पानी के डकैत: बिना अनुमति के पटना में चल रहा पानी का अवैध कारोबार
अगर आप भी पानी का जार लेते हैं तो सावधान हो जाइए, क्योंकि शहर में अधिकतर लोग सीधे बोरिंग का पानी ही जार में भरकर बेच रहे हैं। इसकी गुणवत्ता की जांच के लिए कोई जिम्मेदार नहीं है। न तो खाद्य सुरक्षा अधिकारी और न ही केंद्रीय भू-जल बोर्ड इसकी जांच करता है। नतीजा है कि गली-गली में आम आदमी के पानी पर डाका डालने वाले बढ़ते ही जा रहे हैं, जिसकी वजह से शहर का भू-जल और नीचे जाता जा रहा है।
नगर निगम की एक रिपोर्ट के मुताबिक शहर में पिछले 15 दिनों में भू-जल 10 फीट नीचे चला गया है। कई मोहल्ले ऐसे हैं जिनकी बोरिंग अभी से सूखने लगी हैं। मई में ही पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ है। वहीं दूसरी तरफ पानी के जार का कारोबार फैलता ही जा रहा है। हर मोहल्ले में पानी के जार की 2-3 अवैध कंपनियां खुल गई हैं। ये कंपनियां आम आदमी के घर का सारा भू-जल धरती के नीचे से चुराकर बेच दे रही हैं। शहर में पानी का कारोबार करने वाली 90 प्रतिशत कंपनियां अवैध हैं। खाद्य सुरक्षा विभाग को बोतलबंद पानी की जांच का अधिकार है, लेकिन खुले आरओ वाटर की जांच वह नहीं कर सकता। निगरानी के अभाव में पानी के इन्हीं डकैतों के कारण शहर में जल संकट दिन-प्रतिदिन गहराता जा रहा है।
जहां मन में आया वहीं कर ली बोरिंग
पटना में बोरिंग को लेकर बने सख्त नियमों का पालन नहीं हो रहा है। नियम है कि बोरिंग करने से पहले भू-जल विभाग से अनुमति लेनी होगी, लेकिन 10 प्रतिशत लोग भी ऐसा नहीं करते। बोरिंग करने वाले भी बेखौफ हैं। जहां कहिए वहां बोरिंग कर देते हैं। जल स्तर भी तय नहीं है, जिसका जितना मन आया उतनी गहरी बोरिंग करवाता है।
पूरा पानी भी नहीं दे पा रहा निगम
भू-जल के नीचे चले जाने के कारण निगम भी पानी की आपूर्ति नहीं कर पा रहा है। भारत सरकार और डब्ल्यूएचओ के मानदंड के अनुसार प्रति व्यक्ति 135 लीटर पानी की उपलब्धता जरूरी है, जबकि निगम ऐसा नहीं कर पा रहा है। यही कारण है कि स्वच्छ पानी न मिलने के कारण लोग जार खरीदने के लिए मजबूर हैं।
बिना किसी अनुमति के बिक रहे जार
100 लीटर से अधिक पानी के दोहन और बिक्री पर लाइसेंस लेना अनिवार्य है। पानी के जार का कारोबार करने के लिए 5 विभागों से अनुमति लेनी होती है। इन विभागों से अनुमति लेने वालों की संख्या नाममात्र की ही है।
एफएसएसआई का कहना है कि पानी के जार को लेकर शहर में एक भी व्यक्ति ने अनुमति नहीं ली।
भारतीय मानक ब्यूरो से मात्र 12 आपूर्तिकर्ताओं ने ही पानी के कारोबार की अनुमति ली है।
केंद्रीय भू-जल बोर्ड से अनिवार्य अनापत्ति प्रमाणपत्र 90 फीसदी लोगों ने नहीं लिया।
जिला अधिकारी कार्यालय के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है कि शहर में कितने लोग पानी बेच रहे हैं।
नगर निगम से लाइसेंस बनवाना होता है, यहां भी कोई रिकॉर्ड नहीं है।
पानी के कारोबार का सच
प्लांट में पानी को साफ करने वाले प्यूरीफायर ही नहीं लगाए गए हैं।
बोरिंग का पानी ही सीधे डिब्बों में भरकर घरों में बेचा जा रहा है।
प्लांट में कॉमर्शियल बिजली का मीटर भी नहीं लगा हुआ है। घरेलू मीटर से ही काम चल रहा है।
पानी की शुद्धता जांचने के लिए किसी भी प्लांट में कोई उपकरण लगा नहीं मिला।
जार को बिना धोए ही पानी भरा जा रहा है।
कई जगहों पर तो घर की बोरिंग से ही कारोबार चल रहा है।
व्यावसायिक गतिविधि होने के बावजूद न तो कोई कार्यालय है और न कोई अधिकृत प्लांट, केवल बोरिंग से ही कारोबार शुरू है।
हर महीने करोड़ों का कारोबार
शहर में हर महीने पानी के जार का कारोबार करोड़ों रुपए का है। यह सारा कालाधन है, क्योंकि इसमें कोई पक्की रसीद नहीं दी जाती। एक जार 25-30 रुपए में दिया जाता है। शहर में हर दिन लगभग 60 हजार जार का कारोबार है। इस तरह देखा जाए तो जार से एक दिन की कमाई 18 लाख रुपए हुई। यानी महीने में 5.40 करोड़ रुपए का काला कारोबार हो रहा है।
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