पड़ताल: भर्ती के दो दिन बाद PMCH में शुरू हो रहा संदिग्ध कोरोना मरीजों का इलाज

Smart News Team, Last updated: Sat, 18th Jul 2020, 9:34 AM IST
  • पटना के अस्पतालों की हालत खराब है। संक्रमित के परिजनों के बीमार होने पर भी इलाज कराने की नहीं मिल रही सुविधा।
राजधानी के अस्पतालों में बेड खाली होने पर भी टाले जा रहे मरीज

पटना। संजय पांडेय 

पटना के बोरिंग रोड के मनजीत सिंह स्वयं बिना लक्षण वाले कोरोना पीड़ित हो गए हैं। बुधवार को अचानक उनकी पत्नी की तबीयत खराब हो गई। उन्हें सांस लेने में काफी तकलीफ होने लगी। मनजीत इलाके के कई बड़े निजी अस्पतालों में उन्हें इलाज के लिए ले गए। किसी ने भी भर्ती नहीं लिया और पीएमसीएच ले जाने की सलाह दे डाली। जब वे पीएमसीएच पहुंचे तो वहां इमरजेंसी में भी उनकी पत्नी को देखने से इनकार कर दिया गया। काफी पैरवी और मिन्नत कराने के बाद उन्हें फ्लू कॉर्नर भेजा गया। रजिस्ट्रेशन हुआ और ट्रीटमेंट वार्ड में भेजा गया। पत्नी की हालत गंभीर होने के बावजूद तैनात कर्मी ने न तो किसी डॉक्टर को बुलाया और न ही कोई मदद की। उल्टे यहां ऑक्सीजन और पानी चढ़ाने की कोई व्यवस्था नहीं होने की चेतावनी दी। साथ ही चेताया कि इनकी कोरोना रिपोर्ट आने के बाद ही आइसोलेशन वार्ड में इलाज शुरू होगा। रिपोर्ट आने में कम से कम दो दिन लगते हैं। 

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इसके बाद मनजीत अपनी पत्नी को अस्पताल से ले आए। पत्नी को होटल पाटलिपुत्रा अशोका और पाटलिपुत्रा स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में बने कोविड सेंटर में भर्ती कराने का प्रयास किया लेकिन वहां रिपोर्ट पॉजिटिव नहीं होने की बात कहकर भर्ती लेने से इनकार कर दिया गया। आईजीआईएमएस गए तो सीट खाली नहीं होने की बात कही गई। इसके बाद हारकर मनजीत पत्नी को घर ले आए। घर में ही अस्पताल में काम करनेवाले दो कर्मियों की मदद से पत्नी को पानी चढ़ाया जा रहा है। एक डॉक्टर से फोन पर सलाह लेकर दवाइयां भी दे रहे हैं। एम्स, एनएमसीएच और आईजीआईएमएस से बिना प्राथमिक इलाज के कई ऐसे मरीजों को भी टाला जा रहा है जिनको इलाज की सख्त जरूरत है।

केस स्टडी 2.

ऐसी ही हालत अनुमंडल अस्पताल में भर्ती कराई गई मरीज अंबालिका झा की है। पेट दर्द, सांस की तकलीफ आदि बीमारी से पीड़ित होकर वे गुरुवार की सुबह में भर्ती कराई गईं। दोपहर दो बजे तक किसी डॉक्टर ने उन्हें नहीं देखा। वहां मौजूद नर्स से जब उनके परिजनों ने बात करने का प्रयास किया तो उसने डपट दिया। परिजनों ने बताया कि एक डॉक्टर अशोक कुमार हैं जो आने की बात 11 बजे से ही कर रहे थे, लेकिन दो बजे तक मरीज को नहीं देख पाए थे। मरीज इसी तरह दर्द से कराहती रही। उपरोक्त ये दोनों मामले सिर्फ दो लोगों की समस्या नहीं है। यह पटना के हर उस मरीज की हालत हो रही है जो अस्पताल में इलाज कराने पहुंच रहे हैं। अगर कोई संक्रमित है तब टाला जा रहा है और जो संक्रमित नहीं हैं, उनको रिपोर्ट नहीं होने पर टाला जा रहा है। यह स्थिति तब है जब अस्पतालों में बेड भी बड़ी संख्या में खाली हैं। कोरोना काल में बीमार पड़े तो अस्पतालों में इलाज कराना मुश्किल हो गया है। पहले तो मरीजों को टाला जा रहा है, किसी तरह भर्ती कर भी लिए गए तो इलाज शुरू कराने में दो से तीन दिन का इंतजार करना पड़ता है। स्थिति गंभीर हुई तो मरीज मौत के मुंह में जा सकता है। कोरोना के संदेह में निजी अस्पताल गंभीर मरीजों को भर्ती करने से टाल रहे हैं जबकि सरकारी में तत्काल इलाज की सुविधा नहीं मिल रही है। 

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राज्य के सबसे बड़े अस्पताल पीएमसीएच हो या आईजीआईएमएस अथवा अनुमंडलीय अस्पताल दानापुर। इलाज कराने आए मरीजों से यहां के जूनियर डॉक्टर से लेकर नर्स तक दुर्व्यवहार कर रहे हैं। खुलेआम इलाज नहीं करने की चेतावनी दे रहे हैं। कहा जा रहा है कि ऑक्सीजन और पानी चढ़ाने की जरूरत होगी तब यहां चढ़ाने की व्यवस्था नहीं है। ऐसे में मरीज के लिये कोई जोखिम नहीं लेगा। ऐसी घटना लगभग प्रतिदिन आम मरीजों के साथ घट रही है। कोरोना संक्रमित वीआईपी और वीवीआईपी मरीजों से जहां एम्स की 70 प्रतिशत से ज्यादा बेड भरे हैं, वहीं आम लोगों के लिए पीएमसीएच, एनएमसीएच और आईजीआईएमएस जैसे अस्पतालों में भी जगह नहीं मिल रही है। उनसे असंवेदनात्मक व्यवहार किया जा रहा है। आम मरीज कहां जाएं उनको कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है।

कोरोना जांच में भी हो रही परेशानी

कोरोना जांच कराने में भी संदिग्धों को काफी परेशानी का समाना करना पड़ रहा है। उन्हें सरकारी और निजी जांच केंद्रों पर घंटों लाइन लगने के बाद भी जांच कराने में सफलता नहीं मिल पा रही है। इस बीच संदिग्धों का कहीं और इलाज भी कराना मुश्किल हो गया है।

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