौरवों की ओर से युद्ध लड़ा. रणभूमि में भीष्म पितामह के युद्ध कौशल से पांडव व्याकुल थे. पांडवों ने शिखंडी की मदद से भीष्म को धनुष छोड़ने पर मजबूर किया और फिर अर्जुन ने एक के बाद एक कई बाण मारकर पितामह को धरती पर गिरा दिया. अर्जुन के बाणों से बुरी तरह घायल होने के बाद भी भीष्म पितामह की मौत नहीं हुई क्योंकि उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान मिला था. 

भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्यागने के लिए सूर्य के उत्तारायण होने का इंतजार किया, क्योंकि इस दिन प्राण त्यागने वालों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण होते हैं और इसी दिन भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्याग दिए. इसके साथ ही भीष्म पितामह ने प्रण लिए थे कि जब तक हस्तिनापुर सभी की ओर से सुरक्षित नहीं हो जाता है वे प्राण नहीं त्यागेंगे.

सत्यनिष्ठा और पिता के प्रति अटूट प्रेम के कारण भीष्ण पितामह ये वरदान मिला था कि वे अपनी मृत्यु का समय खुद निश्चित कर सकते थे. भीष्म पितामह का नाम देवव्रत था. उन्होंने गंगाजल हाथ में लेकर शपथ ली थी कि आजीवन अविवाहित रहूंगा और इसी प्रतिज्ञा के कारण उनका नाम भीष्म पड़ा और उन्होंने जीवनभर ब्रह्मचर्य का पालन किया.

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