संपूर्णानंद संस्कृत विवि के दीक्षांत समारोह में शामिल हुई राज्यपाल, कहा- छात्रों के घर पहुंचाई जाए उपाधियां

Smart News Team, Last updated: Tue, 2nd Mar 2021, 1:47 PM IST
  • यूपी की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विवि के दीक्षांत समारोह में शामिल हुई. वही दीक्षांत समारोह में उन्होंने ने कहा कि सभी उपाधियां छात्रों के पते पर भेजी जाए चाहे वह दीक्षांत समारोह में शामिल हो या नहीं.
संपूर्णानंद संस्कृत विवि के दीक्षांत समारोह में शामिल हुई राज्यपाल, कहा- छात्रों के घर पहुंचाई जाए उपाधियां

वाराणसी. यूपी की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल मंगलवार को संपूर्णानंद संस्कृत विवि के दीक्षांत समारोह में शामिल हुई. वही उन्होंने ने समारोह में निर्देश दिया कि अभी तक जितनी भी लंबित डिग्रियां है उन्हें उनके घर पर पहुंचाई जाए. छात्र चाहे दीक्षांत समारोह में उपस्थिय हो या नहीं उन्हें उनकी उपाधियाँ उनके पटे पर पोस्ट किया जाए. साथ ही उसकी जानकारी राजभवन को भी दिया जाए. वही संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के  38वें दीक्षांत समारोह में राज्यपाल ने यह भी कहा कि मालूम है कि विश्वविद्यालय में करीब दस दस साल से उपाधिया पड़ी है. ऐसे युनिवेर्सिटी की जिम्मेद्वारि बनती है कि छात्रों उपाधियाँ पहुंचाई जाए.

राज्यपाल आनंदी बेन ने दीक्षांत समारोह में कहा कि संस्कृत भाषा को जो महत्व मिलना चाहिए था, लेकिन वह महत्व नहीं मिल रहा है. साथ ही उन्होंने ने बताया कि नई शिक्षा नीति में संस्कृत पर ध्यान दिया गया है. नई शिक्षा नीति के तहत तीन संस्कृत विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया जाएगा. साथ ही उन्होंने उन्होंने ने कहा कि प्रदेश सरकार संस्कृत के विकास के लिए प्रतिबद्ध है. 

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इस दीक्षांत समारोह में शामिल हुए मुख्य अतिथि और मालदीव में भारत के पूर्व राजदूत अखिलेश मिश्र ने कहा कि संस्कृत के छात्रों अपने उसी प्रकार सोचना चाहिए जैसे एम्स और एमबीए के छात्र अपने आपको समझते है. इसके साथ ही उन्होंने ने कहा कि संस्कृत उदात्त और लोकतांत्रिक मूल्यों से प्रेरित करता है. साथ ही परस्पर विरोधियों में सामंजस्य स्थापित करने का गुण संस्कृत में है.

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वहीं इस समारोह में 29 छात्र-छात्राओं को स्वर्ण पदक प्रदान किया गया. जिसमे साहित्य की मीना कुमारी को सर्वाधिक 10 स्वर्ण पदक दिया गया. वही दीक्षांत समारोह में पद्मश्री से सम्मानित संस्कृत के उद्भट विद्वान रामयत्न शुक्ल को महामहोपाध्याय की उपाधि दी गई.

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