मुसीबत: लॉकडाउन में उग्र और चिड़चिड़ा हुए बच्चे, डिप्रेशन के भी हो रहे शिकार
- कोरोना लॉकडाउन में ऑनलाइन पढ़ाई बच्चों को समझ में नहीं आ रही है। इसकी वजह से बच्चों में चिड़चिड़ापन बढ़ गया है और उनके स्वभाव में उग्रता आ गई है। लॉकडाउन में बच्चों की स्थिति अब ऐसी हो गई है कि वे अब छोटी-छोटी बातों पर माता-पिता के साथ बदतमीजी करने लगे हैं।
कोरोना वायरस संकट ने पूरी दुनिया के जीनव जीने के तौर-तरीके को बदलकर रख दिया है। कोरोना वायरस की वजह से लागू लॉकडाउन में बच्चे करीब ढाई महीने से अधिक समय से अपने घरों में कैद हैं। उन्हें लॉकडाउन में अपने पढ़ाई के तरीके को भी बदलना पड़ा है और वे ऑनलाइन कक्षाओं के जरिए पढ़ाई कर रहे हैं। मगर दुख की बात है कि अधिकांस बच्चों को यह तरीका अच्छआ नहीं लग रहा है और वे डिप्रेशन के शिकार होते जा रहे हैं।
दरअसल, कोरोना लॉकडाउन में ऑनलाइन पढ़ाई बच्चों को समझ में नहीं आ रही है। इसकी वजह से बच्चों में चिड़चिड़ापन बढ़ गया है और उनके स्वभाव में उग्रता आ गई है। लॉकडाउन में बच्चों की स्थिति अब ऐसी हो गई है कि वे अब छोटी-छोटी बातों पर माता-पिता के साथ बदतमीजी करने लगे हैं। बात-बात में घर का सामान उठाकर फेंकने लगे हैं और बड़ों से मुंह भी लगाने लगे हैं।
कोरोना लॉकडाउन में बच्चों के बिगड़ते और बदलते इन स्वभावों से मां-बाप परेशान हैं और अब इसकी वजह से अभिभावकों का जीना मुहाल हो गया है। कोरोना लॉकडाउन में ढील मिलते ही इन समस्याओं को देखते हुए अब अभिभावक ऐसे बच्चों को लेकर मनोवैज्ञानिक के पास पहुंचने लगे हैं। सीबीएसई की टेली काउंसिलिंग में भी आए दिन ऐसी केस सामने आ रहे हैं।
बिहार के पटना, मुजफ्फरपुर, भागलपुर, पूर्णिया, गया सहित ज्यादातर जिलों के अभिभावक ऐसी शिकायत कर रहे हैं। बिहार में प्रमोद कुमार सीबीएसई टेली काउंसिलिंग के काउंसलर हैं। उनका कहना है कि लॉकडाउन ने बच्चों को अकेला कर दिया है। इससे बच्चों के व्यवहार में गंभीर बदलाव आए हैं। बदलाव का परिणाम यह कि क्लास आठवीं से 11वीं के बच्चे बड़ी तेजी से एकाकी और मनोविकार के शिकार हुए हैं।
आंकड़ों की मानें तो, मार्च की अपेक्षा मई में काउंसिलिंग के लिए दस गुणा अधिक बच्चे आए हैं। ये आंकड़े सीबीएसई और मानव संसाधन मंत्रालय की काउंसलिंग टीम के साथ ही क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट के पास आने वाले बच्चों की संख्या के आधार पर हैं। सीबीएसई की काउंसिलिंग टीम इन बच्चों के बदले स्वभाव पर रिपोर्ट तैयार कर रही है। काउंसलिंग रिपोर्ट के आधार पर स्कूलों के लिए नए गाइडलाइन जारी होंगे।
पटना से आने वालीं शिकायतें
पटना की बात करें तो सेंट माइकल हाई स्कूल, नॉट्रेडम एकेडमी, लोएला हाई स्कूल, माउंट कार्मेल आदि के ऑनलाइन कक्षा में 20 से 25 फीसदी छात्र जुड़ नहीं पाते हैं। शिक्षिका आभा चौधरी का कहना है कि ऐसे बच्चे ज्यादा मनोविकार के शिकार हो रहे हैं। कोर्स छूटने और लगातार कम्प्यूटर या मोबाइल पर नजर गड़ाए रहने से डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं।
क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट शिखा अस्थाना और सीबीएसई काउंसलिंग टीम में शामिल मनोवैज्ञानिक डॉ. प्रमोद कुमार ने कहा कि बच्चों का सारा काम अभी वर्चुअल हो रहा है। यह एक डिसऑर्डर के रूप में सामने आ रहा है। इसकी वजह से बच्चे जहां अपनी पढ़ाई को लेकर उदासीन हो रहे हैं, वहीं परिवार से भी एकाकी हो रहे हैं। कई तरह के मनोविकार जैसे जिद्दीपन, चीजों को फेंकना, बड़ों से बदतमीजी से बात करना, हमेशा मोबाइल से चिपके रहना जैसे बदलाव सामने आए हैं।
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