वाराणसी : साहित्य में स्नेह प्रेम के पर्याय थे सुदामा पांडे धूमिल

Smart News Team, Last updated: Wed, 10th Feb 2021, 9:39 PM IST
  • क्रांतिकारी कवि की छवि के रूप में प्रख्यात सुदामा पांडे धूमिल साहित्य में स्नेह और प्रेम के पर्याय के रूप में जाने जाते थे. मंगलवार को पुण्यतिथि पर सुदामा पांडे धूमिल को याद किया गया. उनकी पत्नी मूरत देवी अपने पति के प्रसंग आज भी उत्साह पूर्वक सुनाती है.
सुदामा पांडे धूमिल को याद किया

वाराणसी. क्रांति दर्शी कवि के रूप में विख्यात सुदामा पांडे धूमिल का जन्म 9 नवंबर 1936 को काशी में हुआ था. उनकी पहली कृति संसद से सड़क तक हैजो आज भी हिंदी साहित्य की अनमोल धरोहर मानी जाती है. जीवन सुदामा पांडे के जीवन के अनछुए पहलू के बारे में उनकी पत्नी मूरत देवी जो कि अब 80 साल की है बताती है कि जब पहली बार उनकी किताब छप कराई तो वे इसे लेकर सर्वप्रथम हमारे पास आए. उन्होंने हमें पहली प्रति सौंपते हुए कहा था कि हमारी किताब छप गई है, सबसे पहले तुम ही इसे देखो.

मूरत देवी बताती हैं कि धूमिल का अपनी माताजी से बड़ा लगाव था. उनके चाचा कन्हैया पांडे वाह लोकनाथ पांडे उनसे बहुत स्नेह करते थे. बताती है कि उनको अपने बच्चों रत्न शंकर और आनंद शंकर से बहुत प्यार था. आजादी की लड़ाई में अपनी कविताओं से वह क्रांतिकारियों में जोश भर देते थे. उनकी कविताएं आजादी के बाद इतने गहरे अर्थों की ऐसी राजनीतिक रचनाएं लिखकर धूम मचा देते थे. मूरत देवी बताती हैं कि उन्होंने अपना सारा जीवन बनारस की सड़कों को साइकिल से नापते हुए गुजार दिया. बताती है कि बीएचयू के पास करौंदी में उनका आईटीआई कार्यालय था जहां पहले वे अनुदेशक थे बाद में सुपरवाइजर बने थे. सुदामा पांडे धूमिल का निधन लखनऊ के अस्पताल में इलाज के दौरान 10 फरवरी 1975 को हुआ था. उनकी मृत्यु के चार दशक बाद हाल ही के दिनों में हिंदी पाठकों के समक्ष धूमिल समग्र प्रकाशित हुआ है.

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इसका संपादन उनके पुत्र डॉ शंकर पांडे ने किया. पांडे बताते हैं कि धूमल करौंदी से अपने गांव खेवली के बीच साइकिल से आना जाना किया करते थे. बाद में उन्होंने शहर में नवाबगंज में किराए का मकान ले लिया. यह किराए का मकान उनको सहपाठी नागानंद ने दिलाया था जो पान की दुकान चलाते थे. उनके मित्र मंडली में वाचस्पति उपाध्याय, बीएचयू के तत्कालीन प्राध्यापक शिव करण सिंह विद्यापीठ के प्रोफेसर श्याम जी तिवारी बांग्ला वा हिंदी के रचनाकार कंचन कुमार आदि लोग शामिल हुआ करते थे जो कभी अस्सी घाट पर तो कभी दशाश्वमेध घाट पर जमघट लगाया करते थे.

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