बीएचयू के हाइड्रोजन ऊर्जा विशेषज्ञ प्रो. ओ एन श्रीवास्तव का कोरोना से निधन

Smart News Team, Last updated: Sat, 24th Apr 2021, 3:10 PM IST
  • देश के सबसे बड़े हाइड्रोजन ऊर्जा विशेषज्ञ पदमश्री ओ एन श्रीवास्तव का बीएचयू में कोरोना वायरस से संक्रमित होने के कारण निधन हो गया. प्रो. श्रीवास्तव एक हाइड्रोजन स्टोरेज मिशन पर काम कर रहे थे.
बीएचयू के हाइड्रोजन ऊर्जा विशेषज्ञ प्रो. ओ एन श्रीवास्तव का कोरोना से निधन

वाराणसी। भारत में पहले हाइड्रोजन सेंटर की स्थापना करने वाले देश के सबसे बड़े हाइड्रोजन ऊर्जा विशेषज्ञ पदमश्री ओ एन श्रीवास्तव का बीएचयू में कोरोना वायरस से संक्रमित होने के कारण निधन हो गया. प्रो. श्रीवास्तव एक हाइड्रोजन स्टोरेज मिशन पर काम कर रहे थे. उनका यह मिशन लगभग पूरा भी हो चुका था. इस मिशन में हाइड्रोजन ऊर्जा स्टोरेज के लिए तैयार किए गए मॉडल को वह इसरो को भेजने वाले थे लेकिन उससे पहले ही वह कोरोन संक्रमण का शिकार हो गए.

शनिवार को तकरीबन 10:15 बजे बीएचयू में ही उन्होंने आखिरी सांस ली. उनके निधन के बाद से देश में हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन को बहुत बड़ा झटका लगा है. उन्होंने हाइड्रोजन स्टोरेज मिशन के तहत जो मॉडल तैयार किया था, इसी मॉडल के सहारे पर बड़े से बड़े स्पेस मिशन को अंजाम देने की उम्मीद थी. उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम जब बनारस दौरे पर आए थे तब उन्होंने प्रो श्रीवास्तव की लैब का गुप्त दौरा भी किया था.

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पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा अचानक बिना प्रोटोकॉल के बीएचयू के प्रो. ओ एन श्रीवास्तव के हाइड्रोजन एनर्जी सेंटर का दौरा किए जाने पर प्रो. श्रीवास्तव के लिए लोगों के दिलो-दिमाग में एक अलग छवि बन गई थी. उनका शुमार दुनिया के दो फीसद शीर्ष वैज्ञानिकों में होता था. बताते चलें कि अब तक उनके कुल 900 शोध पत्र प्रकाशित हो चुके थे.

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अपनी आखिरी सांस तक प्रो. श्रीवास्तव अनुसंधान और विज्ञान के लिए समर्पित रहे थे. प्रो. ओ. एन. श्रीवास्तव अपने बनाये हुए दुनिया के सबसे उन्नत फ्यूल टैंक को इसरो को भेजने वाले थे जिसको पूरी तरह से बीएचयू के भौतिक विज्ञान विभाग में विकसित कर लिया गया था. यह स्टोरेज टैंक की शक्ल में नहीं, बल्कि कार्बन एरोजेल के रूप में था, जो रॉकेट में इस्तेमाल होने वाले ईंधन (तरल हाइड्रोजन) को सोख कर स्टोर करता है. इस तकनीक को मदद से अंतरिक्ष मिशन में लंबी दूरी के रॉकेट की गति और शक्ति में कई गुना वृद्धि होने का दावा किया गया था और इसरो के मंगल और मानव मिशन में यह तकनीक अहम भूमिका भी निभाती.

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