पारंपरिक मुर्गा लड़ाई का खेल हाई प्रोफाइल जुए में तब्दील

Smart News Team, Last updated: Fri, 29th Jan 2021, 4:54 PM IST
  • समय के साथ-साथ पारंपरिक मुर्गा लड़ाई के इस खेल में फिर पैसों की बोली भी लगाये जाने लगी और अब तो यह हाई प्रोफाइल जुए में तब्दील होता जा रहा है. मौजूदा समय में अपराधी खुलेआम शहर व आसपास बड़े पैमाने पर यह जुआ खिलवा रहे हैं. इस खेल में एक बार में भारी संख्‍या में लोग इक्‍ठा होते हैं और दांव लगाते हैं.
मुर्गा लड़ाई का खेल (प्रतीकात्मक तस्वीर)

रांची : पारंपरिक मुर्गा लड़ाई का खेल सदियों से चला आ रहा है. गांव-कस्बों में खासकर जब साप्‍ताहिक या मासिक बाजार लगता है या जब कभी किसी मेला का आयोजन होता है तब मुर्गे की लड़ाई होना तय है. इसी देखने दूर दूर से लोग आते हैं. समय के साथ-साथ इस खेल में फिर पैसों की बोली भी लगाये जाने लगी और अब तो यह हाई प्रोफाइल जुए में तब्दील होता जा रहा है. मौजूदा समय में अपराधी खुलेआम शहर व आसपास बड़े पैमाने पर यह जुआ खेल रहे हैं. इस खेल में एक बार में भारी संख्‍या में लोग इक्‍ठा होते हैं और दांव लगाते हैं. इस खेल का आयोजन बड़े मैदान में करवाया जाता है. पुलिस प्रशासन का भी इस ओर कुछ खास ध्‍यान नहीं है. 

विधानसभा से कुछ ही दूरी पर यह देखी जा सकती है. इसके अलावा शहर के आसपास करीब एक दर्जन स्थान पर ऐसा हो रहा है. इस अवैध खेल में दो हजार रुपए का 3-4 किलो का मुर्गा 20 हजार रुपए तक का बिकता है. प्रशिक्षण के बाद इन लड़ाकू मुर्गों पर एक बार में 10 लाख रुपए तक का दांव लगाया जाता है. कई जगह तो बोली 500 रुपए से शुरू होती है. एक दांव में 50 हजार और एक लाख रुपए लगाने वाले लोग मौजूद रहते हैं. खुलेआम होने के बावजूद कोई इसकी फोटो और रिकॉर्डिंग नहीं कर सकता. दुस्साहस करने पर जान जाने का खतरा रहता है.

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इस खेल में मुर्गों के पैरों पर चाकू बंधा होता है. 30 सेकंड के अंदर ही एक की मौत हो जाती है और सामने वाले की जीत होती है. मुर्गा लड़ाई में सट्टेबाजी भी होती है. ऐसे जगहों पर हब्बा-डब्बा, लूडो, ताश पर जुआ, अवैध शराब की बिक्री होती है. एक दिन में 10-15 मुर्गे लड़ाए जाते हैं. 50-100 रुपए से बोली लगती है, जो लाखों तक पहुंच जाती है.

 

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