फरवरी 2022 से बिहार में प्रवास करने वाली सभी पक्षियों की होगी गणना
- बिहार सरकार के आदेश पर बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS) की टीम सूबे में प्रवास करने वाली सभी पक्षियों के गणना करने की तैयारी में जुट गया है. BNHS की टीम इसी साल के अक्टूबर महिनें से अध्ययन की शुरुआत कर दी है. प्रवासी पक्षियों के प्रजातियों की गणना फरवरी 2022 से शुरू की जाएगी.
बिहार में फरवरी 2022 से बड़े पैमाने पर प्रवासी पक्षीयों की गणना की जाएगी. इसके लिए सूबे के सभी जिलों में कम से कम 6 ‘बर्ड वाचर’ तैयार किए जा रहे हैं. इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए 2 साल का समय निर्धारित किया गया है. ये पहला मौका है जब पूरे राज्य के पक्षियों के गिनने का कार्यक्रम चलाया जाने वाला है. मिली जानकारी के मुताबिक इस साल नवंबर महिनें के पहले हफ्ते से प्रवासी पक्षियों की गणना व अध्ययन शुरूआत कर दी गई है.
इस साल अक्टूबर महिनें के अंतिम सप्ताह से अगले साल मार्च तक 6 हजार से अधिक प्रवासी पक्षियों का बड़े पैमाने पर अध्ययन करने का लक्ष्य रखा गया है. इस चालू मौसम के दौरान जिन प्रवासी पक्षियों का अध्ययन किया जाएगा उनकी पहचान के लिए आर्निथोलॉजिस्ट यानी पक्षी विज्ञानी उन्हें एक विशेष कोड के साथ रिंगिंग (छल्ला) भी पहनाएंगे. इस योजना को पूरा करने के लिए बिहार सरकार के वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग ने बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS) को आदेश दे दिया है. BNHS के पक्षी विज्ञानी इस योजना को धरातल पर उतारने के लिए सूबे के जिलों में ऐसे पक्षीविज्ञान (आर्निथोलॉजी) में डिग्रीधारक इच्छुक कामगर उम्मीदवारों की तलाश करने में जुट गए हैं.
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बाम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS) की प्रिंसिपल इन्वेस्टीगेटर डॉ. नीता शाह ने बताया है कि प्रवासी समेत आवासीय पक्षियों की संख्या बढ़ाने के लिए शिकारियों को दूसरे रोजगार से जोड़ने, फसलचक्र में आये परिवर्तन की वापसी करने, जैविक खेती को बढ़ावा देने के साथ ही जलस्रोतों को प्राकृतिक रूप में सहेजना होगा. इस दिशा में बिहार सरकार ने बेहतर पहल भी शुरू कर दी है. आगे उन्होंने कहा कि सूबे में पक्षी गणना करने के बाद, मास्टर प्लान बनाकर पंक्षियो की संख्या बढ़ाने का पर काम किया जाएगा.
नालंदा BNHS के पक्षी अनुसंधानक (बर्ड वाचर) राहुल कुमार ने बताया कि पिछले साल जिलास्तरीय सर्वे के अनुसार नालंदा में 150 से अधिक प्रजातियों का निवास है. जबकि 70 से अधिक प्रजातियों के प्रवासी पक्षी (दूसरे जगहों से आए पक्षी यानी माइग्रेटेड बर्ड) ठंड के मौसम में आते हैं. हालांकि, इनकी संख्या में साल-दर-साल काफी कमी आ रही है.
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गौरतलब हो बिहार सरकार ने इसी साल के जनवरी महिनें में ‘बर्डस ऑफ बिहार’ नाम की 2 पुस्तकें प्रकाशित की हैं. जिनमें सूबे में पाए गए पक्षियों की ज्यादातर प्रजातियों के बारे में जानकारी एक जगह जुटाने का प्रयास किया गया है. दोनों पुस्तक के मुताबिक बिहार में 400 से अधिक प्रजातियों के पक्षी पाए जाते हैं. ई-बर्ड इंडिया के अनुसार बिहार में 73 फैमिली की 339 प्रजातियां पायी जाती हैं मगर समूचे राज्य में इसको लेकर अभी तक बड़े पैमाने पर गणना नहीं की गई थी. विश्व में 8,650 पक्षियों की प्रजातियां मौजूद हैं जिनमें 1200 भारत में हैं. इन प्रजातियों में 900 आवासीय और 300 प्रवासी हैं. और मिली जानकारी के मुताबिक 180 प्रजातियां ऐसी हैं, जिनकी उत्पत्ति व विकास भारत में ही हुई है.
बिहार है प्रवासी पक्षियों का पसंदीदा जगह
बिहार, पक्षियों के रहने का सबसे पसंदीदा जगह है. अनुकूल जलस्रोतों की अधिकता के साथ खेती के कारण यहां उनके लिए भोजन भी पर्याप्त उपलब्ध होते हैं. प्रवासी पक्षियों के भ्रमण के लिए विश्व के कुल नौ ‘फ्लाईवे’ में से 2 बिहार से होकर गुजरते हैं.
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पहला सेंट्रल एशियाई फ्लाईवे (मध्य एशियाई प्रवास मार्ग) है जिनमें 30 देश अजरबेजान, बांग्लादेश, इरान, इराक, कजाकिस्तान, भूटान, चीन, कुवैत, किर्गीस्तान, मालदीव, मंगोलिया, मयांमार, नेपाल, ओमान व पाकिस्तान, अफगानिस्तान, भारत समेत अन्य देश शामिल हैं. इस मार्ग से होकर प्रवासी पक्षियों की 182 प्रजातियां गुजरती हैं. इसके आलावा दूसरा ईस्ट एशिया-ऑस्टैलेशिया फ्लाईवे है जिसमें 22 देश शामिल हैं. इन देशों से होकर प्रवासी पक्षियों की करीब 210 प्रजातियों गुजरती हैं. इसी दौरान दोनों फ्लाईवे से करीब 400 पक्षियों की प्रजातियां भारत में प्रवास करती हैं.
प्वाइंट काउंट मेथड से होती है पक्षियों की गणना
प्वाइंट काउंट मेथड के तहत गणना करने वालों का समूह बनाकर पक्षियों की गणना की जाती है. गणना करने से पहले इन समूहों को उस क्षेत्र का चयन कर विस्तृत अध्ययन करना होता है. अध्ययन के आधार पर मिली जानकारी के मुताबिक ऐसे स्थानों को चुना जाता है जहां पक्षियों का बसेरा होता है. और इस अत्यधिक बसेरा वाले क्षेत्रफल के आधार पर पर्याप्त संख्या के साथ बर्ड वाचर की टीम को लेकर एक साथ वहां पहुंचती है. संबंधित क्षेत्रफल के चारो तरफ फैलकर गणना करके आंकड़ों को एक जगह इकट्ठा करती है. और वहां मौजूद सभी प्रजातियों को चिह्नित करने के लिए जीपीएस (ग्लोबल पॉजिशनिंग सिस्टम) तकनीक से लैस कैमरे से फोटोग्राफी की जाती है. जिससे उन पक्षियों का सही लोकेशन की जानकारी मिलती है.
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