झारखंड आदिवासियों को भाने लगी गेहूं की रोटियां, धान के साथ शुरू की गेहूं की खेती

Smart News Team, Last updated: Sun, 8th Nov 2020, 12:33 AM IST
  • आदिवासी इन दिनों अपने खानपान में बदलाव कर रहे है. जहां पहले वह धान की खेती ही करते थे. अब वह गेंहू की खेती भी करने लगे है. कृषि विभाग किसानों के लिए 50 प्रतिशत अनुदान पर बीज भी उपलब्ध कराया जा रहा है. 
झांरखड़ आदिवासी ने इन दिनों धान के साथ गेंहू की खेती भी कर रहे है.

बदलाव प्रकृति का नियम माना जाता है. ये बात इस समय झारंखड़ के आदिवासियों पर लागू हो रही है. आदिवासियों के खानपान की आदतें अब शहरों की तरह बदल रही है. सिर्फ चावल खाने वाले ग्रामीण अब रोटियां भी खाने लगे हैं और जिले के खूंटपानी प्रखंड के चीरु, बाइहेतु सहित कई गांवों में गेहूं की खेती भी करने लगे हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में पहले किसान साल भर सिर्फ धान की खेती करते थे. लेकिन अब वह धीरे-धीरे गेहूं की खेती भी करने लगे हैं. इसके साथ हीं अब उनकी खानपान की आदत भी धीरे-धीरे बदलने लगी है.

ग्रामीण अब धान के साथ-साथ गेहूं की खेती भी करने लगें है जिससे इनकी आर्थिक स्थिति भी सुधरने लगी है. इस वर्ष इन इलाकों के 30 से 35 हेक्टेयर भूमि में 20 से 25 किसान गेहूं की खेती में जुट गये हैं. इस कार्य में कृषि विभाग भी किसानों की मदद कर रहा है. किसानों को गेहूं की खेती की तकनीकी जानकारी कृषि विभाग द्वारा दी जा रही है, वहीं कृषि विभाग द्वारा किसानों के लिए 50 प्रतिशत अनुदान पर बीज भी उपलब्ध कराया जा रहा है.

 

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आदिवासी किसानों में पिछले दो वर्षो से गेहूं की खेती ओर रुझान बढ़ा है. खूंटपानी प्रखंड तकनीकी प्रबंधक हरिश्चंद्र कालिंदी ने बताया कि पिछले दो वर्षों से इस क्षेत्र के किसान गेहूं की खेती की ओर आकर्षित हुए हैं. कृषि विभाग किसानों को अनुदान पर गेहूं का बीज उपलब्ध करा रहा है. खीरी के किसान गोसा गोडसोरा ने बताया कि वे लोग कृषि विभाग के सहयोग से और जानकारी पाकर गेहूं की खेती करने में लगे हैं.साथ ही गांव के अन्य किसान भी गेहूं खेती की ओर आकर्षित होने लगे हैं. गांव के आदिवासियों ने बताया कि साल भर के लिए गेंहू रखने के बाद बाकी फसल वे बेच देते हैं, जिससे किसानों का अच्छा फायदा भी हो रहा है.

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