अनंत चतुर्दशी का व्रत करेगा सब दुख दूर, जानें व्रत और पूजा की विधि
- अनंत चतुर्दशी की व्रत की शुरुआत महाकाल से हुई थी. जब पांडव सारा राजपाट हारकर कष्ट पूर्वक वन में अपना जीवन जी रहे थे. तब श्री कृष्ण ने उन्हें अनंत भगवान के इस व्रत को करने की सलाह दी थी. इसके बाद उनके सारे दुख दारिद्रय दूर हो गए और उन्हें अपना खोया राजपाट मिल गया.

पटना. सनातन हिंदू धर्म में अनंत चतुर्दशी का काफी महत्व है. भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी कहा जाता है.इसे अनंत चौदस के नाम से भी जाना जाता है.इस वर्ष अनंत चतुर्दशी 1 सितंबर को है. इस दिन कई स्थानों पर 10 दिन तक चलने वाले गणेश उत्सव का भी अंत हो जाता है और गणेश जी को विसर्जन के लिए ले जाया जाता है.भारत के कई राज्यों में अनंत चतुर्दशी के व्रत को किया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु की लोक कथाएं सुनी जाती हैं.
अनंत चतुर्दशी को भगवान विष्णु का दिन माना जाता है और कहा जाता है कि अनंत चतुर्दशी के व्रत की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी. कहा जाता है कि जब पांडव जुए में अपना सारा राजपाट हार जाने के बाद कष्ट पूर्वक वनवास कर रहे थे, तब वे श्री कृष्ण के पास गए. कृष्ण ने उन्हें अनंत चतुर्दशी का व्रत करने को कहा .भगवान श्री कृष्ण युधिष्ठिर से कहा कि यदि वे विधिपूर्वक अनंत( विष्णु) भगवान का व्रत करेंगे तो उनके सारे कष्टों का निवारण हो जाएगा और उन्हें अपना खोया राज्य भी फिर से मिल जाएगा.
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इसके बाद भगवान कृष्ण ने इस व्रत की महत्व को समझाने के लिए उन्हें एक कथा सुनाई थी. कथा के अनुसार प्राचीन काल में सुमंत नाम के एक तपस्वी ब्राह्मण थे. उनकी पत्नी का नाम दीक्षा था. दोनों की सुशीला नाम की एक कन्या थी. सुशीला के व्यस्क होने पर ब्राह्मण ने उसका विवाह कौंडिल्य ऋषि के साथ कर दिया. जब सुशीला कौंडिल्य ऋषि के साथ उनके आश्रम जा रही थी, तब रास्ते में संध्या हो गई थी. सुशीला ने देखा कि बहुत सी स्त्रियां रास्ते में किसी देवता की पूजा कर रही हैं. इसके बाद उसने पास जाकर स्त्रियों से पूछा तो स्त्रियों ने सुशीला को अनंत चतुर्दशी के व्रत के बारे में बताया. इसके बाद सुशीला ने भी उन स्त्रियों के साथ मिलकर उस व्रत का अनुष्ठान किया और चौदह गांठो वाला डोरा हाथ में बांधकर ऋषि कौंडिल्य के पास आ गई.
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इसके बाद जब कौंडिल्य ऋषि ने सुशीला के हाथ में बंधे डोरे के बारे में पूछा तो सुशीला ने उन्हें सारी बात बताई. लेकिन कौंडिल्य ऋषि ने उसकी बातों को नहीं माना और उसके हाथ से डोरा तोड़कर अग्नि में डाल दिया. इससे भगवान अनंत का बहुत अपमान हुआ. इसका परिणाम यह हुआ कि कौंडिल्य इसके बाद सुखी नहीं रह सके और उनकी सारी धन दौलत भी समाप्त हो गई. बाद में उन्होंने सुशीला से इसका कारण पूछा तो सुशील ने उन्हें अनंत भगवान का डोरे की जलाए जाने वाली बात याद दिलाई. इसके बाद कौंडिल्य ऋषि को अपने किए पर पश्चाताप हुआ और वे अनंत डोरे के लिए वन में चले गए. कौंडिल्य वन में काफी दिन तक घूमते रहे. एक दिन निराश होकर वे जमीन पर गिर पड़े. इसके बाद भगवान अनंत ने उन्हें दर्शन दिए और कहा कि हे! कौंडिल्य तुमने मेरा तिरस्कार किया था. उसी दिन से तुमको तुम्हें यह कष्ट भोगना पड़ा. अब जब तुम्हें अपनी भूल का पश्चाताप हो गया है तब घर जाकर 14 वर्षों तक अनंत व्रत का अनुष्ठान करो. इससे तुम्हारे सारे दुख दारिद्रय मिट जाएंगे और तुम दोबारा धन-धान्य से संपन्न हो जाओगे.
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इसके बाद श्री कृष्ण की आज्ञा से युधिष्ठिर ने भी भगवान आनंद का 14 वर्ष तक विधि पूर्वक अनुष्ठान किया. इसका प्रभाव यह हुआ कि पांडव महाभारत के युद्ध में विजयी हुए और उन्हें अपना खोया हुआ राजपाट भी मिल गया. इसके बाद ही अनंत चतुर्दशी का व्रत प्रचलन में आया.
क्या है अनंत चतुर्दशी की पूजा विधि
अनंत चतुर्दशी को प्रातः काल स्नान आदि कार्यों से निवृत्त होकर साफ सुथरे वस्त्र धारण करके व्रत का संकल्प लेना लें. इसके बाद पूजा कलश की स्थापना करके भगवान विष्णु की तस्वीर रखें. कलश पर अष्टदल, कुश और फूल चढ़ाकर पूजा स्थल पर सूत में कुमकुम और हल्दी लगाकर चौदह गांठ के अनंत सूत्र को तैयार करें. इसके बाद इस सूत्र को भगवान विष्णु को चढ़ा दें. यदि आप अनंत सूत्र बनाना नहीं जानते हो या आपके पास इतना समय नहीं है कि आप अनंत बना सके तो इसे आप बाजार से भी खरीद कर लाकर भी प्रयोग कर सकते हैं.
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इसके बाद अनंत देव की कथा सुनें. पूजा के अंत में एक बर्तन में दूध, सुपारी और अनंत सूत्र डालकर खीर मंथन करवाएं. इसके बाद भगवान विष्णु की आरती करें. पूजा के अंत में अनंत भगवान का ध्यान करते हुए अनंत सूत्र को पुरुष अपने दाहिने हाथ में और स्त्रियां अपने बाएं हाथ में सूत्र को बांध लें. अनंत सूत्र को बनते समय इस मंत्र का जप करें.
अनंत संसार महासमुद्रे मग्नं समभ्युद्धर वासुदेव।
अनंतरूपे विनियोजयस्व ह्यनंतसूत्राय नमो नमस्ते।।
इसके बाद ब्राह्मण को भोजन कराना कराएं और स्वयं भी प्रसाद ग्रहण करें. कहा जाता है कि यदि व्रत रखने के साथ-साथ विष्णु सहस्त्रनाम स्त्रोत का पाठ भी किया जाए तो व्यक्ति की हर मनोकामना पूर्ण होती है.
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