गुरुवार, रविवार और एकादशी पर होती है विष्णुजी के साथ तुलसी पूजन, जानें पौराणिक कथा का महत्व

Pallawi Kumari, Last updated: Thu, 24th Feb 2022, 11:00 AM IST
  • प्रत्येक गुरुवार, रविवार और एकादशी के दिन श्री हरि विष्णु जी के साथ तुलसी जी का विवाह और पूजन होता है. तुलसी और विष्णुजी का आशीर्वाद प्राप्त होने से जीवन से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. आइये जानते हैं भगवान विष्णु एवं तुलसी पूजन की प्रचलित कथा का महत्व.
भगवान विष्णु एवं तुलसी पूजन कथा (फोटो साभार-लाइव हिन्दुस्तान)

भगवान विष्णु के सभी अवतारों और माता लक्ष्मी के सभी विशेष दिनों में श्री हरि विष्णु के साथ तुलसी पूजन करने की प्रचलन है. वहीं हर गुरुवार, रविवार और एकादशी के दिन भी तुलसी जी और विष्णुजी की विशेष पूजा की जाती है. आइये पौराणिक कथा में जानते हैं आखिर क्यों की जाती है भगवान विष्णुजी के साथ तुलसी की पूजा.

तुलसी जी की एक बहुत प्रचलित कथा है इसके अनुसार एक बार भोलेनाथ ने अपने तेज को समुंद्र में फैंक दिया था. उससे एक महातेजस्वी बालक का जन्म हुआ. ये बालक बाद में पराक्रमी दैत्य राजा जालंधर बन गया. जालंधर का विवाह वृंदा के साथ हुआ. लेकिन उसने माता लक्ष्मी को पाने की कामना से युद्ध किया और उसमें पराजय हो गया. माता लक्ष्मी ने उसे भाई के रूप मे स्वीकार किया. 

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लेकिन इस पराजय के बाद उसकी लालसा माता पार्वती को पाने की थी. इसके लिए वह शिवजी का रूप धारण कर कैलाश गया. लेकिन माता पार्वती ने उसे पहचान लिया. माता पार्वती ने ये सारी कहानी भगवान विष्णु को सुनाई. जालंधर भले ही क्रूर दैत्य था. लेकिन उसकी पत्नी वृंदा पतिव्रता पत्नी थी. जालंधर के नाश के लिए वृंदा का पतिव्रत धर्म भंग करना जरूरी था.

भगवान विष्णु जालंधर का रूप धारण कर वृंदा के पास पहुंच गए. जैसे ही वृंदा की नजर पति जालंधर पर पड़ी तो उसने पति समझ भगवान विष्णु के चरण छू लिए. लेकिन वृंदा का पति जालंधर कैलाश में युद्ध कर रहा था. विष्णु जी के चरण छूते ही वृंदा का सतीत्व नष्ट हुआ और उसके पति का कटा हुआ सिर उसके आंगन में आ गिरा. वृंदा सोचने लगीं कि यदि सामने कटा पड़ा सिर मेरे पति का है, तो जो व्यक्ति मेरे सामने खड़ा है, यह कौन है? वृंदा के पूछने पर भगवान विष्णु अपने वास्तविक रूप में आ गए.

वृंदा इस छल से आहत हुई और उसने भगवान विष्णु को पत्थर बनने का श्राप दे दिया. वृंदा के श्राप से विष्णुजी पत्थर के बन गए. लेकिन लक्ष्मी जी ने वृंदा से प्रार्थना की कि वो विष्णु जी को अपने श्राप से मुक्त कर दे. इसके बाद वृंदा ने विष्णु जी को श्रापमुक्त कर दिया है और और पति जालंधर का कटा सिर लेकर सती हो गई. 

वृंदा की राख से एक पौधा निकला, जिसे भगवान विष्णु ने तुलसी के पौधे का नाम दिया और कहा कि ‘शालिग्राम’ नाम से मेरा एक पत्थर का रूप , जिसकी पूजा तुलसी के साथ की जाएगी. भगवान विष्णु ने कहा कि मेरी पूजा में हमेशा तुलसी का उपयोग जरूरी होगा. इसके बाद से ही भगवान विष्णु की हर विशेष पूजा में तुलसी जी का पूजन किया जाना जरूरी हो गया.

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