वाराणसी: अब किसान पालक की खेती में 20 फीसदी से ज्यादा पैदावार पा सकेंगे
- बीएचयू ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सहयोग से किया शोध. मृदापरीक्षण अनुक्रिया सह संबंध के तहत तय किए मिट्टी में खाद के मानक
वाराणसी: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सयोग से मृदा विभाग में शोध अध्ययन पूरा हुआ है. इससे पालक की खेती में खर्च 15 फीसदी तक कम करने के साथ ही उपज बढ़ेगी. बीएचयू कृषि विज्ञान संस्थान ने मिट्टी परीक्षण व खाद की मात्रा तय कर पालक की 20 फीसदी ज्यादा उपज का दावा किया है. इसके लिए किसानों को अलग से कुछ नहीं करना है बस खेत के मिट्टी की जांच कराकर मानक के अनुरूप खाद का प्रयोग करना होगा. संतुलित मात्रा में खाद से पालक की गुणवत्ता व स्वाद दोनो बरकरार रहेगी.
आपको बतादे के पालक की एक क्विंटल उपज प्राप्त करने के लिए 0.75 किलोग्राम नत्रजन, 0.08 किलोग्राम फास्फोरस तथा 0.70 किलोग्राम पोटास की आवश्यकता होती है. बीएचयू कृषि विज्ञान संस्थान मृदा विज्ञान विभाग असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. यदवीर सिंह ने बताया कि मृदा परीक्षण फसल अुनक्रिया सह संबंध परियोजना के तहत पालक की खेती के लिए खाद के मानक तय किए गए हैं.
फिल्ड में विभिन्न स्तरों में किए गए मृदा परीक्षणों के बाद तय किया गया हे एक हेक्टेअर में पालक की खेती करने के लिए 180 किलोग्राम नत्रजन, 10 किलोग्राम फास्फोरस, 140 किलोग्राम प्रोटास की जरूरत होगी. यूपी के पूर्वी तटीय क्षेत्रों में पालक की पैदावार अच्छी होती है.इस शोध अध्ययन में प्रो. सतीश कुमार सिंह, प्रो. प्रमोद कुमार शर्मा ने भी सहभागिता की है.
वही पालक की खेती समान रूप से पूरे पूर्वांचल में की जाती है. बनारस, लखनऊ, गाजीपुर, बलिया, संत रविदास नगर, रमना तथा चंदौली के किसान पालक का बेहतर उत्पादन करते हैं. पालक एक पौष्टिक आहार है. इसमें आयरन की भरपूर मात्रा पाई जाती है. इसके अलावा क्लोरोफिल, कैरोटेनॉयड्स, ओमेगा थ्री फैटी एसिड्स के साथ ही मिनरल्स, विटामिन और एंटीऑक्सिडेंट्स समाहित है.
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