मां अन्नपूर्णा की मूर्ति बनारस आएगी, 1913 में चोरी छिपे पहुंची थी कनाडा

Smart News Team, Last updated: Sun, 22nd Nov 2020, 1:35 PM IST
  • 1913 में चोरी छिपे कनाडा ले जाई गई माता अन्नपूर्णा की मूर्ति वापस भारत आयेगी,करीब एक फुट ऊंची पत्थर की मूर्ती को काशी विश्वनाथ धाम में प्रस्तावित म्यूजियम में रखने का सुझाव भी दिया गया है.
मां अन्नपूर्णा की मूर्ती 113 साल बाद बनारस वापस आएगी. मूर्ती को काशी विश्वनाथ धाम में प्रस्तावित म्यूजियम में रखने का सुझाव भी दिया गया है.

वाराणसी. कनाडा की यूनिवर्सिटी ऑफ रेजिना की मैकेंजी आर्ट गैलरी में प्रदर्शित इस मूर्ति पर भरतीय शिप्ली दिव्या मेहरा की नजर पड़ी. उन्हें मूर्ति से जुड़े दस्तावेजों के पड़ताल में पता चला कि वर्ष 1936 में इस मूर्ति की वसीयत मैकेंजी ने करवाई थी. वर्ष 1913 में बनारस से चोरी छिपे कनाडा ले जाई गई माता अन्नपूर्णा की पत्थर की मूर्ति भारत वापस लाई जाएगी. एक बीते 19 नवंबर को कनाडा सरकार ने मूर्ती को भारत की विरासत मानते हुए, भारतीय उच्चायोग को सौंप दी है.

भारत आने के बाद से सबसे पहले मूर्ति को नेशनल म्यूजियम ले जाया जाएगा. इसकी जानकारी के बाद क्षेत्रीय पुरातत्व विभाग सक्रिय हो गया है. विभाग ने नेशनल म्यूजियम को लिखे पत्र में अनुरोध किया है,की चुकी ये मूर्ती बनारस के किसी घाट या मंदिर से कनाडा ले जाई गई थी, इसलिए इसे पुनः बनारस में ही रखा जाए. करीब एक फुट ऊंची पत्थर की मूर्ती को काशी विश्वनाथ धाम में प्रस्तावित म्यूजियम में रखने का सुझाव भी दिया गया है.

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मूर्ती कैसे पहुंची कनाडा!

चुकी इस मूर्ती की वसीयत मैकेंजी ने 1936 में कराई थी, लेकिन मैकेंजी को यह मूर्ती कहां से मिली, किसने दी, इसका कोई ब्योरा रिकॉर्ड में दर्ज़ नहीं है. इस आधार पर भारतीय शिल्पी दिव्या मेहरा ने मामला कनाडा सरकार के समक्ष उठाया. पड़ताल में सामने आया कि मैकेंजी ने 1913 में भारत की यात्रा को थी, यह मूर्ती इसी के बाद कनाडा पहुंची. 

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इस मूर्ती में देवी अन्नपूर्णा के एक हाथ में खीर को बर्तन और दूसरे मे कलछुल (कर्छी) लिए हुए दिखाया गया है. जब यह साबित हुआ कि यह मूर्ती अवैध रूप से कनाडा लाई गई है.तो वहा की सरकार उसे लौटने को तैयार हो गई . गत 19 नवंबर को कनाडा के अंतरिम राष्ट्रपति थॉमस चेस ने कनाडा में भारत के उच्चआयुक्त अजय बिसारिया को एक समारोह में यह सौंप दी थी.

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