हाल झारखंड काः फरवरी में ही सूख गए 50 फ़ीसदी डोभा, पानी को तरस रही है जनता
- झारखण्ड के 50 फीसदी डोभा फरवरी में सूख जाते हैं. बाकी बचे प्रतिशत के पानी से किसान सिंचाई और मछली पालन का काम करते हैं. वही अप्रैल आते-आते 90 फीसदी डोभा में पानी खत्म हो जाता है. जबकि 5 फीसदी डोभा में सालों भर पानी रहता है.

रांची. झारखण्ड के 50 फीसदी डोभा फरवरी में सूख जाते हैं. बाकी बचे प्रतिशत के पानी से किसान सिंचाई और मछली पालन का काम करते हैं. वही अप्रैल आते-आते 90 फीसदी डोभा में पानी खत्म हो जाता है. जबकि 5 फीसदी डोभा में सालों भर पानी रहता है. गौरतलब है कि पूर्ववर्ती रघुवर दास की सरकार ने 2016-17 में राज्य में 4500 डोभा बनवाए थे.इसे बनाने का उद्देश्य था कि धान की बुवाई के समय यदि मानसून रूठ जाए तो डोभा के पानी से किसान सिंचाई कर सकें. साथ ही इसमें मछली पालन भी कर सकें.
डोभा के पानी भूगर्भीय जलस्तर भी बरकरार रहता है. राज्य के सभी जिलों में डोभा बनाए गए थे. सबसे ज्यादा डोभा रांची के अऩगड़ा और कांके प्रखंड में बने थे. डोभा निर्माण के दौरान ही इसमें डूब कर कुछ बच्चों की मौत होने के कारण लोगों में इसको लेकर नाराजगी देखी गई थी. वही गर्मी के मौसम में अधिकांश डोभा के सूख जाने के कारण से किसानों के लिए फायदा नहीं हुआ हैं
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तत्कालीन भाजपा सरकार के ग्रामीण विकास मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा ने के अनुसार जब कभी ऐसा हो कि धान के बिचड़े तैयार हो चुके हो और बारिश न हो तब डोभा की मदद से किसान 50 डिसमिल से एक एकड़ तक फसल की रोपनी कर सकते हैं. इसके अलावा जब धान के बलियां आ गई और पानी न मिले तो उसमें पिल्लई बीमारी हो जाती है. किसानों को ऐसी स्थिति से बचाने के लिए डोभा निर्माण की योजना लाई गई थी. डोभा निर्माण एक और उद्देश जल संरक्षण और पानी का जलस्तर बरकरार रखना भी था.
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