पटना हाईकोर्ट का आदेश, आपराधिक रिकॉर्ड छुपाकर जामनत लेने वालों को न दी जाए बेल
- पटना हाइकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि प्रत्येक निचली अदालत को किसी भी जमानत अर्जी की सुनवाई के दौरान आरोपी का आपराधिक इतिहास की पूरी जानकारी लेनी होगी. माना जा रहा है इस फैसले से अपने अपराधिक रिकॉर्ड छिपाकर जमानत लेने वालों की मुसीबत बढ़ेगी.
पटना. पटना हाईकोर्ट के आदेश से अपराधी प्रवृति के लोगों की मुश्किलें बढ़ेंगी. हाईकोर्ट जमानत मामलों में आपराधिक इतिहास छिपा कर अदालत से जमानत लेने वाले आरोपियों पर सख्त हुआ है. पटना उच्चन्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि अब प्रत्येक निचली अदालत को किसी भी जमानत अर्जी की सुनवाई के दौरान आरोपी का लोक अभियोजक या अनुसंधानकर्ता से उसके आपराधिक इतिहास की पूरी जानकारी लेनी होगी. निचली अदालतों को यह विवरण दर्ज करना होगा कि इसके पहले अपराधी के ऊपर और कितने अपराध दर्ज है.
साथ ही हाईकोर्ट ने कहा कि निचली अदालत अब लोक अभियोजक या पुलिस अधिकारियों से मिले आपराधिक इतिहास एवं अन्य जरूरी मापदंडों के आधार पर ही आरोपित की जमानत याचिका को मंजूर या खारिज करेगी. ऐसी परिस्थितिओं में झूठ बोलकर या पुराने अपराधिक मामलों को छिपाकर जमानत लेना आसान नहीं होगा.
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न्यायाधीश राजीव रंजन प्रसाद की एकलपीठ ने सुनवाई के दौरान ये आदेश दिया. न्यायाधीश अनिल बैठा की जमानत अर्जी पर सुनवाई कर रहे थे. इसी दौरान उन्होंने इस आदेश को सुनाया. मालूम हो कि जमानतकर्ता ने जमानत याचिका में अपने दस से अधिक आपराधिक मामले को छिपाते हुए जमानत अर्जी दी थी. जिसमें कोर्ट ने पुराने अपराधिक रिकॉर्ड की जांच करवा कर धोखाधड़ी करने वालों के खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज करने का आदेश दिया है.
कोर्ट ने ये फैसला अपना अपराधिक रिकॉर्ड छिपा कर गलत ढ़ंग से जमानत लेने वालों पर शिकंजा कसने के लिए लिया है. फैसला सुनाने के साथ ही हाईकोर्ट ने इस आदेश की प्रति सभी जिला न्यायालयों को ध्यान देने का भी निर्देश दिया है. जिससे जो अपराधी कोर्ट को गुमराह करके जमानत ले लेते है, उनके लिए जमानत लेना मुश्किल रहें. पटना हाई कोर्ट के इस आदेश के बाद अब जमानत लेना आसान नहीं होगा.
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कोर्ट ने कहा कि अब प्रत्येक निचली अदालत को किसी भी जमानत अर्जी की सुनवाई के दौरान आरोपी का लोक अभियोजक या अनुसंधानकर्ता से उसके आपराधिक इतिहास की पूरी जानकारी लेनी होगी. अब निचली अदालतों मे जमानत अर्जी की सुनवाई में लोक अभियोजक या अनुसंधानकर्ता को आरोपी का आपराधिक इतिहास देना होगा. इससे आपराधिक इतिहास छिपाकर जमानत लेना आसान नहीं होगा. इस फैसले ने अपराधी प्रवृति के लोगों को आसानी से बेल नहीं मिल पाएगा.
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