राष्ट्रीय खेल अपने प्रदेश में हुआ बेगाना

Malay, Last updated: Fri, 22nd Nov 2019, 1:30 PM IST
बिहार में हर तरह के खेल को बढ़ावा दिया जा रहा है। प्रदेश के बच्चे क्रिकेट और अन्य खेलों में अच्छा कर रहे हैं, लेकिन राष्ट्रीय खेल अपने प्रदेश में बेगाना बन गया है। इसकी वजह कोई और नहीं, संसाधनों की...
प्रतीकात्मक तस्वीर

बिहार में हर तरह के खेल को बढ़ावा दिया जा रहा है। प्रदेश के बच्चे क्रिकेट और अन्य खेलों में अच्छा कर रहे हैं, लेकिन राष्ट्रीय खेल अपने प्रदेश में बेगाना बन गया है। इसकी वजह कोई और नहीं, संसाधनों की कमी है, लेकिन इस पर किसी का ध्यान ही नहीं है। 

बिहार से झारखंड अलग हुए 19 साल बीत चुके हैं। बावजूद इसके यहां एक एस्ट्रो टर्फ ग्राउंड नहीं बन सका। इसी वजह से यहां स्तरीय हॉकी प्रतियोगिताएं तक नहीं होतीं। अपना यह दर्द बयां किया अजितेश राय ने। अजितेश के बारे में शायद कम लोग जानते होंगे, लेकिन उन्होंने हॉकी में बिहार को गौरव का मौका दिया है। 

अजितेश राय 2010-11 में इंडियन हॉकी टीम के कप्तान रह चुके हैं। अजितेश पटना में नहीं रहते, लेकिन हॉकी प्रेम की वजह से 20 हजार किलोमीटर दूर से पटना पहुंचते हैं। अजितेश अभी राजधानी में अपने पिता की स्मृति में आरके राय मेमोरियल हॉकी टूर्नामेंट का तीन दिवसीय आयोजन करवाने पहुंचे हैं। बता दें कि आरके राय मेमोरियल हॉकी टूर्नामेंट का यह दूसरा संस्करण है। 

हॉकी प्लेयर्स के लिए संभावनाएं नहीं
अजितेश कहते हैं कि बिहार में हॉकी प्लेयर्स के लिए संभावनाएं नहीं है। मुझे यह बार-बार महसूस होता है, दुखी करता है। बिहार हॉकी संघ साल में एक बार ही स्टेट लेवल का टूर्नामेंट कराता है।

हॉकी के लिए नहीं है संसाधन
अजितेश ने बताया कि देश की संभवत: पटना एकमात्र ऐसी राजधानी है, जहां एस्ट्रो टर्फ मैदान की बात तो दूर, एक भी स्तरीय हॉकी मैदान तक नहीं है। कई बार पटना में एस्ट्रो टर्फ मैदान बनाने की घोषणा हुई। वह सिर्फ घोषणा ही रह गई। ऐसा नहीं है कि यहां के हॉकी खिलाड़ियों में प्रतिभा नहीं है। सुविधा के अभाव में राज्य से पलायन कर गए खिलाड़ी अन्य राज्यों के लिए खेल रहे हैं। पटना में भी ग्रास रूट लेवल पर हॉकी के विकास के लिए संसाधन तथा सुविधा उपलब्ध करायी जाए। 

बहन को हॉकी खेलते देखा तो शौक जगा
उन्होंने कहा कि जब मैं वर्ष 2000 में ब्वॉयज हाईस्कूल शास्त्रीनगर में पढ़ाई करता था, उस समय क्रिकेट खेलता था, लेकिन अपनी बहन अरुणिमा राय को हॉकी खेलते देख क्रिकेट छोड़कर हॉकी का शौक जाग गया। शौक ऐसा कि हॉकी के सबसे बड़े ट्रेनिंग सेंटर एयर इंडिया एकेडमी में सेलेक्शन हुआ। उसके बाद कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। वे बताते हैं कि मेरी सफलता में बड़ी बहन अरुणिमा का बड़ा योगदान है। 

फेडरेशन के बुलावे पर टीम में शामिल हुए
अजितेश राय 2010-11 में अपनी कप्तानी में साउथ एशियन गेम्स खेलने ढाका गए। इसमें पाकिस्तान से हार कर सिल्वर मेडल से संतोष करना पड़ा। इसके बाद अजितेश ने हॉकी छोड़ दिया था। फिर वे जर्मनी, मलेशिया, बांग्लादेश के लोकल क्लब से जुड़कर लीग खेलना शुरू कर दिया। 2016 में इंडियन हॉकी फेडरेशन ने उन्हें इंडियन टीम में बुलाया। अजितेश अभी पुणे में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में नौकरी कर रहे हैं।

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