कोरोना का कहर: दो जून की रोटी के लिए तरसे मजदूर

Malay, Last updated: Wed, 25th Mar 2020, 8:00 AM IST
राजधानी के हर सेक्टर पर तालाबंदी है। इसका सबसे बड़ा खामियाजा दिहाड़ी मजदूरों को उठाना पड़ रहा है। जो कुछ जरूरी सेवाएं उपलब्ध हैं, वहां इतना काम नहीं कि कोई काम दे सके। लोग शहर में जहां-तहां भटक रहे हैं।...
शहर में वाहन चलाकर अपनी भूख मिटाने वालों के आगे भोजन जुटाने तक की समस्या उत्पन्न हो गई है।

राजधानी के हर सेक्टर पर तालाबंदी है। इसका सबसे बड़ा खामियाजा दिहाड़ी मजदूरों को उठाना पड़ रहा है। जो कुछ जरूरी सेवाएं उपलब्ध हैं, वहां इतना काम नहीं कि कोई काम दे सके। लोग शहर में जहां-तहां भटक रहे हैं। काम की उम्मीद में गांव से शहर से आए लोग अब वापस भी नहीं जा पा रहे हैं। रोज कमाकर खाने वाले ऐसे मजदूरों पर बंदी आफत बनकर गिर रही है। रेल के बाद बस सेवा भी बंद हो चुकी है। अब साइकिल ही सहारा है। सिर्फ सब्जी और फलों के दुकान चालू हैं। खाने पीने सहित शहर में अन्य छोटे कामों पर पूरी तरह तालाबंदी ने इनके जीवन पर सबसे अधिक प्रभाव डाला है। साथ ही ऐसे मजदूर जो किसी संगठन से तालूक नहीं रखते उनकी आवाज कौन उठाए यह भी समझ नहीं आ रहा है। 

पुलिस की नाकेबंदी से और बढ़ेगी परेशानी
राजधानी में पुलिस की नाकेबंदी तेजी से बढ़ रही है। लॉकडाउन को नहीं मान रहे लोगों पर सख्ती के लिए हर चौक-चौराहों पर सड़क को बैरिकेड किया जा रहा है। शहर नें कफ्र्यू लागू होने का डर भी लोगों को सताने लगा है। पुलिस की बढ़ती सख्ती को देख सबसे अधिक सहमे गरीब लोग ही हैं। जो हर दिन काम पर जाते थे। कहीं कहीं साइकिल से ही एक शहर से दूसरे शहर को लांघ देने की कवायद शुरू हो गई है। शहर में जहां-तहां फंसे मजबूर लोगों को पहुंचाने के लिए रिक्शा कुछ स्थानों पर दिखाई पड़ती है। मगर किराया मुंहमांगा लिया जा रहा है। 30 के जगह 100 और 50 के जगह 500 रुपए की मांग हो रही है।

सिवान से काम के चक्कर नें पटना आए हैं। हर दिन तीन से चार सौ रुपए कमा लेते हैं। मगर दो दिन से कोई काम नहीं मिला। जहां-तहां भटक रहे हैं। अब तो घर जाने के लिए गाड़ी भी नहीं मिल रही है। 
-दिलीप प्रसाद, मजदूर

हम तो काम करने के लिए दानापुर से रोज आते हैं। र्बोंरग रोड में ही कई दुकानों पर काम करते हैं। सामान पहुंचाने और रखने का साढ़े तीन सौ रुपए कमा लेते थे। अब जेब भी खाली है और पेट भी।  
र्-ंबदेश्वर, मजदूर

प्रधानमंत्री मोदी ने हर गरीब का बैंक खाता खुलवाया था। अब इस संकट की घड़ी में प्रत्येक मजदूर को 10 हजार रुपए की मदद मिलनी चाहिए। साथ ही राज्य सरकार छह महीने का राशन दे तो घरों में रहकर अपना बचाव करना आसान हो जाएगा।
-रनविजय कुमार, सचिव, ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन

शहर में वाहन चलाकर अपनी भूख मिटाने वालों के आगे भोजन जुटाने तक की समस्या उत्पन्न हो गई है। शहरी असंगठित कामगारों को बचाने के लिए राशन, पानी और दवा की व्यवस्था तत्काल सरकार की ओर से होना चाहिए। 
-मुर्तजा अली, महासचिव, बिहार राज्य ऑटो रिक्शा चालक संघ

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