कोरोना काल में 'सोना' बन गईं मिट्टी की ईंट, आसमान छू रहे दाम, घर बनाना नहीं आसान
- कोरोना काल में ईंटों के दाम आसमान छू रहे हैं जिसकी वजह से गरीब और मध्यमवर्गीय लोगों को घर बनाना मुश्किल हो गया है। साथ ही सरकार की योजनाओं पर भी इसका असर पड़ रहा है।

पटना. घर बनाने के लिए ईंट सबसे जरूरी चीजों में से एक है जो शायद सबसे सस्ती भी होती है। लेकिन कोरोना काल में अब ये कहना आसान नहीं होगा क्योंकि राज्य में ईंटों के दाम आसमान छू रहे हैं। राजधानी और शहरी इलाके के साथ-साथ मनमानी कीमतों की वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में भी ईंटों की किल्लत बढ़ गई है। महंगी ईंट का असर सरकारी योजनाओं पर भी पड़ रहा है। किसी भी गरीब का घर बनाना दुश्वार हो गया है।
गौरतलब है कि कोरोना काल में पहले ही बालू का खनन बंद है। सीमेंट, गिट्टी और छड़ की कीमतों में भी इजाफा है। ऐसे में महंगी हो रही ईंटों से गरीब लोग विभिन्न सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं ले पा रहे हैं।
दरअसल किसी भी लाभार्थी को प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण से मात्र 1.20 लाख रुपए मिलते हैं लेकिन कीमतें बढ़ने से बालू, ईंट, सीमेंट खरीदना अब मुश्किल हो रहा है। राजधानी पटना में एक ट्रैक्टर यानी डेढ़ हजार ईंटें 17 हजार से कम कीमत में नहीं मिल रही है। वहीं ग्रामीण इलाकों में भी भट्टों पर ईंट 11 -12 हजार रुपए में मिल रही हैं। साथ ही उन्हें वहां से ले जाने का चार्ज अलग से है।
महंगी हो रही ईंटों से छोटे-मोटे मरम्मत के कार्य बाधित हैं। जल-जीवन-हरियाली अभियान के तहत सोखता निर्माण, कुआं निर्माण, मनरेगा के तहत पशु शेड आदि बनाने में ईटों की कमी महसूस हो रही है। इस संबंध में ईंट निर्माता और चिमनी मालिकों का तर्क है कि अप्रैल- मई में तीन बार हुई बिना मौसम बारिश की वजह से लाखों कच्ची ईंटें में बर्बाद हो गईं। इससे काफी नुकसान हुआ।
लॉकडाउन में भी करीब 2 महीने तक ईंट-भट्ठा का काम रुका रहा। इसके बावजूद मजदूरों को मजदूरी भी देनी पड़ी। जिसका असर अब ईंटों के दाम प है। मनमानी कीमतों पर ईंटों की बिक्री रोकने के लिए कहीं भी जिला प्रशासन मुस्तैद नहीं है।
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