वाराणसी में गंगा के पानी का रंग बदलने की पता चली वजह, शासन को भेजी जाएगी रिपोर्ट

Smart News Team, Last updated: Fri, 11th Jun 2021, 4:45 PM IST
  • गंगा नदी में हरे शैवाल की मात्रा काफी बढ़ गई थी, जिसके बाद शहर के निवासियों समेत वैज्ञानिकों को भी इसकी बहुत चिंता होने लगी. इससे पहले लोहिया नदी से ये शैवाल बहकर गंगा में आ गए थे. शैवालों की वजह से गंगा का इकोसिस्टम खतरे में आ गया है.
 गंगा के पानी का रंग बदलने की पता चली वजह (प्रतीकात्मक फोटो)

वाराणसी। वाराणसी में कई दिनों से गंगा नदी के पानी का रंग हरा नजर आ रहा है. इस हरे पानी के राज का खुलासा किया जा चुका है. पहले यह बताया जा रहा था कि नदी में मौजूद शैवाल की वजह से ही गंगा नदी का पानी हरा हो गया है लेकिन यह शैवाल अचानक नदी में कहां से आ गया है, इस पर चर्चा की जा रही है. डीएम द्वारा बनाई गई टीम ने जांच की तो सामने आया कि विंध्याचल के एसटीपी से शैवाल बहकर नदी के घाटों पर जमा हो रहे हैं. इस बात का खुलासा एक पांच सदस्यों की जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में किया है. टीम द्वारा रिपोर्ट तैयार कर ली गई है, जिसे शुक्रवार को जिलाधिकारी को दिया जा सकता है.

हाल में हुई जांच में सामने आया है कि विंध्याचल में पुरानी तकनीक से बनाए गए एसटीपी से ही यह शैवाल बहकर वाराणसी में आकर नदी में जमा हो रहे हैं. कुछ दिनों पहले हुई बारिश में इन शैवालों की संख्या काफी ज्यादा थी. इस जांच रिपोर्ट को शासन को भेजा जाएगा और पानी को प्रदूषित करने वाले जिम्मेदारों पर कार्रवाई करने के लिए भी कहा जाएगा. गंगा नदी का जलस्तर कम और प्रवाह थमने के कारण शैवाल जमा होने की समस्या गंभीर होती जा रही है. नदी का जलस्तर बढ़ने पर यह समस्या दूर हो सकती है.

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बताते चलें कि वाराणसी में गंगा नदी में हरे शैवाल की मात्रा काफी बढ़ गई थी, जिसके बाद शहर के निवासियों समेत वैज्ञानिकों को भी इसकी बहुत चिंता होने लगी. इससे पहले लोहिया नदी से ये शैवाल बहकर गंगा में आ गए थे. शैवालों की वजह से गंगा का इकोसिस्टम खतरे में आ गया है. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा की गई प्राथमिक जांच में भी यह बात सामने आई थी कि गंगाजल में नाइट्रोजन और फास्फोरस की मात्रा निर्धारित मानकों से काफी ज्यादा हो गई है.

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इसके बारे में बीएचयू में इंस्टीट्यूट ऑफ एनवायरमेंट एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट के वैज्ञानिक डॉ कृपाराम ने कहा था कि जल में युट्रोफिकेशन प्रक्रिया होने से एल्गी ब्लूम यानी हरे शैवाल बनते हैं. ऐसा तब होता है जब जल में न्यूट्रिएंट काफी बढ़ जाते हैं. इस कारण गैर जरूरी स्वस्थ जीवों की संख्या में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि होती है. ऐसे में शैवालों को प्रकाश संश्लेषण करने का सबसे उपयुक्त वातावरण मिलता है. तब पानी में ऑक्सीजन कम होने लगता है, जिससे बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) सबसे पहले प्रभावित होती है.

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