खेलने की उम्र में कराया 16 से 18 घंटे काम, कितनों को मार गया लकवा तो कुछ की मौत
- जयपुर की चुड़ी फैक्ट्रियों में नन्हें मासूम छोटे-छोटे बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ हो रहा था, यहां इनके बचपन के साथ खेला जा रहा था, इन बच्चों को रोबोट बना दिया गया है. जहां इनसे 16 से 18 घंटे काम कराया जा रहा था, कई बच्चों की हालत इतनी बुरी थी की उनकी रीढ़ की हड्डी टेढ़ी हो गई.
पटना: खेल कूदने और पढ़ने की उम्र में अगर आपके नाबालिग बच्चे को 16 से 18 घंटे काम कराना पड़े तो आप कैसा महसूस करेंगे, अगर उसे 16 से 18 घंटे एक ही मुद्रा में रखा जाए तो उसकी क्या हालत होगी या फिर अगर ऐसा ही बर्ताव किसी व्यस्क के साथ किया जाए तो क्या यह उचित है, क्या उसका शरीर इतनी कड़ी मेहनत को झेल पाएगा. जी नहीं बिलकुल नहीं क्योंकि इंसान सिर्फ एक सीमित समय तक ही मेहनत कर सकता है. लेकिन जयपुर चूड़ी फैक्ट्रियों में इसका उल्टा हो रहा है, इन नन्हें मासूम छोटे-छोटे बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ हो रहा था.
यहां इनके बचपन के साथ खेला जा रहा था, इन बच्चों को रोबोट बना दिया गया है. जहां इनसे 16 से 18 घंटे काम कराया जा रहा था, कई बच्चों की हालत इतनी बुरी थी की उनकी रीढ़ की हड्डी टेढ़ी हो गई, फैक्ट्रियों के चुंगल से छुड़ाए गए बच्चों के पीठ में असहनीय दर्द है. इन फूलों जैसे कोमल हाथों से 16-18 घंटे चूड़ी पर नग बैठाने के काम लिया जा रहा था. दिन-रात एक सी मुद्रा में बैठे रहना, खाने में चावल और सब्जी और आराम के नाम पर सिर्फ छह घंटे की नींद. न खेल, न खिलौने, कांच और लाह की चूड़ियों में बचपन को तलाशने वाले बालश्रमिकों के रीढ़ टेढ़ी हो गई है. उनकी पीठ में असहनीय दर्द है.
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बिहार बाल कल्याण समिति के सदस्यों की पहल से इन बच्चों को तीन जुलाई को जयपुर की चूड़ी फैक्ट्रियों से मुक्त कराकर 92 बालश्रमिक राजधानी पटना लाये गये. जब ट्रेन से एक बच्चे को व्हील चेयर से उठाया गया तो बाल कल्याण समिति के सदस्यों की आंखों में आंसू आ गये. वह समस्तीपुर का रहने वाला था. 14 साल का बाल श्रमिक चूड़ी फैक्ट्री में इतना काम कराया जाता था कि उसकी रीढ़ की हड्डी जकड़ गई और इसका नतीजा यह हुआ कि उसके पूरे शरीर में लकवा मार दिया है.
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जयपुर चूड़ी फैक्ट्रियों से मुक्त कराये गये अधिकांश बच्चे पीठ दर्द से ग्रसित या रीढ़ की हड्डी में समस्या से ग्रसित मिल रहे हैं. पिछले साल से अब तक जयपुर चूड़ी फैक्ट्री से मुक्त कराये गये दो सौ से अधिक बाल श्रमिक अपने घर लौट गये हैं. लेकिन इन बच्चों का सामान्य जिन्दगी में लौटना बहुत मुश्किल हो गया. बाल संरक्षण विशेषज्ञ सुरेश कुमार बताते हैं कि इस साल अब तक जयपुर चूड़ी फैक्ट्री से 272 बालश्रमिक मुक्त हुए हैं. इसमें से 112 बालश्रमिक गया के थे. काउंर्सिंलग के दौरान अधिकतर बालश्रमिकों ने रीढ़ में दर्द की बात बतायी है. कई बच्चों का इलाज भी चल रहा है.
गया से सबसे अधिक बच्चों की तस्करी
गया: 27, समस्तीपुर:10, नालंदा:06, सीतामढ़ी :16, वैशाली : 07, मुजफ्फरपुर: 08, सहरसा:01, दरभंगा:03, कटिहार:04, जहानाबाद: 07, नवादा: 03 है. जयपुर की चूड़ी फैक्ट्री में जाने वाले सबसे अधिक बच्चे गया के मिल रहे हैं. पिछले साल से अब तक गया के ही सबसे अधिक बच्चे जयपुर चूड़ी फैक्ट्री से मुक्त कराये गये हैं. इसमें चार बच्चों की मौत हो गयी है. चारों बच्चों को चूड़ी फैक्ट्री में बहुत प्रताड़ित किया जाता था. भूख और बीमारी से बच्चों की मौत हो गई. इसमें दो बच्चों का शव भी परिवार वालों को नसीब नहीं हुआ.
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