बेंगलुरु में होटल मैनेजमेंट कोर्स करेंगी बिहार के आश्रय गृहों की 16 लड़कियां

Smart News Team, Last updated: Mon, 4th Jan 2021, 11:36 PM IST
  • बिहार के बेगूसराय, गया, मधुबनी, पटना, मोतिहारी और पूर्णिया से अलग अलग बाल आश्रय गृह से 16 लड़कियों को बाल अधिकारिता और मानव अधिकार (ECHO) और सेंटर फॉर जुवेनाइल जस्टिस के साझा सहयोग से बैंगलोर में होटल मैनेजमेंट कोर्स के लिए शामिल किया गया था.
बेंगलुरु में होटल मैनेजमेंट कोर्स करेंगी बिहार के आश्रय गृहों की 16 लड़कियां

पटना: मुजफ्फरपुर के बालिका गृह (sheltar home) का मामला, टाटा इस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज(TISS) के ऑडिट के बाद सार्वजनिक रूप से बहार आया और देश भर मे इस कांड को लेकर आक्रोश फैल गया. जिसके बाद इस केस की जांच के लिए सीबीआई को सौंपी गई. उसी अध्ययन का एक और पहलू निकल कर सामने आया है जो बाल आश्रय गृह के लिए नई सुबह की तरह है.

बिहार के बेगूसराय, गया, मधुबनी, पटना, मोतिहारी और पूर्णिया से अलग अलग बाल आश्रय गृह से 16 लड़कियों को बाल अधिकारिता और मानव अधिकार (ECHO) और सेंटर फॉर जुवेनाइल जस्टिस के साझा सहयोग से बैंगलोर में होटल मैनेजमेंट कोर्स के लिए शामिल किया गया था.

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समाज कल्याण विभाग के निदेशक राजकुमार ने बताया कि निदेशालय के अधिकारियों के साथ लड़कियों को हवाई यात्रा द्वारा पायलट प्रोजेक्ट के आधार पर बैंगलोर भेजा गया था. उन्होंने कहा कि " उम्मीद है कि इन लड़कियों के लिए यह एक नए क्षितिज की उड़ान होगी और दूसरे अन्य लड़कियों के लिए भी रॉल मॉडल बनेगी.

अपने लिए बेहतर रोज़गार पाने के लिए प्रशिक्षण के साथ- साथ वे अपने समग्र व्यक्तित्व के विकास के साथ सॉफ्ट स्किल के गुण भी सीखेंगी. उन्होंने बताया कि उनके एक साल के कोर्स पूरा होने के बाद संस्थान उन्हे सेवा उद्योग में नौकरी दिलाने मे भी मदद करेगी.

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एकीकृत बाल संरक्षण योजना (ICPS) के दिशा-निर्देशों के अनुसार, 18 वर्ष तक के बच्चों की देखभाल के लिए, प्रत्येक को 2000 रुपये की मासिक सहायता प्रदान की जाती है. ताकि सीसीआई से बाहर निकलने के बाद उन्हें बसाने में मदद मिल सके. "लेकिन यह पर्याप्त नहीं है, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए विभाग द्वारा इस पहल को जारी रखते हुए," निदेशक ने कहा कि, बैंगलोर में भेजी गई लड़कियों को 2000 रुपए मिलते रहेगी जिसकी वो हक़दार हैं.

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उन्होंने आगे बताते हुए कहा कि बाल आश्रय गृह से आगे भी आने वाले दिनों में विभिन्न क्षेत्रों में परिशिक्षण के लिए भेजा जाएगा, ताकी वे आगे अपने जीवन में कहीं भटकने के बजाए आत्मनिर्भर बन सकें. उन्होंने कहा कि विभाग का ध्यान संस्थान के बाहर बच्चों की वैकल्पिक देखभाल पर है, जिसमें कुछ कमी थी. साथ ही राज्य को उन कार्यक्रमों पर अधिक से अधिक निवेश करने की आवश्यकता है, जो संस्थान में रहने वाले बच्चों को बाहर जाने, कौशल सीखने और स्वतंत्र होने मे सक्षम बनाएंगे.

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टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के ऑडिट के परिणाम से डगमगाया और जिसने पुरे बिहार राज्य को दुनियां भर मे बदनाम कर दिया था, जिसके बाद समाज कल्याण विभाग ने बाल सुधार गृह मे देखभाल के गुणवत्ता मे सुधार के कई कदम उठाए थे, जो आज रंग ला रही है.

 

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