मुकदर, गदा, नाल,सांडी तोड़,बगल डूब,तंगी वाह जांघिया दांव में निपुण थे विवेकानंद

Smart News Team, Last updated: Wed, 7th Jul 2021, 12:18 AM IST
  • धर्म और सामाजिक सुधार के पुरोधा स्वामी विवेकानंद अखाड़े में भी बड़े-बड़े पहलवानों को पटखनी देने का माद्दा रखते थे. काशी में प्रवास के दौरान हुए तुलसी घाट पर पहलवानों के साथ दांवपेच किया करते थे. अपने युवा काल में स्वामी विवेकानंद पहलवानी में पूर्ण रूप से कुशल थे और ज्यादातर मुकाबला जीतते थे.
साधु संतों की तपोस्थली कहे जाने वाली काशी से स्वामी विवेकानंद का दिल्ली लगाव था

वाराणसी . धर्म संस्कृति लोक कला हस्तकला के साथ ही काशी का नाम पहलवानी के क्षेत्र में भी अव्वल था. स्वामी विवेकानंद का अध्यात्म की नगरी काशी से जुड़ाव अविस्मरणीय है. समाज सुधारकों की सूची में शुमार एवं भौतिकवाद को त्याग कर संत की उपाधि प्राप्त करने वाले स्वामी विवेकानंद पहलवानी के क्षेत्र में भी अब्बल थे. जब भी वह वाराणसी भ्रमण पर आया करते थे. तो गंगा के तुलसी घाट पर वह पहलवानी के दाव पेच आजमाया करते थे. पहलवानों के मुकदर, गदा, नाल, सांडी तोड़, बगल डूब, तंगी वाह जांघिया दांव लगाकर स्वामी विवेकानंद बड़े से बड़े पहलवान को पटखनी दे दिया करते थे.

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के सामाजिक विज्ञान संकाय में हुए शोध के बाद निकल कर आई रिपोर्ट में विवेकानंद जब भी बनारस आते थे तब तुलसी घाट के अखाड़े पर दमखम दिखाया करते थे. सामाजिक विज्ञान संकाय की ओर से स्वामी विवेकानंद पर की गई रिसर्च को काशी जर्नल आफ सोशल साइंस में प्रकाशित किया गया है.

स्वामी विवेकानंद के काशी के जुड़ाव की बहुत सारी बातें दर्शाई गई है. 20 से अधिक शोधार्थियों और प्रोफेसरों की टीम द्वारा तैयार की गई यह शोध रिपोर्ट बताती है कि तुलसी घाट के ब्राह्मणों और विद्वानों से विवेकानंद ने भेंट की थी.साला 1888 से 18 से 90 के बीच तुलसी घाट पर स्थित एक अखाड़े पर स्वामी विवेकानंद 3 दिन तक रुके थे. इस बीच उन्होंने काशी के पहलवानों से पहलवानी के कई दांवपेच भी सीखे थे.

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