आजादी के 70 साल बाद भी 'अंग्रेजों' से लड़ रहे हैं पटना खास महल के वोटर

Smart News Team, Last updated: Fri, 30th Oct 2020, 11:15 PM IST
  • पटना के बांकीपुर विधानसभा क्षेत्र में खास महल में रहने वाले इस बार बिहार चुनाव में वोटिंग नहीं करेंगे. खास महल में रहने वाले लोग 100 साल पहले अंग्रेजी हुकूमत में बने कानून को खत्म करने की मांग कर रहे हैं.
पटना के खास महल में बना एक घर.

आजादी के 70 सालों बाद भी पटना के कई निवासी अभी भी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं. राजधानी पटना में दूसरे चरण में 3 नवंबर को मतदान होना है. इस बार यहां के निवासियों ने उस पार्टी को वोट देने का फैसला किया है जो उन्हें 100 साल पहले बनाए गए अंग्रेजी कानूनों से मुक्ति दिलाएगा.

1915-20 में पटना में गंगा किनारे बसने वाले अंग्रेजों ने शहर में कई बस्तियों का निर्माण किया था जिन्हें खास महल कहा जाता है. इस इलाके में सरकारी कर्मचारी, जज, डॉक्टर्स, बड़े जमींदार और राजनीतिज्ञ लोगों को पट्टे पर छोटे और बड़े प्लॉट बेचे जाते थे.

पटना में 500 एकड़ में फैला है खास महल

सबसे बड़ा खास महल पटना के बीचो-बीच कदम कुआं में स्थित है जहां दो कट्ठे से लेकर 12 कट्ठे तक प्लॉट प्रख्यात लोगों को बेचे जाते हैं. यहां कांग्रेस नेता अनुग्रह नारायण सिन्हा, पूर्व मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिन्हा के पिता, सुंदरी देवी, लाल बहादुर शास्त्री की बहन, बाबू जगजीवन राम, जयप्रकाश नारायण, बिजनेसमैन बच्चा बाबू के भी प्लॉट हैं. बाद में महेंद्रु मोहल्ला, चिरैयाटांड़, छज्जू बाग और पटना म्यूजियम एरिया जैसे अन्य क्षेत्रों में भी इसी तरह की छोटी बस्तियां बनाई गईं.

हालांकि जमीन का मालिकाना हक ब्रिटिश सरकार के पास रहा. हालांकि कुछ लोगों को हमेशा के लिए पट्टे का अधिकार दिया गया था, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जारी रहा. अधिकांश को 99 साल, 66 साल या 30 साल के लिए पट्टे पर जमीन मिली और पट्टे की समाप्ति से पहले इस रिन्यू कराने के लिए बाध्य किया गया. बिहार में खास महल क्षेत्र के अंतर्गत 3,700 एकड़ से अधिक भूमि है जिसमें से 500 एकड़ अकेले पटना में हैं.

खास महल में रहने वाले लोगों को 100 साल बाद भी मालिकाना हक नहीं मिला है.

100 सालों बाद भी नहीं मिला मालिकाना हक

कदमकुंआ खास महल क्षेत्र पटना के बांकीपुर विधानसभा के अंतर्गत आता है. कदमकुंआ खास महल सिटीजन वेलफेयर सोसाइटी के सदस्य राकेश सरन कहते हैं, 'आजादी के बाद भी यह व्यवस्था जारी रही. लोगों ने इस भूमि के लिए भारी राशि का भुगतान किया था. मेरे दादा ब्रिटिश काल के दौरान डिप्टी कलेक्टर थे. उन्होंने दूसरों के साथ 1700 -2000 रुपये प्रति कट्ठा का भुगतान किया था, जब सोना मुश्किल से 5-6 रुपये प्रति दस ग्राम के लिए उपलब्ध था. इसके बावजूद उन्हें स्वामित्व की अनुमति नहीं थी. सबसे ज्यादा निराशाजनक बात यह है कि अभी मालिकाना हक से इनकार किया जा रहा है.'

जमीन का नहीं कर सकते हैं कमर्शियल इस्तेमाल

सीमित मालिकाना हक के चलते पट्टे के नवीनीकरण को लेकर हमेशा एक खतरा बना हुआ होता है. साथ ही जिनके पास जमीनें हैं वो अपनी संपत्ति को व्यावसायिक परिसरों में बदलने के लिए भी स्वतंत्र नहीं हैं. सरन कहते हैं, 'हर चुनाव के दौरान राजनीतिक दल हमें विश्वास दिलाते हैं कि पट्टे की प्रणाली को समाप्त कर दिया जाएगा, लेकिन हमारे पास अभी भी कोई स्वामित्व नहीं है. इस बार हमने चुनावों के बहिष्कार की धमकी दी है. अगर हम मतदान में शामिल होने के लिए सहमत होते हैं तो भी केवल उस राजनीतिक दल को वोट देंगे, जो इस दिशा में कदम उठाने का वादा करता है.'

खास महल सिटीजन वेलफेयर सोसाइटी के वाइस प्रेसिडेंट राजीव शर्मा बांकीपुर विधानसभा क्षेत्र के नवल किशोर पथ पर रहते हैं. वह कहते हैं, 'पट्टे के अधिकार खोने और घरों से बेदखल होने का खतरा हमेशा बना रहता है. यह पट्टे की प्रणाली के कारण है. नवीनीकरण हमेशा एक बड़ी समस्या रही है. हालांकि इसके लिए राशि बहुत ज्यादा नहीं है लेकिन व्यवस्था ने इसे जटिल बना दिया है.'

खास महल में बने घर में कुछ भी बदलाव करने से पहले सरकार से इजाजत लेनी पड़ती है.

कुछ करने से पहले लेनी होती है सरकार से इजाजत

राजीव शर्मा आगे कहते हैं, 'इसके अलावा संपत्ति के व्यावसायिक उपयोग की अनुमति नहीं है क्योंकि यह ब्रिटिश शासकों द्वारा शुद्ध रूप से आवासीय उद्देश्यों के लिए बनाया गया था. परिवार के कई सदस्य अब दूसरे शहरों में बस गए हैं या विदेशों में हैं. वे कुछ वाणिज्यिक उद्यमों के लिए संपत्ति को किराए पर देना चाहते हैं. कई लोग संपत्ति को बेचना भी चाहते हैं. जब तक क्षेत्र फ्री होल्ड में बदल नहीं जाता, तब तक कुछ भी संभव नहीं है.'

खास महल में रहते हैं 10 हजार से ज्यादा परिवार

राजीव शर्मा ने बताया, 'दशकों पहले बनाई गई पुरानी संरचना में कोई भी बदलाव संभव नहीं है. अगर हम अपने वॉश रूम को फिर से तैयार करने की योजना बनाते हैं तो भी सरकार की अनुमति के बिना ऐसा नहीं कर सकते हैं क्योंकि हम पट्टेदार हैं. हाल ही में हमारे एक पड़ोसी ने धैर्य खो दिया और व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए एक संरचना तैयार की. कुछ दिनों के भीतर यूनिट को सील कर दिया गया, जबकि परिवार को पट्टा रद्द करने का नोटिस दे दिया गया. मेरे पड़ोसी जिनकी परिवार में शादी है और घर को रंगवाने की जरूरत है, बिना सरकारी अनुमति के ऐसा करने से डरते हैं.'

खास महल में 10 हजार से ज्यादा परिवार रहते हैं. बांकीपुर निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा के उम्मीदवार नितिन नवीन ने कहा कि वह निश्चित रूप से इस मुद्दे को सुलझाने और इस दिशा में ठोस कदम उठाने की कोशिश करेंगे. बिहार में पटना के अलावा मुंगेर, पूर्णिया और कटिहार में भी खास महल के इलाके हैं.

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