पटना की शू लांड्री: पुराने जूते नए जैसे चमकाने वाली शाजिया ने साबित कर दिया 'कोई धंधा छोटा नहीं होता'
- बिहार की राजधानी पटना की शाजिया कैसर ने साबित कर दिया है कि कोई भी धंधा छोटा नहीं होता. शाजिया वो हैं जिन्होंने बिहार में पहली बार शू लांड्री खोली और खुशी के साथ लोगों के पुराने जूतों को नए जैसे चमका कर दिए. पहले उनका मजाक बना लेकिन आज वे दूसरी महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं.
पटना. शाहरुख खान एक फिल्म में डायलॉग बोलते हैं ' अम्मी जान कहती हैं, कोई धंधा छोटा नहीं होता, धंधे से बड़ा कोई धर्म नहीं होता', सिनेमा हॉल में तो शाहरुख के इस डायलॉग पर दर्शकों ने सीटी, ताली खूब बजाई लेकिन क्या रील से बाहर आकर रियल लाइफ में ऐसा होता है. हां या नहीं, इसका जवाब तो किसी को नहीं मालूम लेकिन बिहार की राजधानी पटना की शाजिया कैसर ने इसी राह पर कुछ करने की ठानी और आखिरकार सफलता की सीढ़ियां उन्हें मिल ही गईं. हालांकि, आसान नहीं था उन्हें पटना में शू लांड्री चलाना, जी सही पढ़ा आपने यहां कपड़े नहीं जूतों की धुलाई, पोलिश की जाती है. पहले शाजिया के इस काम पर काफी लोगों ने मजाक बनाया लेकिन आज वही शाजिया एक प्रेरणा बन चुकी हैं. पढ़िए कैसे कुछ अलग करने की चाह में शाजिया ने मैले-कुचले जूतों के दम पर शाजिया ने खड़ा कर लिया कारोबार.
पटना की रहने वाली शाजिया कैसर पहले एक अच्छी कंपनी में जॉब करती थीं. रोजमर्रा का रूटीन फॉलो करते हुए वे सुबह दफ्तर जाती और शाम को घर लौट आतीं. कहीं न कहीं शाजिया का मन संतुष्ट नहीं था. इस बीच उन्होंने एक मैग्जीन में भारत में शू लांड्री की शुरुआत के बारे में पढ़ा. बस वहीं से मन में शू लांड्री खोलने के बारे में ख्याल आने लगे. हालांकि, इस बारे में लोगों से बात करती तो सब मजाक बनाते क्योंकि पटना में कोई शू लांड्री के कॉन्सेप्ट के बारे में जानते ही नहीं थे. लोगों के लिए ये बिलकुल नया चीज थी. इसके बावजूद शाजिया के मन से शू लांड्री का आइडिया नहीं गया. पति की सपोर्ट से आखिरकार शाजिया ने 2012 में शू लांड्री खोल दी.
अब कारोबार तो कर लिया लेकिन उसे चलाने को ग्राहक कई महीनों तक नहीं आए. इस दौरान काम जमाने को कई लोगों के फ्री में जूते साफ करके भी देने पड़े. जब लोगों को इस काम पता चलने लगा तो धीरे-धीरे शाजिया की मेहनत रंग लाने लगी. महिला उद्योग संघ के मेले में शू लांड्री के बारे में महिलाओं को बताना शुरू कर दिया. आखिरकार लोगों की समझ में आने लगी. जूतें शू लांड्री में जाते थे और फिर नए होकर वापस आते, वो भी सौ से डेढ़ सौ रुपये में. जब काम बढ़ गया तो शाजिया ने छह लोगों को मदद के लिए काम पर भी रख लिया. आज शाजिया इस काम से साल में करीब 6-7 लाख रुपये कमा लेती हैं और सबसे खास बात कि इस काम से पूरे राज्य में उनकी अपनी एक अलग इमेज है जो उनके इरादे को और मजबूत बनाकर रखती है.
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शोरूम के जूते से लेकर महंगे जूते की सफाई और पॉलिश करती हैं
शाजिया बताती हैं जब लोगों का विश्वास जगा तो आम से खास लोग भी जूतों की सफाई और पॉलिशिंग करवाने को आने लगे. शोरूम में जिन जूतों पर धूल जम जाती थी और गंदे हो जाते थे. उन जूतों को साफ करने का आर्डर आने लगा. वे बताती हैं पहले महीने के अंत में सैलरी आने का रास्ता देखती थी, आज दूसरों को नौकरी दे रही हैं.
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