गल्प कथा: अगुआ बन गया दूल्हा, नाराज हो गए फूफा, चाचा, अब कैसे होगा बहूभोज ?

Smart News Team, Last updated: Fri, 9th Jul 2021, 8:08 PM IST
  • डिस्क्लेमर: नरेंद्र मोदी सरकार के पहले मंत्रिपरिषद विस्तार के बाद एक राज्य के नेता और वहां की राजनीति पर आधारित इस व्यंग्य से किसी पार्टी या नेता की समानता नितांत संयोग होगा. कुछ जगहों पर अतिरंजित तुकबंदी भावनाएं आहत करने की कोशिश नहीं हैं बल्कि कहानी को थोड़ा दिलचस्प बनाने का प्रयास है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी सप्ताह दूसरे कार्यकाल का पहला मंत्री परिषद विस्तार किया है. 

नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले मंत्रिपरिषद विस्तार में तीन दर्जन नए मंत्री बने तो एक प्रमुख उत्तर भारतीय राज्य को दो नए मंत्री मिले. तीन दर्जन से ज्यादा सांसद लोकसभा भेजने वाले इस राज्य के एक मंत्री से इस्तीफा ले लिया गया और दूसरे को प्रोमोट कर दिया गया. राज्य से दो-दो नए मंत्री और वो भी दो अलग-अलग पार्टियों के राष्ट्रीय अध्यक्ष (विवाद सहित) के सरकार में शामिल होने पर राज्य में जश्न और उत्साह का जैसा राजनीतिक माहौल बनना चाहिए था वो गायब है. पार्टी कार्यकर्ताओं में ऊर्जा का संचार होना चाहिए था लेकिन संशय है. ना हताशा है, ना निराशा है. बस ये एक चीज राजनीतिक कार्यकर्ताओं को नहीं आती. वो हमेशा अगली लड़ाई और जीत के लिए लग जाते हैं.

कोरोना प्रोटोकॉल है लेकिन उसका पालन राजनीतिक कार्यकर्ताओं और खास तौर पर सत्ता चला रही पार्टी के वर्करों के लिए कहीं भी अनिवार्य नहीं पाया गया है. पड़ोसी राज्य के पंचायत चुनाव में ब्लॉक प्रमुख बनने-बनाने के लिए जिस तरह मार-कुटाई हो रही है, लाठी-गोली चल रही है, उससे यह तो स्पष्ट है कि दो-दो मंत्री मिलने के बाद भी राज्य में ना जोश है, ना कार्यकर्ता बे-होश हो रहे हैं. मंत्री पाई पार्टियों के कार्यकर्ता जगह-जगह होली खेल लेते, विजय जुलूस निकाल लेते या हवाई फायरिंग कर देते तो कोई हाय-तौबा जैसी बात नहीं होती.

खैर. दो नए मंत्रियों में पहले मंत्री ऐसे हैं जिनके हाथ में विवादित तौर पर पार्टी है, ज्यादातर सांसदों का समर्थन है पर राज्य भर में जश्न मनाने के लिए पार्टी कार्यकर्ता नहीं हैं और हैं तो सड़कों पर नहीं उतर रहे हैं. कहने वाले तो कहते हैं कि उनके पास वोट बैंक अलावा अब सब कुछ है. इस पार्टी में ऐसा पहले कभी नहीं होता था. धरती से लेकर आसमान तक गूंजता था. इस बार गूंज दूर तक नहीं जा रही है.

पहले मंत्री के अलग-थलग पड़ गए सांसद राज्य में घूम-घूमकर आशीर्वाद मांग रहे हैं. कह रहे हैं कि पहले मंत्री जी दूसरे मंत्री जी की पार्टी की गोद में बैठ गए हैं और पहले को मंत्री बनाने के लिए दूसरे की पार्टी ने अपने ही नेताओं की बलि दे दी. ऐसा कभी सुना या देखा नहीं गया होगा कि एक पार्टी के नेता को मंत्री बनाने के लिए दूसरी पार्टी अपने ही नेताओं को मंत्री ना बनने दे. लेकिन सत्ता की राजनीति में सब संभव है, सब नैतिक है और सब जायज है.

दूसरे मंत्री जी को लेकर लोग फकड़ा सुना रहे हैं कि अगुआ ही दूल्हा बन गया है. ये कोई दिक्कत नहीं है कि अगुआ दूल्हा बन गया, संकट ये है कि इससे फूफा और चाचा सब नाराज हो गए हैं. इस नाराजगी से नतीजा ये बन रहा है कि शादी करने के बाद भी दूल्हे को समझ में नहीं आ रहा है कि बहूभोज का इंतजाम कैसे हो. अब कोई भी पूछेगा कि चाचा और फूफा को तकलीफ क्या है?

सुना ये जा रहा है कि अगुआ को रिश्ते की बात करने चाचा-फूफा लोगों ने समझाकर भेजा था कि शादी तभी ओके होगी जब ये चार चीजें होंगी. संयोग से अगुआ खुद की शादी के लिए लालायित चल रहे थे और रिश्ते की बात में चार चीजें ना होती देख अपनी ही शादी तय कर ली. अब इससे चाचा और फूफा लोग गुस्सा हैं कि जब चार चीजें पूरी ना हो रही थीं तो खुद शादी करने की क्या जरूरत थी. दो साल पहले भी तो बारात दरवाजे से लौटा दी थी.

नाक कटने जैसा कुछ है नहीं फिर भी चाचा-फूफा लोगों को लग रहा है कि धोखा हो गया है. चार काम ना हुआ तो ना सही, राउंड फिगर में दो बात तो डन करा आते. ये कौन सी बात हुई कि खुद ही शादी कर ली. अब शादी तो हो गई है. दूल्हा सेहरा बांधकर दुल्हन भी ले आया लेकिन ना चाचा बधाई दे रहे है, ना फूफा शुभकामना. संघर्ष तो आदमी फिर भी अकेले कर लेता है. जश्न भी कोई कैसे अकेले मनाए. सबको लग रहा है कि चाचा नाराज हैं, फूफा गुस्सा हैं. पर ये घाघ लोग हैं कि कुछ बोल ही नहीं रहे हैं. जब ये नहीं बोल रहे हैं तो परिवार के बाकी लोग कनफ्यूज हैं और इंतजार कर रहे हैं इशारों का जिससे तय हो कि हंसना है, रोना है या मुंह फुलाए रखना है.

और आसार ये हैं कि इशारे इस वीकेंड से मिलने लगेंगे जब दोनों मंत्री जी गेंदा के हारों से लद-बद होकर घर लौटेंगे. दोनों मंत्री जी सरकार में शामिल होने की खुशियां बांटने अपने नेताओं के बीच, अपने कार्यकर्ताओं के बीच, अपने परिवार के बीच लौटेंगे. एयरपोर्ट पर सौ-पांच सौ लोगों की भीड़ से भी भारी स्वागत का माहौल बन जाता है. असली खुशियां पार्टी दफ्तर में, राजधानी से बाहर होने वाले स्वागत में नजर आएंगी. तभी पता चलेगा कि कार्यकर्ता और वोटर भी साथ हैं या बस सत्ता ही हाथ में रह गई है. संकेत इससे भी मिलेगा कि हवाई लैंडिंग के बाद मंत्री जी सबसे पहले कहां जाते हैं. तभी पता चलेगा कि फूफा-चाचा सच में नाराज हैं या मामला सब सेट है. और ये भी कि फूफा और चाचा दोनों एक साथ सेट हैं.

आज का अखबार नहीं पढ़ पाए हैं।हिन्दुस्तान का ePaper पढ़ें |

अन्य खबरें