‘शुम्भ और निशुम्भ’ का वध कर मां दुर्गा ने अस्सी घाट पर फेंकी थी अपनी तलवार
- इस घाट पर नृसिंह, मयूरेश्वर तथा बाणेश्वर मंदिर स्थित है. काशीखंड के अनुसार संसार के अन्य सभी तीर्थ अस्सी घाट के सोलहवें भाग के बराबर भी नहीं हैं. अतः इस घाट पर स्नान करने से सभी तीर्थों में स्नान करने जैसा पुण्यफल प्राप्त होता है.
जब भी वाराणसी की बात आती है तो जहन में प्रसिद्ध घाट और मंदिरों की तस्वीरें उभरने लगती हैं. ऐतिहासिक धरोहरों को समेटे बनारस में 88 घाट मौजूद हैं. हर घाट की अपनी अलग विशेषता है. अपनी चहल-पहल से विश्वभर में प्रसिद्ध बनारस का अस्सी घाट पर्यटकों के लिए हमेशा ही आकर्षण का केंद्र रहता है. अस्सी नदी और गंगा नदी के संगम पर स्थित अस्सी घाट दक्षिण क्षेत्र में मौजूद है.
अस्सी घाट पर हर साल लाखों की संख्या में लोग घूमने के लिए आते हैं. यहां की गंगा आरती भी काफी मशहूर है. चैत्र और माघ के महीने में श्रद्धालु यहां आकर गंगा नदी में स्नान करते हैं. इस घाट पर पीपल के पेड़ के नीचे शिवलिंग मौजूद है. इसके अलावा यहां पर भगवान असिसंगमेश्वर और लक्ष्मीनारायण मंदिर भी स्थित है, भगवान असिसंगमेश्वर को दो नदियों के प्रवाह और संगम का देवता माना जाता है.
इसके अलावा इस घाट पर नृसिंह, मयूरेश्वर तथा बाणेश्वर मंदिर स्थित है. काशीखंड के अनुसार संसार के अन्य सभी तीर्थ अस्सी घाट के सोलहवें भाग के बराबर भी नहीं हैं. अतः इस घाट पर स्नान करने से सभी तीर्थों में स्नान करने जैसा पुण्यफल प्राप्त होता है.
अस्सी घाट को लेकर पौराणिक कथा: अस्सी घाट को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं. उन्हीं में से एक है कि देवी दुर्गा ने शुम्भ और निशुम्भ राक्षस का वध करने के बाद जिस स्थान पर अपनी तलवार फेंकी थी, वहां से अस्सी नदी निकली थी. इसके अलावा तुलसीदास जी ने भी इसी घाट पर एक गुफा में रहकर 'रामचरितमानस' की रचना की थी. संवत् 1680 में उन्होंने इसी घाट पर अपने प्राण त्याग दिए थे.
जाने में कितना समय लगता है?
यदि आप दिल्ली से आना चाहते हैं तो आप हवाई मार्ग/ सड़क/रेल मार्ग तीनों से आसानी से वाराणसी आ सकते हैं. अगर आप फ्लाइट से जाते हैं तो 1.25 घंटे में आप वाराणसी शहर पहुंच सकते हैं. वहीं, अगर आप रेल मार्ग के जरिए सफर तय कर रहे हैं तो इसमें आपको 14 घंटे का समय लगेगा. अगर आप सड़क मार्ग से जाते हैं तो इसमें 12.32 घंटे लगते हैं.
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