इसलिए नहीं सुलझते साइबर ठगी के मामले, 5% थाने ही सोशल मीडिया की साइट से हैं रजिस्टर्ड
- देश में मात्र 5 फीसदी थाने ही सोशल मीडिया की साइट से रजिस्टर्ड है. रजिस्टर ना होने की वजह से साइबर ठगों के पते ढूंढने में सालों लग जाते हैं. पुलिस स्टेशनों को report@fb.com पर रजिस्ट्रेशन कराना होता है. अगर वे इस साईट पर रजिस्ट्रेशन कराते हैं तो उन्हें किसी भी फर्जी अकाउंट की विस्तृत विवरण मिल जाती है. पटना की बात करें तो यहां मात्र पाटलिपुत्र थाना ही रजिस्टर्ड है.
पटना: देश में साइबर अपराध के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. इससे अब कोई अछूता नहीं रह गया है. चाहे वह कोई आम इंसान हो या फिर कोई राजनीतिज्ञ. हर कोई प्रतिदिन साइबर ठगी, हनी ट्रैप समेत कई मामलों से जूझ रहा है. ये मामले इसलिए भी बढ़ रहे हैं क्यूंकि देश में मात्र 5 फीसदी थाने ही सोशल मीडिया की साइट से रजिस्टर्ड है. रजिस्टर ना होने की वजह से साइबर ठगों के पते ढूंढने में सालों लग जाते हैं. पटना की बात करें तो यहां मात्र पाटलिपुत्र थाना ही रजिस्टर्ड है. वहीं बिहार के नालंदा जिले की बात करें तो यहां साइबर ठगी से संबंधित करीब ढाई सौ से अधिक मामले पेंडिंग है. पूरे सूबे में यह संख्या हजारों के पार है.
क्यों जरूरी है थानों का रजिस्ट्रेशन
जानकारी के मुताबिक थानों के रजिस्ट्रेशन कराने से यह बात आसानी से पता चल सकता है कि साइबर अपराधी किस मोबाइल कंप्यूटर या लैपटॉप से फर्जी अकाउंट बनाकर लोगों को चूना लगा रहा है. दरअसल पुलिस स्टेशनों को रिपोर्ट@एफबीडॉट कॉम पर रजिस्ट्रेशन कराना होता है. अगर वह इस साईट पर रजिस्ट्रेशन कराते हैं. तो उन्हें किसी भी फर्जी अकाउंट की विस्तृत विवरण मिल जाती है. पर सोशल मीडिया के साइट से रजिस्टर्ड ना होने की वजह से कई केस सालों तक अनसुलझे रह जाते हैं. बता दें कि पुलिस स्टेशनों का रजिस्ट्रेशन होने के बाद सोशल मीडिया के साइट जैसे फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप आदि से थाना किसी भी साइबर अपराधी के बारे में विस्तृत जानकारी ले सकती है.
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पटना में मात्र एक थाना ही है रजिस्टर्ड
बता देगी पटना में मात्र पाटलिपुत्र थाना रजिस्टर्ड है. थानाध्यक्ष सत्येंद्र कुमार शाही के मुताबिक अब तक उन्होंने इस साइट की मदद से 13 मामलों को अंजाम तक पहुंचाया है. वहीं साइबर क्राइम मामले से जुड़े एक अधिकारी का कहना है कि किसी भी साइबर अपराध के अनुसंधान में सामान्य मामलों की अपेक्षा अधिक समय लगता है.
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