नीतीश सरकार को सुप्रीम कोर्ट की कड़ी फटकार, शराबबंदी ने अदालतों का दम घोंट रखा है

Shubham Bajpai, Last updated: Wed, 12th Jan 2022, 1:22 PM IST
  • सुप्रीम कोर्ट के शराबंदी को लेकर दिए आदेश से बिहार की नीतीश सरकार को बड़ा झटका लगा है. कोर्ट ने  शराबबंदी कानून के आरोपियों की जमानत के खिलाफ दायर 40 याचिकाओं को खारिज कर दिया. कोर्ट ने इस मामले में नाराजगी जताते हुए कहा कि शराबबंदी के मामलों ने अदालतों का दम घोंट रखा है.
नीतीश सरकार को बड़ा झटका, SC ने खारिज की शराबंदी मामलों में जमानत के खिलाफ दायर याचिका (फाइल फोटो)

नयी दिल्ली (भाषा) . सुप्रीम कोर्ट ने बिहार की नीतीश सरकार की शराबबंदी को लगाई गई 40 याचिकाओं को खारिज करते हुए सरकार के प्रति नाराजगी व्यक्त की. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि शराबबंदी के मामलों ने अदालतों का दम घोंट रखा है. प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन वी रमण के नेतृत्व वाली पीठ ने कहा कि इन मामलों ने पटना हाईकोर्ट के कामों को रोक कर रखा है. इन मामलों के चलते हाईकोर्ट के 14 -15 जज केवल इन मामलों की ही सुनवाई कर रहे हैं. नीतीश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में शराबबंदी कानून के तहत आरोपियों की अग्रिम और नियमित जमानत देने को चुनौती देने वाली याचिका दायर की थी. 

प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन वी रमण के नेतृत्व वाली पीठ ने बिहार सरकार की इस दलील को खारिज कर दिया कि आरोपियों से जब्त की गई शराब की मात्रा को ध्यान में रखते हुए कारण के साथ जमानत आदेश पारित करना सुनिश्चित करने के लिए दिशानिर्देश तैयार किए जाएं.

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न्यायमूर्ति रमण ने कहा कि आप जानते हैं कि इस कानून (बिहार मद्य निषेध और उत्पाद अधिनियम, 2016) ने पटना उच्च न्यायालय के कामकाज पर कितना प्रभाव डाला है और वहां एक मामले को सूचीबद्ध करने में एक साल लग रहा है तथा सभी अदालतें शराब से संबंधित जमानत मामलों से भरी पड़ी हैं.

प्रधान न्यायाधीश ने अग्रिम और नियमित जमानत दिए जाने के मामलों के खिलाफ राज्य सरकार की 40 अपील को खारिज करते हुए कहा कि मुझे बताया गया है कि उच्च न्यायालय के 14-15 न्यायाधीश हर दिन इन जमानत मामलों की सुनवाई कर रहे हैं और किसी अन्य मामले पर सुनवाई नहीं हो रही है.

यह टिप्पणी काफी महत्व रखती है क्योंकि प्रधान न्यायाधीश ने हाल ही में आंध्र प्रदेश के अमरावती में एक समारोह में बिहार शराब निषेध कानून का उल्लेख किया था और कहा था कि इसके परिणामस्वरूप राज्य की अदालतों और उच्च न्यायालय में बहुत सारे जमानत आवेदन दाखिल हुए हैं. उन्होंने कहा था कि कानून बनाने में दूरदर्शिता की कमी सीधे तौर पर अदालतों को अवरुद्ध कर सकती है.

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सुनवाई के दौरान बिहार सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता मनीष कुमार ने कहा कि शिकायत यह है कि उच्च न्यायालय ने कानून के गंभीर उल्लंघन में शामिल आरोपियों को बिना कारण बताए जमानत दे दी है, जबकि कानून में इसके तहत गंभीर अपराधों के लिए 10 साल की जेल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है.

उन्होंने कहा कि कुछ आरोपी 400 से 500 लीटर शराब ले जाते या बेचते पाए गए हैं और फिर भी उन्हें‘यांत्रिक तरीके से जमानत दी गई है, जबकि वे चार-पांच महीने ही जेल में रहे हैं. कुमार ने कहाकि मेरी समस्या यह है कि शराब के मामलों में उच्च न्यायालय द्वारा लगातार जेल में बिताई गई कुछ अवधि के आधार पर ही जमानत के आदेश पारित किए जा रहे हैं. प्रधान न्यायाधीश ने इस पर चुटकी लेते हुए कहा कि तो आपके हिसाब से हमें सिर्फ इसलिए जमानत नहीं देनी चाहिए, क्योंकि आपने कानून बना दिया है.

पीठ ने तब हत्या पर भारतीय दंड संहिता के प्रावधान का हवाला दिया और कहा कि जमानत और कभी-कभी, इन मामलों में अदालतों द्वारा अग्रिम जमानत भी दी जाती है. इसने कहा कि आप जिस अपराध के बारे में कह रहे हैं कि लोगों से करीब 800, 200 या 300 लीटर शराब जब्त की गई है... कुछ मामलों में 2017 में जमानत दी गई थी. पीठ ने कहा कि राज्य में इन मामलों की वजह से अदालतों का काम बुरी तरह प्रभावित हुआ है.

पीठ ने राज्य सरकार से मुकदमे आगे बढ़ाने को कहा क्योंकि उसने जांच पूरी करने के बाद इन मामलों में आरोप पत्र दाखिल किया है. अपील खारिज करते हुए, शीर्ष अदालत ने कहा कि इन मामलों में 2017 में उच्च न्यायालय द्वारा जमानत दी गई थी और इसलिए, अब इसके लिए याचिकाओं से निपटना उचित नहीं होगा.

बिहार पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, पिछले साल अक्टूबर तक बिहार मद्य निषेध और उत्पाद अधिनियम के तहत 3,48,170 मामले दर्ज किए गए और 4,01,855 गिरफ्तारियां की गईं. ऐसे मामलों में लगभग 20,000 जमानत याचिकाएं उच्च न्यायालय या जिला अदालतों में लंबित हैं.

 

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