छत्तीसगढ़ में लोग गोबर से बनी चप्पल को खूब कर रहे पसंद, जानें इसके फायदे और कीमत

Anurag Gupta1, Last updated: Tue, 7th Dec 2021, 2:01 PM IST
  • छत्तीसगढ़ में गोबर से बनी चप्पल बनी आकर्षण का केंद्र. इसको बनाने वाले गोकुल नगर के रहने वाले रितेश अग्रवाल है. उनका कहना है हमारे दैनिक जीवन में प्लास्टिक उपयोग बहुत बढ़ गया है जो पर्यावरण के साथ गोवंश को भी हानि पहुंचा रहा है. गाय सड़कों पर प्लास्टिक खाकर खाकर बीमार हो जाती है.
चप्पल बनाती महिला (फाइल फोटो)

रायपुर. रायपुर में गोबर से बनी चप्पल इस वक्त लोगों को बहुत पसंद आ रही है. गोबर से बनी चप्पल इस वक्त आकर्षण का केंद्र बनी हुई है. गोकुल नगर निवासी रितेश अग्रवाल प्लास्टिक या रबर की जगह गोबर से चप्पल बनाने का काम कर रहे हैं. बता दें रितेश अग्रवाल प्लास्टिक का विरोध करते हैं. उनका कहना है कि प्लास्टिक दैनिक जीवन के साथ पर्यावरण और गोवंश को भी हानि पहुंचा रहा है. जिसके रोकथाम के लिए रितेश अग्रवाल गोबर से चप्पल बनाने का काम कर रहे हैं.

रितेश अग्रवाल ने बताया की राज्य सरकार ने गौठान बनाकर सड़को पर लावारिस घूमने वाले गौवंश को संरक्षित किया है. गाय सड़को व कूड़ों में पड़े प्लास्टिक खाकर बीमार हो जाती थी. 90 प्रतिशत गौवंश प्लास्टिक खाने के कारण बीमार होते हैं. 80 प्रतिशत गौवंश की प्लास्टिक के कारण मौत हो जाती है. इसीलिए गाय को प्लास्टिक से दूर रखना बेहद जरूरी है.

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लोग पसंद कर रहे गोबर से बनी चप्पल:

रितेश अग्रवाल ने बताया कि गौठान तो बन गए हैं लेकिन हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि इस पहल को कैसे आय का स्रोत और रोजगार सृजन किया जाए. इसके लिए हमने गोबर से चप्पल, दीए, ईंट और भगवान की प्रतिमा बनाने की शुरुआत की है. गोबर से चप्पल का निर्माण पहली बार हो रहा है लेकिन लोग इसको पसंद कर रहे हैं. इससे पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा. रितेश ने बताया कि बीती दिवाली में 1 लाख 60 हजार दीए की बिक्री हुई हैं.

कैसे बनती है गोबर से चप्पल:

गोहार गम, आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां, चूना और गोबर पाउडर को मिक्स करके चप्पल बनाई जा रहा है. पुरानी पद्धति से गोबर की चप्पल बना रहे हैं. गोबर के दीए हो या गोबर की ईंट या फिर भगवान की प्रतिमा इन सब कामों से गौशाला में गौवंश के देखरेख के लिए 15 लोगों को रोजगार मिल रहा है. यहां महिलाएं 1 किलो गोबर से 10 चप्पलें बनाती हैं. गोबर से बनी चप्पल को घर, बाहर या ऑफिस कहीं भी पहनकर जाया जा सकता है. ये चप्पल तीन से चार घंटे भीगने पर भी खराब नहीं होती है यदि कुछ भीग जाए तो धूप दिखाने के बाद वापस से पहनने लायक हो जाती है.

बीपी शुगर पर पड़ रहा असर:

चप्पलों को बीपी, शुगर के मरीज और गौ भक्तों के लिए सैंपल के तौर पर बनाया गया था. इस चप्पल से होने वाले स्वास्थ्य के लाभ को जानने के लिए रोजाना चप्पल पहनने के टाइम पर बीपी और शुगर नोट करने को कहा है. उसके बाद चप्पल उतारते वक्त देखने को कहा है. इसका अच्छा परिणाम देखने को मिल रहा है. इस चप्पल की कीमत 400 रूपए है और अभी तक लगभग एक दर्जन चप्पल बिक चुकी है और 1000 का ऑर्डर मिल चुका है.

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