वाराणसी : बचपन में पढ़ाई से कोसों दूर थे विश्व शिक्षक कृष्णमूर्ति
- यह काशी की आबो हवा और माटी का ही प्रभाव था कि स्कूली शिक्षा से कोसों दूर भागने वाले जे कृष्णमूर्ति को उनके आध्यात्मिक ज्ञान और दर्शन के कारण विश्व शिक्षक की उपाधि प्राप्त हुई. उनके द्वारा राजघाट पर स्थापित वसंता कॉलेज आज भी कृष्णमूर्ति की याद दिलाता है.
वाराणसी : काशी के वसंता कॉलेज की हिंदी विभाग की अध्यक्ष डॉ शशिकला त्रिपाठी बताती हैं कि जे कृष्णमूर्ति आंध्र प्रदेश में जन्मे थे. स्कूली शिक्षा में उनका शुरू से ही मन ना लगा. परिवार के दबाव के बावजूद बचपन में पढ़ाई से कोसों दूर भागने वाले कृष्णमूर्ति स्कूल में अनुत्तीर्ण भी हुए. इसी बीच एनी बेसेंट की नजर उन पर पड़ी. पहली ही नजर में कृष्णमूर्ति ने उनका मन मोह लिया. एनी बेसेंट ने कृष्णमूर्ति को उसी समय सार्वजनिक घोषणा कर दत्तक पुत्र बना लिया और आंध्र प्रदेश से बनारस लेकर आई.
यह काशी की आबो हवा और माटी का ही प्रभाव था कि पढ़ाई से दूर भागने वाले कृष्णमूर्ति का झुकाव आध्यात्मिक ज्ञान की तरफ हो गया. फिर क्या था कृष्णमूर्ति आध्यात्मिक ज्ञान रूपी गंगा में डुबकी लगाने लगे और उनका दर्शन निखरने लगा. अध्यात्म और दर्शन के प्रति बढ़ती ख्याति को देखते हुए एनी बेसेंट की सामाजिक संस्था थियोसॉफिकल सोसायटी ने कृष्णमूर्ति को विश्व शिक्षक की उपाधि से अलंकृत किया. डॉ शशि कला त्रिपाठी बताती है कि साल 1956 में कृष्णमूर्ति ने बनारस के राजघाट पर वसंता कॉलेज की स्थापना की.
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यह कॉलेज काशी के सबसे शांत और सुकून वाले क्षेत्रों में शुमार होता है. बताती है कि कृष्णमूर्ति असल में जिस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए बनारस आए थे उसके लिए इसी प्रकार की शांति की आवश्यकता थी. बताती है कि उनके पास देश दुनिया से हिना और भिन्न विचारों के साथ टूटे हुए लोग मन की शांति के लिए आते थे और उनसे व्यावहारिक समाधान प्राप्त कर वापस लौटते थे. डॉक्टर त्रिपाठी बताती है कि कृष्णमूर्ति के समाधान दिव्य काले लाभ के होते थे.
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