अब गंगा को प्लास्टिक कचरे से मुक्त करेगी जर्मन तकनीक
- वाराणसी नगर निगम ने अब गंगा को प्लास्टिक कचरे से मुक्त करने के लिए जर्मन तकनीक का उपयोग करने का निर्णय लिया है. पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू किए जा रहे इस प्रयोग को फिलहाल काशी के 3 घाटों के गंगा के पानी को प्लास्टिक मुक्त करने पर कार्य किया जाएगा.

वाराणसी. शहरी विकास विभाग उत्तर प्रदेश की ओर से शुरू किए जा रहे इस पायलट प्रोजेक्ट में जर्मन की बबल बैरियर तकनीक का प्रयोग किया जाएगा. प्रारंभिक तौर पर काशी के तीन गंगा घाटों पर यह पायलट प्रोजेक्ट प्रयोग में लाया जाएगा. इसके तहत नाली के अंदर जगह-जगह उपकरण लगाए जाएंगे और बैरियर के जरिए इन प्लास्टिक के कचरे को गंगा नदी में मिलने से रोका जाएगा. गंगा नदी को प्लास्टिक के कचरे के बोझ से मुक्त करने के लिए वाराणसी नगर निगम ने इस तकनीक का इस्तेमाल करने का निर्णय लिया है. बता दें कि मौजूदा समय में गंगा में प्रतिदिन दो करोड़ 90 लाख लीटर प्रदूषण कचरा गिर रहा है. इनमें गंगा घाटों पर स्नान, कपड़े धोने, सार्वजनिक शौच के अलावा सैकड़ों टेनरीज रसायन संयंत्र कपड़ा मिलो डिस्टलरी बूचड़खाना और अस्पतालों का अपशिष्ट गंगा नदी में प्रदूषण के स्तर को बढ़ा रहा है. विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश की 12% बीमारियों की वजह प्रदूषित गंगा जल है.
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार गंगा के जल में आर्सेनिक फ्लोराइड एवं क्रोमियम जैसे जहरीले तत्व बड़ी संख्या में मिलते जा रही हैं जिसके कारण गंगा नदी के पानी में ऑक्सीजन की मात्रा कम होती जा रही है. वैज्ञानिक भी मानते हैं कि गंगाजल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक स्वजनों को समाप्त कर देते हैं किंतु प्रदूषण के चलते इन लाभदायक विषयों की संख्या में भी काफी कमी आई है.
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पर्यावरण विशेषज्ञ भी मानते हैं कि जब तक गंदे नाले का पानी औद्योगिक अपशिष्ट प्लास्टिक कचरा सीवेज घरेलू कूड़ा करकट गंगा के जल में मिलता रहेगा तब तक गंगा का पानी साफ रहना मुश्किल है. इन्हीं सब आशंकाओं को देखते हुए अब नगर निगम ने गंगा के पानी को प्लास्टिक कचरे से मुक्त करने के लिए जर्मनी की बबल बेरियर तकनीक इस्तेमाल करने का निर्णय लिया है. नगर निगम प्रशासन की मानें तो यदि जर्मन की बबल बैरियर तकनीक सफल होती है तो इस पायलट प्रोजेक्ट को गंगा नदी के सभी घाटों पर लागू किया जाएगा.
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