हजारों मील की दूरी तय कर सोन चिरैया पहुंची भारत, जानिए खासियत

Ruchi Sharma, Last updated: Wed, 22nd Dec 2021, 9:48 AM IST
  • सुनहरी चिड़िया साढ़े चार हजार किलोमीटर की दूरी तय कर उत्तरी ध्रुव से झारखंड के हजारीबाग पहुंची है. पेसिफिक गोल्डन फ्लोवर नामक इस खूबसूरत चिड़िया को पहली बार हाजरीबाग कोडरमा के तिलिया डैम में देखा गया है. इस सुंदर चिड़िया को बंगाल में सोन बटन भी कहा जाता है.
हजारों मील की दूरी तय कर सोन चिरैया का भारत में हुआ आगमन, जानिए खासियत

रांची. विदेशी पक्षियों के लिए तिलैया डैम सालों से पसंदीदा जगह है. तिलैया डैम की हसीन वादियों में विदेशी मेहमानों का आगमन होता रहता है. इस बार सुनहरी चिड़िया साढ़े चार हजार किलोमीटर की दूरी तय कर उत्तरी ध्रुव से झारखंड के हजारीबाग पहुंची है. पेसिफिक गोल्डन फ्लोवर नामक इस खूबसूरत चिड़िया को पहली बार हाजरीबाग कोडरमा के तिलिया डैम में देखा गया है. इस सुंदर चिड़िया को बंगाल में सोन बटन भी कहा जाता है.

तिलैया डैम की के रिजर्व क्षेत्र में हर साल ठंड के एहसास के साथ ही विदेशी पक्षियों का आगमन होता है. यह पक्षी 20 नवंबर के बाद यहां डेरा डालते हैं. इसी क्रम में जब सोन चिरैया पहुंची तो लोग उसे देखकर उसकी तस्वीर लेने लगे. बर्ड पर्यावरण इंद्रजीत के मुताबिक इससे पहले कभी भी पेसिफिक गोल्डन प्लोवर के झारखंड में देखे जाने के दस्तावेज प्रमाण नहीं मिले हैं. बर्थ ऑफ इंडिया और कई अन्य महत्वपूर्ण किताबों में इसका कोई जिक्र नहीं मिलता है.

 

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पहली बार देखने को मिली यह चिड़िया

तिलैया डैम को वर्ष 2017 में इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर ने इंपॉर्टेंट बर्ड एरिया के रूप में चिन्हित भी किया है. इंद्रजीत बताते हैं कि यहां हर साल कई दुर्लभ पक्षी देखे जाते हैं, लेकिन इस साल पहली बार तिलिया डैम में पेसिफिक गोल्डन फ्लोवर की एक जोड़ी देखने को मिला है. जिसे उन्होंने अपने कैमरे में कैद किया है. 10 इंच की चिड़िया उत्तरी ध्रुव में पड़ रही प्रचंड ठंड से बचने के लिए आई है.

जानिए खासियत

डीएफओ वन प्राणी हजारीबाग अवनीश कुमार चौधरी ने भी कहा कि वैश्विक गोल्डन प्लोवर वर्ल्ड हाजिरी बाग में दिखी है. यह पूरे देश के लिए खुशी की बात है. उन्होंने बताया कि आज चिड़िया उत्तरी ध्रुव अलास्का साइबेरिया में पाई जाती है. यहां माइग्रेटरी बर्ड है. इसका मतलब यह हुआ कि जलवायु में बदलाव हो रहा है. इस बोर्ड की खासियत यह है कि यह झुंड में चलती है और 100 किलोमीटर की ऊंचाई पर ही उड़ती है.

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