11 जुलाई 1995 को काशी विद्यापीठ के आगे महात्मा गांधी का नाम जोड़ा गया, जानें

Smart News Team, Last updated: Thu, 28th Jan 2021, 7:35 PM IST
  • राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी ने सरकारी अनुदान से संचालित शिक्षण संस्था में राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण नहीं हो सकता, अपने इस कथन के बाद शिक्षण संस्थाओं की हालत सुधारने के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध असहयोग आंदोलन का बिगुल फूंक दिया था. 
फाइल फोटो

वाराणसी. शिक्षण संस्थाओं में देश के भविष्य कहे जाने वाले छात्र-छात्राओं के राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण किया जाता है. सरकारी अनुदान से संचालित होने वाली शिक्षण संस्थाओं में राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण नहीं हो सकता. इसके लिए हमें स्वयं प्रयास करना होगा. यह बात हमारे देश के राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी ने स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के दौरान सरकारी अनुदान प्राप्त शिक्षण संस्थाओं की दयनीय हालत को देखते हुए कही थी. अपने इस कथन के बाद ही गांधीजी ने शिक्षण संस्थाओं की हालत सुधारने के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध असहयोग आंदोलन का बिगुल फूंक दिया था. और स्वयं के प्रयास से साल 1920 के प्रारंभ में आजादी के पुरोधा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने सरकारी स्कूलों और विश्वविद्यालयों का बहिष्कार किया. 

महात्मा गांधी का मानना था कि सरकारी अनुदान से चलने वाली शिक्षण संस्थाओं में राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण नहीं हो सकता है. इसी सोच के साथ सरकारी विश्वविद्यालयों के समकक्ष सर्वप्रथम गुजरात विद्यापीठ की स्थापना की गई. बाद इसके 10 फरवरी 1921 को बसंत पंचमी के दिन काशी के भदेनी स्थित किराए के भवन में काशी विद्यापीठ की स्थापना की गई. इस काशी विद्यापीठ की स्वयं महात्मा गांधी ने वैदिक मंत्रों व कुरान की आयतों के बीच इसकी आधारशिला रखी. स्थापना मौके पर महात्मा गांधी के साथ पंडित मोतीलाल नेहरू मौलाना मोहम्मद अली सेठ जमुनालाल बजाज मौलाना अब्दुल कलाम आजाद पंडित जवाहरलाल नेहरू आदि आजादी के वीर योद्धा भी गवाह के रूप में मौजूद रहे. काशी विद्यापीठ को संचालित करने के लिए बाबू शिवप्रसाद गुप्त ने 10 लाख रुपए से शिक्षा निधि के नाम से एक ट्रस्ट बनाया.उसके ब्याज के अलावा 40000 रुपए प्रति वर्ष देने का आश्वासन भी दिया. शुरू में कुछ आर्थिक कठिनाई आई तो उन्होंने चौक कटरा से होने वाली आय को भी दान दे दिया. कार्यक्षेत्र बढ़ा दो काशी विद्यापीठ को कर्णघंटा स्थित एक धर्मशाला में स्थानांतरित किया गया. बाद में बाबू शिवप्रसाद गुप्त ने चकला बाग की जमीन खरीदी और ट्रस्ट को दान में दे दिया. 

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असहयोग आंदोलन के दौरान काशी हिंदू विश्वविद्यालय को छोड़कर अनेक छात्र और टीचर काशी विद्यापीठ से जुड़ गए. इसी दौरान डिप्टी कलेक्टर भगवान दास ने भी अपने पद को छोड़कर काशी विद्यापीठ से अपना रिश्ता जोड़ लिया. आगे चलकर वह इस विद्यापीठ के पहले कुलाधिपति नियुक्त किए गए. काशीविद्यापीठ को असहयोग आंदोलन की मुख्य वैचारिक संस्था माना जाए तो कोई गलत ना होगा. साल 1963 में विश्वविद्यालय का दर्जा मिलने के बाद में इसका नाम काशी विद्यापीठ हुआ. बाद में महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर 11 जुलाई 1995 को काशी विद्यापीठ के आगे महात्मा गांधी का नाम जोड़ दिया गया. तब से लेकर आज तक काशी विद्यापीठ को महात्मा गांधी विद्यापीठ के नाम से जाना जाता है.

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