पद्मश्री प्रोफेसर दिगंबर हांसदा का बीमारी से निधन
- झारखंड के प्रसिद्ध संथाली भाषा के ज्ञाता दिगंबर हांसदा का गुरूवार को लंबी बीमारी के चलते निधन हो गया है. उन्होंने अपने पूरे जीवन में संथाली भाषा को आगे ले जाने और आदिवासियों की शिक्षा-दीक्षा पर बहुत काम किया है.

रांची. पिछले काफी समय से बीमार चल रहे प्रोफेसर और पद्मश्री से सम्मानित दिगंबर हांसदा का गुरूवार को निधन हो गया है. उनका जन्म सिंहभूम जिले के दोवापानी गांव में 16 अक्टूबर, 1940 को हुआ था. प्रोफेसर ने आदिवासी लोगों के उत्थान और उनकी भाषा को शिखर तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. इतना ही नहीं आज़ादी के बाद लिखे गए संविधान को उन्होंने संथाली भाषा की ओवचिकी लिपि में भी अनुवाद किया है.
साथ ही स्कूल-कॉलेज की पुस्तकों में संथाली भाषा को शामिल कराने का श्रेय भी दिगंबर को जाता है. वहीं, प्रोफेसर रांची के करनडीह क्षेत्र में स्थित लाल बहादुर शास्त्री मेमोरियल कॉलेज के प्राचार्य भी रह चुके हैं. इसके साथ ही वो कोल्हान विश्वविद्यालय के सिंडिकेट सदस्य भी थे. प्रोफेसर की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा राजदोहा मिडिल स्कूल और मानपुर हाईस्कूल से पूरी हुई है. दिगंबर केंद्र सरकार के ट्राइबल अनुसंधान संस्थान और साहित्य अकादमी के भी सदस्य रहे हैं.
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इसी आधार पर प्रोफेसर को वर्ष 2018 में साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में अमूल्य और उत्कृष्ट योगदान के लिए पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया था. पद्मश्री प्रो. दिगंबर हांसदा का मानना था कि सभी को अच्छी किताबें लिखना चाहिए जिससे समाज को लाभ हो और अच्छा संदेश मिले. इसके अतिरिक्त फालतू किताबें से समाज में गलत संदेश जाता है जो सामाजिक विकास में बाधक बनता है. उन्होंने कहा कि हमें समाज और शिक्षा के विकास में सार्थक योगदान देना चाहिए.
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