आयुर्वेद पर लगातार बढ़ता जा रहा है चीन का कब्जा, BHU के वैज्ञानिक चिंतित

Smart News Team, Last updated: Fri, 15th Jan 2021, 6:14 PM IST
  • पांच औषधीय पौधों में रोडेला रोजिया वैज्ञानिक नाम वाली बूटी के इस्तेमाल से चीन एक के बाद एक दवाएं तैयार कर पेटेंट कराता जा रहा है. बीएचयू के वैज्ञानिकों को इस बात की चिंता सता रही है कि आने वाले दिनों में चीन इस पौधे को अपनी संपत्ति ही न बना ले.
चीन का कब्जा आयुर्वेद पर लगातार बढ़ता जा रहा है.

वाराणसी- हिन्दुस्तान को प्राचीन समय से ही आयुर्वेद का जनक माना जाता रहा है. लेकिन बीते सालों से इस पर चीन का कब्जा बढ़ रहा है. पांच हिमालयन प्लांट पर चीन धीरे-धीरे कब्जा जमाता जा रहा है. इन पांच औषधीय पौधों में रोडेला रोजिया वैज्ञानिक नाम वाली बूटी के इस्तेमाल से चीन एक के बाद एक दवाएं तैयार कर पेटेंट कराता जा रहा है. बीएचयू के वैज्ञानिकों को इस बात की चिंता सता रही है कि आने वाले दिनों में चीन इस पौधे को अपनी संपत्ति ही न बना ले. दरअसल, यह बूटी शरीर में ऑक्सीजन संयोजन के साथ ही डिप्रेशन कम करने में भी सहायक है.

जिन अन्य चार औषधियों पर चीन कब्जा जमाता जा रहा है, उनमें साइलेसिया ओबलॉंगा (भारतीय नाम सप्तरंगी या सप्तचक्र), बर्बेरिश अरिस्टाटा (भारतीय नाम दारुहरिद्रा), रेनवाडिका इंडिका (भारतीय नाम बसंती) और हिपोफी (भारतीय नाम अम्लवेतस) है. संजीवनी बूटी कहे जाने वाले रोडेला रोजिया का उल्लेख आयुर्वेद में सबसे शक्तिशाली इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में किया गया है. यही नहीं इस पौधे से तैयार औषधियां कई बीमारियों में कारकर हैं. बीएचयू के आयुर्वेद विभाग के डिस्टिंग्विस्टड प्रो. जीपी दुबे के अनुसार रोडेला रोजिया का उपयोग शरीर में तापमान अनुकूलक, ऑक्सीजन संयोजक, एंटी रेडियेशन, एंटी डिप्रेशन के रूप में किया जाता है. संजीवनी, दारुहरिद्रा, बसंती, सप्तरंगी और अम्लवेतस की सर्वाधिक उपज चीन के कब्जे वाले भारत की 153 हेक्टेयर भूमि पर होती है.

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बताते चलें कि बीएचयू के आयुर्वेद संकाय में इन पौधों पर वर्ष 1991 से अध्ययन किया जा रहा है. इसकी शुरुआत साइलेसिया ओबलॉंगा से हुई थी. डॉ. केएन उडुप्पा ने सबसे पहले इसे चिह्नित किया था. बीएचयू ने इसके उपयोग से टाइप-टू डायबिटीज के उपचार की औषधि तैयार की. पहले उसका प्रकाशन फार्मेकोलॉजिकल जर्नल में हुआ. फिर बीएचयू ने उसका पेटेंट भी हासिल किया. इसके अलावा कालांतर में अन्य रोगों के उपचार में इसपर शोध चलता रहा, लेकिन कोई दूसरा पेटेंट हासिल नहीं किया जा सका. जबकि चीन ने इसी के इस्तेमाल से तैयार कुछ दवाओं के पेटेंट करा लिये हैं.

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