कहलगांव फरक्का बिजली घरों से करार खत्म करेगी बिहार सरकार, 600 करोड़ की होगी बचत

Smart News Team, Last updated: Wed, 2nd Mar 2022, 11:06 AM IST
  • बिहार सरकार ने कहलगांव और फरक्का बिजली घरों से हुए करार को खत्म करने का फैसला किया है. इन इकाईयों से करार खत्म करने के बाद नितीश सरकार को हर साल 600 करोड़ की बचत होगी. करार खत्म करने के लिए आयोग में याचिका दाखिल कर दी गई है.
फाइल फोटो

पटना. नितीश सरकार ने बिजली खरीदारी में बड़ा फैसला लिया है. अब बिहार कहलगांव और फरक्का बिजली घरों से बिजली नही लेगा. इन बिजली घरों से करार खत्म करने के लिए बिहार विघुत विनियामक आयोग से अनुमति मांगी गई है. अनुमति मिलने के बाद बिजली कंपनी एनटीपीसी से करार खत्म करेगा. कहलगांव और फरक्का बिजली घरों से करार खत्म कर नितीश सरकार हर साल 600 करोड़ की बचत करेगा. इस बचत से उपभोक्ताओं को सस्ती बिजली मिल सकेगी. करार खत्म करने की अनुमति के लिए आयोग में याचिका भी दाखिल की गई है.

बिजली कंपनी के नुकसान को कम करने के लिए सरकार के शीर्ष स्तर पर बैठक हुई. जिसमें तय हुआ कि जिन इकाईयों से महंगी बिजली मिल रही है. उनसे करार खत्म कर दिया जाए. इसके अलावा जिन बिजली घरों से करार की अवधि समाप्त होने वाली है, उनका करार रिन्युअल न हो. ऊर्जा विभाग के प्रधान सचिव संजीव हंस ने बताया कि कंपनी का मकसद लोगों को सस्ती बिजली मुहैया कराना है. कहलगांव और फरक्का से बिजली लेना बंद होगा. लोगों की जरुरत के अनुसार एनटीपीसी की अन्य इकाईयों से 600 मेगावाट बिजली ली जाए, जो सस्ती हो.

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जानकारी के लिए आप को बता दे कि बिहार हालिया समय में जिस कीमत पर बिजली की खरीदारी कर रहा है वह राष्ट्रीय औसत से अधिक है. केंद्र सरकार की ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार देश में बिजली खरीद का राष्ट्रीय औसत 3.60 रुपए प्रति यूनिट है. वहीं बिहार का औसत खरीद 4.12 रुपए प्रति यूनिट है. पड़ोसी राज्यों की बात करे तो ओडिशा को 2.77 रुपए प्रति यूनिट, झारखंड को 3.99 रुपए प्रति यूनिट और पश्चिम बंगाल को 3.15 रुपए प्रति यूनिट दाम पर बिजली मिल रही है.

बिहार को महंगी बिजली मिलने के पीछे का कारण फिक्सड चार्ज को बताया जा रहा है. असल में बिहार सरकार बिजली खरीदे या न खरीदे उसे बिजली कंपनी को फिक्सड चार्ज देना ही पड़ता है. बिहार में हर महीने बिजली खपत अलग-अलग होती है. इसी वजह से खपत का आकड़ा भी अलग-अलग होता है. फिक्सड चार्ज के तौर पर हर महीने करोड़ो रुपए देने पड़ते हैं. फिक्सड चार्ज का भार कंपनी पर काफी बढ़ चुका है. पिछले चार साल में ही फिक्स चार्ज में 131 फीसदी की वृद्धि हो चुकी है.

 

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