पटना: अब मेक इन बिहार पर सरकार का फोकस, निवेशकों के लिए खुला सहूलियतों का पिटारा

Smart News Team, Last updated: Sat, 27th Jun 2020, 9:01 AM IST
  • नीतीश सरकार अब मेक इन इंडिया की तरह मेक इन बिहार पर फोकस कर रही है। औद्योगिक निवेश प्रोत्साहन नीति-2016 को संशोधित करते हुए राज्य सरकार ने बिहार में निवेश करने वालों के लिए सहूलियतों का पिटारा खोल दिया है।
ITC और अजंता समेत चार कंपनियां बिहार में निवेश को इच्छुक

नीतीश सरकार अब मेक इन इंडिया की तरह मेक इन बिहार पर फोकस कर रही है। औद्योगिक निवेश प्रोत्साहन नीति-2016 को संशोधित करते हुए राज्य सरकार ने बिहार में निवेश करने वालों के लिए सहूलियतों का पिटारा खोल दिया है। ऑटोमोबाइल, कृषि, आईटी के साथ-साथ रक्षा संबंधी उपकरणों की उत्पादन इकाइयों को प्राथमिकता सूची में शामिल किया गया है। कोरोना काल में बिहार में उद्योग लगाने वालों को तो सरकार शिफ्टिंग का खर्च भी देगी। वहीं सरकारी खरीद में बिहार में निर्मित उत्पादों को ही प्राथमिकता पर खरीदा जाएगा। नीति के संशोधन प्रस्ताव को शुक्रवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में हुई राज्य कैबिनेट की बैठक में मंजूरी दे दी गई।

पांच साल के लिए बनी औद्योगिक नीति में संशोधन के साथ ही सरकार ने इसे अब वर्ष 2025 तक के लिए प्रभावी कर दिया है। निवेशकों को दिक्कत न हो, इसलिए यहां उद्योग लगाने वालों को डीम्ड क्लियरेंस मिलेगी। यानि 30 दिन में किसी विभाग ने एनओसी नहीं दी तो उसे स्वत: स्वीकृत मान लिया जाएगा। नीति का दायरा बढ़ाते हुए कम से कम 25 लाख के निवेश या 25 बिहारी श्रमिकों को काम देने वाली इकाइयां नीति के तहत ब्याज अनुदान, जीएसटी की प्रतिपूर्ति सहित अन्य लाभ ले सकेंगी।

कोरोना काल में बिहार लौटने वालों को यहीं रोकने के लिए नीति में नया कोविड चैप्टर जोड़ा गया है। ऐसी इकाइयों को यहां एक साल में 25 प्रतिशत और तीन साल में पूरी क्षमता से उत्पादन शुरू करना होगा। सरकार उन्हें शिफ्टिंग के खर्च के साथ ही एक साल तक कच्चा माल लाने के खर्च का 80 प्रतिशत तक देगी।

प्रदूषण की रोकथाम पर भी नजर

राज्य में जल-जीवन-हरियाली अभियान को उद्योग से भी जोड़ा गया है। बीते सालों में यहां बढ़े वृक्षारोपण में लकड़ी के पेड़ भी बहुतायत में हैं। ऐसे में काष्ठ आधारित उद्योगों जैसे कागज, लुग्दी, दियासलाई, टिंबर, प्लाईवुड, विनीयर उत्पादन, बांस आधारित फर्नीचर, पार्टिकल व फाइबर बोर्ड आदि अब प्राथमिकता क्षेत्र में शामिल किए गए हैं। ईंट-भट्ठों से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए फ्लाई एश ब्रिक्स उत्पादन, धान के भूसे से बनी डिस्पोजल प्लेट और कंटेनर, भूसा आदि कृषि अवशेष आधारित उद्योगों को प्राथमिकता दी गई है।

कृषि, खाद्य, आईटी क्षेत्रों का बढ़ा दायरा

खाद्य प्रसंस्करण पहले से प्राथमिकता में है लेकिन अब उसका दायरा और बढ़ाया गया है। वेयर हाउस, कोल्ड चेन ओर बॉटलिंग प्लांट भी अब इसमें शामिल होंगे। इसी तरह आईटी, इलेक्ट्रोनिक्स और इलेक्ट्रिकल का दायरा बढ़ाते हुए उसमें वायरिंग, इलेक्ट्रिक लाइटिंग, ट्रांसफारमर, जेनरेटर, विद्युत वितरण कंट्रोल उपकरण आदि को शामिल किया गया है। इसी तरह कृषि क्षेत्र में लघु यंत्र निर्माण इकाइयों जैसे टिशू कल्चर लैब, क्राप केयर केमिकल इकाइयों और गैर कृषि संयंत्र निर्माण को अब प्राथमिकता मिलेगी।

मेक इन इंडिया के लिए भी मददगार

मेक इन बिहार पर फोकस करने के साथ-साथ राज्य की औद्योगिक नीति मेक इन इंडिया के लिए भी मददगार साबित होगा। रक्षा क्षेत्र की उत्पादन इकाइयों को भी प्राथमिकता सूची में रखा गया है। इनमें हथियार, गोला-बारूद, औजार व इनसे जुड़े उत्पादन बनाने वाली इकाइयां शामिल हैं। सामरिक निवेश परियोजनाओं के लिए अनुकूलित प्रोत्साहन पैकेज की व्यवस्था नीति में की गई है। इसमें वे इकाइयां शामिल हैं जो प्लांट और मशीनरी में 500 करोड़ का निवेश करेंगी या 500 बिहारी श्रमिकों को रोजगार देंगी।

निजी कंपनियों के लिए खुले द्वार

निजी कंपनियां अब बिहार के सरकारी लोक उपक्रमों संग साझेदारी में यहां उद्योग लगा सकेंगे। इसमें वस्त्र निर्माण, ऑटोमोबाइल, कृषि संयंत्र, मेडिकल उपकरण आदि को वरीयता दी जाएगी। इसके अलावा सभी लोक उपक्रम राज्य के जिलों को गोद लेकर वहां क्लस्टर विकसित करेंगे ताकि कुशल प्रवासी श्रमिक और कामगार स्वरोजगार शुरू कर सकें। जिला परामर्श केंद्र भी खुलेंगे। वहीं जिलों में जिला औद्योगिक नवप्रवर्तन योजना के तहत निधि दी जाएगी जिससे सूक्ष्म उद्योगों की स्थापना होगी।

बिहार में बनेंगे ऑटो, ई-रिक्शा और टू-व्हीलर

ऑटोमोबाइल क्षेत्र की कंपनियों के लिए भी निवेश के द्वार खोले गए हैं। यहां दो पहिया व तीन पहिया वाहनों का निर्माण यहां हो सकेगा। विद्युत चालित वाहन और उनके उपकरण, बैटरी आदि की उत्पादन इकाइयों को प्राथमिकता क्षेत्र में रखा गया है। इसके अलावा दूरसंचार उपकरण और खेलकूद का रबर और प्लास्टिक को छोड़कर बाकी सभी सामान का उत्पादन करने वालों का नीति का लाभ मिल सकेगा।

बिहारी कंपनियों से ही सामान खरीदेंगे सरकारी ठेकेदार

खरीद अधिमानता नीति को विस्तार दिया गया है। इससे एमएसएमई क्षेत्र की इकाइयों को भारी मदद मिलेगी। नीति संबंधी अधिसूचना जारी होने के 30 दिन के अंदर सभी सरकारी एजेंसियां खुद से जुड़े ऐसे उत्पादों की सूची बनाएंगी, जिनका उत्पादन बिहार में हो रहा हो। संबंधित विभाग अपनी निविदा में ऐसे उत्पादों का उल्लेख करेंगे और ठेकेदारों को उन्हीं इकाइयों से सामान खरीदना होगा। बिहार की इकाइयों को अनुभव संबंधी भी छूट रहेगी।

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