पटना: कोरोना ने तोड़ी कमर, कांवड़ यात्रा न होने से 45 करोड़ के बाजार को झटका
- कोरोना वायरस के खतरे की वजह से इस साल कहीं भी श्रावमी मेला का आयोजन नहीं होगा और न ही कहीं कांवर यात्रा होगी।

कोरोना काल में अब क्या सावन और क्या भादो, सब एक जैसा ही हो गया है। कोरोना वायरस का संक्रमण इतना भयंकर है कि इसका असर इस साल सावन में होने वाले कांवड़ यात्रा पर भी पड़ा है। कोरोना वायरस के खतरे की वजह से इस साल कहीं भी श्रावमी मेला का आयोजन नहीं होगा और न ही कहीं कांवर यात्रा होगी। पहले सावन आने के करीब 15-20 दिन पहले से ही श्रावणी मेला से लेकर कांवर यात्रा की तैयारिया होने लगती थी। बाजार सजने लगता था और दुकानों को रंग-रूप बदलने लग जाता था। मगर इस बार कोरोना की वजह से न तो गेरुआ और केसरिया रंग से बाजार सज रहे हैं और न ही मंदिरों में कोई कावंर यात्रा का प्रबंध दिख रहा है। इसकी वजह है कि प्रशासन ने हर जगह कावंर यात्रा पर रोक लगा दी है।
सावन महीने में हर तरफ बोल बम छाप टी-शर्ट, गंजी, कैप्री, साड़ी दिखने लगते थे। इस बार यह नजारा नहीं दिखेगा। स्टेशन के न्यू मार्केट स्थित कपड़ा दुकानदार शशिभूषण गुप्ता कहते हैं कि इस साल कांवड़ यात्रा पर रोक के बावजूद कुछ कपड़े दुकान के आगे इस उम्मीद के साथ लटकाए गए हैं कि लोग अपने घरों के आसपास के मंदिर में पूजा करने के लिए इन्हें खरीदेंगे। इस साल सावन में भी पिछले साल की तुलना में दो से तीन प्रतिशत कपड़े की बिक्री भी होने की उम्मीद नहीं है।
हर दिन 1.5 करोड़ रुपये का नुकसान
दरअसल, ऐसा अनुमान है कि कांवड़ यात्रा पर जाने वाले एक व्यक्ति का करीब डेढ़ से दो हजार रुपये का खर्च कपड़ा व अन्य समान पर होता है। इसके अलावा यात्रा के दौरान तीन से चार हजार रुपये खर्च हो जाता है। कुल मिलाकर देवघर जाने वाले प्रत्येक व्यक्ति पर औसतन पांच हजार रुपये तक का खर्च होता था। बाबाधाम के लिए पटना से प्रतिदिन लगभग दस हजार लोग कांवर यात्रा पर निकलते थे।
कपड़ा व्यवसायियों की हालत पस्त
सावन महीने में पटना के केवल कपड़ा और जरूरी सामान के बाजार की बात करें तो रोज करीब डेढ़ करोड़ रुपये के न्यूनतम नुकसान का अनुमान है। ठाकुरबाड़ी रोड व्यवसायिक संघ के सचिव रवि कुमार कहते हैं कि कपड़ा व्यवसायियों की काफी दयनीय हालत हो गई है। कर्ज लेकर कांवड़ यात्रा की तैयारी की गई थी। मगर यात्रा पर रोक लगने से अब माल कम से कम एक साल के लिए फंस गया है। हर साल केवल ठाकुरबाड़ी रोड में 30 लाख रुपये से ऊपर से अधिक का कपड़ा बिकता था। इस साल बोहनी तक नहीं हो सकी है।
सावन का बाजार सूना
कांवड़ यात्रा के पहले बोलबम जाने वाला एक शिवभक्त अपने लिए कम से कम दो जोड़ी टी-शर्ट, शर्ट, या प्रिंटेड कुर्ता, लुंगी, कैप्री, गमछा, बैग, कांवर आदि लेता है। मगर इस बार वह नहीं खरीदेगा। हालांकि, दुकानदारों ने माल मंगा रखा था या फिर ऑर्डर कर रखा था। मगर सावनी मेले पर रोक से उनका माल फंस गया है।
नहीं लगा कांवड़ बाजार
सावन के लगभग दो महीने पहले से ही कांवड़ निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। इस साल कोरोना वायरस के फैलाव को रोकने के लिए लगे लॉकडाउन से ज्यादातर उद्यमियों ने कांवड़ नहीं बनवायी है। आमतौर पर सावन के महीने में 250 रुपये से लेकर 1000 रुपये के बीच के कांवर की बिक्री होती थी। कई आर्डर देकर कांवड़ बनवाते थे।
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