Raipur: बरसों पहले गुढ़ियारी पड़ाव में बनी थी महाभारत की झांकी, दीवानगी इतनी कि दूर-दूर से देखने आते हैं लोग
- रायपुर में हर साल गणेश महोत्व की धूम हर जगह देखने को मिलती थी. लेकिन इस बार कोरोना ने वो चहल-पहल खत्म कर दी है.
रायपुर: रायपुर में हर साल गणेश महोत्व की धूम हर जगह देखने को मिलती थी. लेकिन इस बार कोरोना ने वो चहल-पहल खत्म कर दी है. शहरों से हजारों लोग स्थल सजावट और विसर्जन झांकी इस बार देखने को नहीं मिला. पिछले साल कोरोना महामारी ने सारी रौनक खत्म कर दी. इस साल भी केवल सादगी से गणेश प्रतिमा विराजित की गई है. गुढि़यारी की कई स्थल झांकियां आज भी लोगों के जेहन में हैं.
100 साल से भी अधिक पुरानी गुढि़यारी पड़ाव गणेशोत्सव समिति के प्रकाश माहेश्वरी बताते हैं कि 40-45 साल पहले स्थापित की गई झांकियों को लोग शायद ही कभी भूल पाएंगे. ऐसी ही झांकियों में 1980 में शिव-पार्वती और 1981-82 में भागवत गीता का संदेश देते भगवान श्रीकृष्ण-अर्जुन की झांकी आज भी यादों में बसी है. महाभारत युद्ध के मैदान में घोड़ों से सुसज्जित आकर्षक रथ पर विराजित भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन की झांकी देखने महाराष्ट्र, ओडि़सा से भी श्रद्धालु आए थे.
उन बेहद सुंदर और यादगार झाकियों ने गुढि़यारी इलाके को कई राज्यों में पहचान दिलाई थी. लोग आज भी उस दिन को भूल नहीं पाते. असली जैसे दिखने वाले घोड़ों और रथ की झांकी को कई साल तक म्यूजियम में भी रखा गया था. ऐसी ही एक झांकी शिव-पार्वती की थी, हिमालय पर विराजित प्रतिमा को वॉटर प्रूफ बनाया गया था. इन दोनों झांकियों को कलाकार स्व. रामरतन बेरिया ने बनाया था. ऐसी झांकी आज तक राजधानी में दूसरी नहीं बन सकी.
उस दौरान गुढि़यारी तक आने में काफी परेशानी होती थी. लेकिन झांकी को देखने के लिए ऐसी दीवानगी थी कि लोग दूर-दूर से आते थे. गुढ़ियारी पड़ाव गणेशोत्सव समिति की स्थापना दीनदयाल दाऊ, रामभजन दाऊ, मदनलाल अग्रवाल, हरिकिशन खेमका, मानकलाल दुग्गड़, संपतराज जैन आदि ने की थी.
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