World Asthma Day 2019: दमा से हांफ रहा पटना

Malay, Last updated: Tue, 7th May 2019, 2:04 PM IST
पटना प्रदूषण की राजधानी तो पहले ही बन चुकी है, अगर यही हाल रहा तो वर्ष 2022 तक देश में सबसे अधिक अस्थमा के मरीज भी यहीं होंगे। हाल ही में आई ग्रीनपीस की रिपोर्ट में पटना विश्व का सातवां प्रदूषित शहर...
प्रतीकात्मक तस्वीर

पटना प्रदूषण की राजधानी तो पहले ही बन चुकी है, अगर यही हाल रहा तो वर्ष 2022 तक देश में सबसे अधिक अस्थमा के मरीज भी यहीं होंगे। हाल ही में आई ग्रीनपीस की रिपोर्ट में पटना विश्व का सातवां प्रदूषित शहर बन चुका है। रिपोर्ट के मुताबिक यहां सबसे अधिक वायु प्रदूषण है। औसत पीएम (पार्टिकुलेट मैटर) 2.5, धूलकणों की संख्या 118 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर हो चुकी है। प्रदूषण के कारण पटना में सांस के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। करीब चार लाख लोग ऐसे हैं जो सांस की विभिन्न बीमारियों का इलाज करा रहे हैं। हालात दिन ब दिन बिगड़ते ही जा रहे हैं। यह खुलासा पीएमसीएच, आईजीआईएमएस और एम्स के चेस्ट रोग विभाग के ओपीडी में किए गए सर्वे में हुआ है। विशेषज्ञों की मानें तो अगर वायु प्रदूषण इसी तरह बढ़ता गया तो वह दिन दूर नहीं जब यहां के हर दूसरे आदमी को अस्थमा हो जाएगा। 

दोगुनी हो जाएगी सांस के मरीजों की संख्या
चेस्ट रोग विशेषज्ञों का कहना है कि यदि यही स्थिति रही तो आने वाले पांच साल में सांस के मरीजों की संख्या शहर में दोगुनी हो जाएगी जो खतरे का संकेत है। पीएमसीएच, आईजीआईएमएस और पटना एम्स की ओपीडी में हर साल करीब 20 हजार मरीज सांस की तकलीफ लेकर इलाज के लिए आते हैं। ऐसे मरीजों की स्पायरोमेट्री जांच में पता चला है कि 40 प्रतिशत यानी हर साल करीब आठ हजार अस्थमा के नए मरीज इन अस्पतालों में चिन्हित किए जाते हैं। डॉक्टरों का यह भी कहना है कि हवा में प्रदूषण के कारण ही लोगों में बार-बार खांसने की शिकायत हो रही है। प्रदूषण का असर बुजुर्ग, बच्चों और गर्भवती महिलाओं पर अधिक हो रहा है। चेस्ट रोग विशेषज्ञों की सोसाइटी के मुताबिक प्रदेश में करीब डेढ़ करोड़ लोग सांस की बीमारी से पीड़ित हैं। अगर समय रहते समस्या के निदान पर ध्यान न दिया गया तो स्थिति भयावह हो सकती है। 

घट रही है फेफड़ों की क्षमता
शहर के बड़े अस्पतालों में सांस के मरीजों के इलाज के दौरान डॉक्टरों ने पाया है कि लोगों में सांस लेने की क्षमता घट रही है। वायु प्रदूषण के कारण उनके फेफड़े कमजोर होते जा रहे हैं। संक्रमण या फेफड़े में गड़बड़ी से लोगों में ऑक्सीजन को लेने और कार्बन डाई आक्साइड को छोड़ने की क्षमता भी पहले के मुकाबले कम होती जा रही है। 

प्रदूषण नियंत्रण परिषद भी है चिंतित
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण परिषद नई दिल्ली की राष्ट्रीय गुणवत्ता सूचकांक की रिपोर्ट के अनुसार पटना में वायु प्रदूषण अभी भी चिंताजनक है। सोमवार को पटना में पीएम 2.5 अधिकतम 313 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पहुंच गया,  जो मानक से करीब तीन गुना अधिक है। परिषद ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पटना में जो वायु प्रदूषण है वह लोगों की सेहत के लिए ठीक नहीं है। इससे दमा के मरीजों की संख्या बढ़ सकती है।

क्यों बढ़ रही है सांस की बीमारी
चेस्ट रोग विशेषज्ञ डॉ. अशोक शंकर सिंह का कहना है कि पटना शहर में इसीलिए सांस के मरीजों की संख्या बढ़ रही है क्योंकि यहां जनसंख्या घनत्व अधिक है। बढ़ती आबादी के कारण पेड़-पौधों की संख्या घटती जा रही है। धूल को रोकने के ठोस प्रबंध के बगैर खुले में भवन निर्माण का काम हो रहा है। जगह-जगह कचरे का अंबार है। घरों के आसपास सफाई नहीं है। घने इलाकों में जो घर बने भी हैं उसमें हवा के प्रवाह का अभाव है।

फेफड़ों को खराब करते हानिकारक तत्व
चेस्ट रोग विशेषज्ञों का कहना है कि सीने को सबसे अधिक नुकसान सल्फर डाई ऑक्साइड,कार्बन मोनो ऑक्साइड, कार्बन डाई ऑक्साइड और धूल कणों से होता है। इससे सांस की नली में संक्रमण व फिर सूजन आती है। समय पर सूजन का इलाज न होने से फेफड़े खराब हो जाते हैं।

प्रदूषण की रोकथाम ऐसे होगी
शहर में पेड़-पौधों की संख्या बढाई जाए। सफाई पर अधिक बल दिया जाए।  
भवन निर्माण की विधि ऐसी अपनाई जाए जिससे हवा में धूल कण कम उड़ें।
जनसंख्या घनत्व को कम करने का ठोस उपाय किया जाए, पुुराने डीजल वाहनों को बंद किया जाए।

शहर में 10 लाख वाहन बढ़ा रहे प्रदूषण
जिला परिवहन पदाधिकारी अजय ठाकुर का कहना है कि पटना में पंजीकृत वाहन करीब 10 लाख हैं। दो लाख वाहन प्रतिदिन शहर में बाहर से आते हैं। वैसे तो वाहनों की फिटनेस पर अधिक ध्यान दिया जाता है लेकिन चेकिंग के बावजूद काफी संख्या में ऐसे वाहन हैं जो प्रदूषण फैलाते हैं। 

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