Chaurchan 2021: चंद्रमा की पूजा कर पुत्र की दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं मिथिला की महिलाएं, ये है मान्यता

Priya Gupta, Last updated: Fri, 10th Sep 2021, 9:43 AM IST
  • मिथिला में चौरचन का त्योहार मनाया जाताा है.इसे चौरचन या चौठचंद्र भी कहा जाता है. मिथाला में बहुत ही धूमधाम से चौरचन मनाया जाता है.
Chaurchan 2021:

हरतालिका तीज के बाद पूरे मिथिला में चौरचन का त्योहार मनाया जाताा है. चौरचन को चौठचंद्र भी कहा जाता है. मिथाला में बहुत ही धूमधाम से चौरचन मनाया जाता है. ये त्योहार प्रकृति से जुड़ा होता है.ये पूजा पुत्र की दीर्घायु के लिए किया जाता है. झारखंड के रांची में काफी संख्या में मिथिलावासी रहते हैं. ऐसे में ये पर्व यहां भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है.

कैसे होती है पूजा

इस दिन मिथिला की महिलाएं पूरे दिन व्रत करती हैं. इसके साथ ही शाम को भगवान गणेश की पूजा के साथ चांद की विधि विधान से पूजा कर अपना व्रत तोड़ती हैं. पूजा स्थल पर पिठार से अरिपन बनाया जाता है. उसके बाद उस अरपन को बांस से बने डाली (पथिया) में फल , पिरुकिया, टिकरी, ठेकुआ, और मिट्टी के मटकुरी में दही जमा कर पूजन सामग्री के साथ घर के सभी लोग चंद्र देव को अर्ध्य देते है.उसके बाद घर के वरिष्ठ सदस्य (पुरुष) मरर भांगते है जिसमे खीर दाल पूरी के साथ साथ फल मिठाई दही होता है.

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क्या है इसकी मान्यता

इस पूजा की मान्यता है कि चौठ के दिन भगवान गणेश ने चंद्रमा को श्राप दिया था. पुराणों में ऐसा कहा गया है कि चंद्रमा को अपने सुंदरता पर बड़ा घमंड था. चंद्रमा ने भगवान गणेश का मजाक बनाया था, इससे नाराज होकर भगवान गणेश ने चांद को श्राप दे दिया. उन्होंने कहा कि जो भी इस दिन चांद देखेगा उसे कलंक लगने का डर रहेगा. इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए भाद्र मास के चतुर्थी के दिन चांद ने भगवान गणेश की पूजा अर्चना की. चांद को अपनी गलती का एहसास था इसलिए भगवान गणेश ने उसे वर दिया कि जो भी मेरी पूजा के साथ तुम्हारी पूजा करेगा उसे कलंक नहीं लगेगा.

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