राँची:क्रिसमस में चरनी का महत्व, पहले नेकियों से चरनी का रहता था गहरा संबंध

Smart News Team, Last updated: Mon, 21st Dec 2020, 10:42 PM IST
  • क्रिसमस के आगमनकाल से पहले एक नेकी करने पर एक पुआल का तिनका लोग सहेज कर रख लेते और फिर जब नेकी के पुआल का ढेर इकट्ठा हो जाता तब जाकर इस पवित्र कार्य के लिए चरनी बनाई जाती.
क्रिसमस बिना चरनी के सम्पूर्ण नहीं

राँची:पचास के दशक में क्रिसमस के आगमन काल की तैयारी बहुत आध्यात्मिक व विचित्र भरी थी.क्रिसमस के बारे में कहना है कि क्रिसमस बिना चरनी के सम्पूर्ण ही नहीं होता.चरनी प्रभु यीशु मसीह की याद का अनुपम और आध्यात्मिक प्रतीक है.चरनी अब तो बाजार में भी मिलती है, जिसे लोग खरीदकर अपने घर ले जाते हैं.चरनी के पहले की कहानी बड़ी दिलचस्प है.क्रिसमस के आगमनकाल से पहले एक नेकी करने पर एक पुआल का तिनका लोग सहेज कर रख लेते और फिर जब नेकी के पुआल का ढेर इकट्ठा हो जाता तब जाकर इस पवित्र कार्य के लिए चरनी बनाई जाती.

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इस बारे में पहले के कई आगमन काल देख चुकीं 79 वर्षीय सिस्टर कोरोना बताती हैं कि अब भी चरनी का क्रिसमस में सबसे अधिक महत्व है , क्योंकि प्रभु यीशु गोशाले में जन्मे थे.इसको डिपिक्ट करने के लिए चरनी काे बनाया जाता है.इसमें बालक यीशु के जन्म को जीवंत किया जाता है, इसलिए चरनी को मात्र चरनी समझना सही नहीं. इसका निर्माण बिना किसी के अर्थ करना व्यर्थ है.आज भी चरनी पुआल की बनाई जाती है जो कि बाजार में भी मिल जाती है.पहले का दस्तूर अलग था जो कोई एक नेकी करता तो एक पुआल चरनी के लिए रख लेता.इस प्रकार एक-एक पुआल यानी एक-एक नेकी का जब खजाना हो जाता है, तो पवित्र चरनी बनाई जाती थी.यह प्रेरणा माता बेर्नादेत्त से मिलती थी.सिस्टर कोरोना ने संत माता बेर्नादेत्त के साथ क्रिसमस और आगमन का समय बिताया है।उन्होंने कहा कि लेकिन इस समय ऐसा नहीं रहा जैसे पचास की दशक के आसपास नेकी की परंपरा रहती थी.

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