झारखंड: पंचायत चुनाव की तैयारी के बीच पेसा कानून को लेकर हाईकोर्ट पहुंचे लोग

Naveen Kumar, Last updated: Fri, 18th Feb 2022, 3:42 PM IST
  • झारखंड में पेसा कानून 1996 लागू होने के बाद भी अनुसूचित जिलों में तीसरी बार पंचायत चुनाव होंगे. इसे लेकर तैयारी शुरू कर दी गई है. वहीं, पेसा कानून को लेकर अब लोगों ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है
फाइल फोटो

रांची. झारखंड में एक बार फिर पंचायत चुनाव कराने की तैयारी चल रही है. पेसा कानून 1996 लागू होने के बाद भी अनुसूचित जिलों में पंचायत चुनाव होंगे. इसके पीछे की वजह पेसा कानून की नियमावली नहीं बनना भी है. पेसा कानून को लेकर अब लोगों ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. बता दें कि झारखंड में अब तक दो बार पंचायत चुनाव हो चुके हैं. अब तीसरी बार चुनाव कराने की तैयारी चल रही है, जो इस साल कभी भी हो सकते हैं. इसी बीच पेसा कानून के तहत नियमावली बनाने की मांग भी उठ रही है. 

इसके अलावा पंचायत चुनाव नहीं कराने, अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सेवा को अधिक मजबूत बनाने की भी पहले से मांगें की जा रही हैं. हालांकि, 73वें संविधान संशोधन और पंचायत उपबंध अधिनियम 1996 के बाद बदलाव हुआ है. जिसके तहत ग्रामसभा को मान्यता, मध्य स्तरीय और जिला पंचायत का चुनाव, पंचायत विशेष में अनुसूचित जाति और जनजाति की उनकी जनसंख्या के आधार पर एक तिहाई और अधिकतम 50 फीसदी पदों पर आरक्षण, महिलाओं को भी आरक्षण, पंचायत के लिए प्रत्यक्ष चुनाव का प्रावधान किया गया है. आपको बता दें कि नए कानून के तहत ग्राम सभा को प्रधान माना जाएगा. इसके अलावा दूसरे स्तर की पंचायतों में संविधान के भाग-9 की व्यवस्था लागू रहेगी. साथ ही, अनुसूचित क्षेत्रों में तीन स्तर की पंचायतों की व्यवस्था होगी.

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इस तरह रहेगी व्यवस्था

ग्राम पंचायत के तहत प्रत्येक गांव में एक ग्रामसभा होगी. वहीं, मध्यवर्ती पंचायत को लेकर कानून में कुछ भी स्पष्ट नहीं है. ऐसे में उनकी स्थिति सामान्य क्षेत्रों के मध्यवर्ती पंचायतों जैसी होगी. जिला पंचायत को लेकर कानून में तत्काल किसी भी तरह के विशेष अधिकार नहीं देने की बात है. वहीं, पूरे मामले में वरीय अधिवक्ता व संविधान विशेषज्ञ रश्मि कात्यायन का कहना है कि 'पेसा संविधान का हिस्सा है. पेसा 26 दिसंबर 1996 को लागू हुआ था. राज्य में हुए दो बार पंचायत चुनाव के दौरान कोई बाधा नहीं आई थी. उन्होंने बताया कि पेसा नियमावली आदिवासियों की रीति-रिवाजों के आधार पर बनाया गया लेकिन अब तक क्रियान्वित नहीं किया गया. यही वजह है कि इसका विरोध हो रहा है.

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